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नीरजा भनोट की जीवनी – Neerja Bhanot Biography Hindi

 आज इस आर्टिकल में हम आपको नीरजा भनोट की जीवनी – Neerja Bhanot Biography Hindi के बारे में बताएगे।

नीरजा भनोट की जीवनी – Neerja Bhanot Biography Hindi

नीरजा भनोट की जीवनी

नीरजा भनोट मुंबई में पैन ऐम एअरलाइन्स की विमान परिचारिका थीं।नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की एक महानतम वीरांगना थीं।

आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों की जान बचाते हुए उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया था। नीरजा भनोट ‘अशोक चक्र‘ पाने वाली पहली महिला थीं।

उनकी कहानी पर आधारित 2016 में एक फ़िल्म भी बनी, जिसमें उनका किरदार सोनम कपूर ने अदा किया था।

जन्म

नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर, 1963 को चंडीगढ़, पंजाब में हुआ था।

उनके पिता का नाम हरीश भनोट और माता का नाम रमा भनोट था।

उनके पिता मुंबई में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत थे। उनके भाई का नाम अनीश है।

नीरजा बहुत संवेदनशील, बहुत सौहार्दपूर्ण और सभ्य थी जो लोगों के साथ खुशियाँ बाँटने में यकीन रखती थी।

वो अपने उसूलों की पक्की थी और उनके साथ कोई समझौता उसे मंजूर नही था।

शिक्षा

नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा  चंडीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल से पूरी हुई ।

इसकेबाद उनकी शिक्षा मुम्बई के स्कोटिश स्कूल और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हुई।

नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ और वे पति के साथ खाड़ी देश को चली गयीं।

लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज के दबाव को लेकर इनके रिश्ते में खटास आ गयी और विवाह के दो महीने बाद ही नीरजा वापस मुंबई आ गयीं।

इसके बाद उन्होंने पैन एम में विमान परिचारिका की नौकरी के लिये आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग लेने के बाद वापस लौटीं।

विमान अपहरण की घटना

बचपन से ही नीरजा भनोट को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।

नीरजा ने अपनी इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की।

16 जनवरी, 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे।

नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगीं।

5 सितम्बर, 1986 की वह घड़ी आ गयी थी, जब नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी।

पैन एम 73 विमान कराची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था।

विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया।

उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वह जल्द ही विमान में पायलट को भेजे। लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने एस करने से मना कर दिया।

तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वह सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठे करें ताकि वह किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके।

नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये।

उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट को नहीं भेजा गया तो वह उसको मार देगे।

लेकिन नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये।

पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला।

अचानक नीरजा को ध्यान आया कि विमान में ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा।

विमान अपहरण की घटना

जल्दी ही उन्होंने अपनी एसोसिएट्स को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा।

नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने चाहते हैं। इसलिए उन्होंने सबसे पहले खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये, क्योंकि उनका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वह शांत दिमाग से बात करें।

इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली।

नीरजा भनोट ने जैसा सोचा था वही हुआ। विमान का ईंधन समाप्त हो गया और चारों ओर अंधेरा छा गया।

नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थीं। तुरन्त उन्होंने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही सारे यात्री तुरन्त उन द्वारों से नीचे कूदने लगे।

और आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। लेकिन नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे, लेकिन ठीक थे।

अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी, किन्तु तभी उन्हें बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी।

दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे।

उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। उधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थीं और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगीं।

तभी अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उनके सामने आ खड़ा हुआ।

नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और खुद उस आतंकी से भिड़ गईं।

आतंकी ने कई गोलियां उनके सीने में उतार डालीं। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया।

उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया लेकिन वो नीरजा को न बचा सके।

सम्मान

  • नीरजा भनोट के बलिदान के बाद भारत सरकार ने उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ प्रदान किया।
  • पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को ‘तमगा-ए-इन्सानियत’ प्रदान किया।
  • नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की एक महानतम वीरांगना थीं। 2004 में नीरजा भनोट के सम्मान में डाक टिकट भी जारी हो चुका है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम ‘हिरोइन ऑफ हाईजैक’ के तौर पर मशहूर है।
  • 2005 में अमेरिका ने उन्हें ‘जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड’ दिया।

स्मृति शेष

  • नीरजा की समृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया है, जिसका उद्घाटन 90 के दशक में हिंदी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त अभिनेता अमिताभ बच्चन ने किया।
  • इसके अलावा उनकी स्मृति में एक संस्था ‘नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास’ की स्थापना भी हुई है, जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है, जिनमें से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिये।
  • प्रत्येक पुरास्कार की धनराशि 1,50,000 रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रॉफी और स्मृतिपत्र दिया जाता है। महिला अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये प्रसिद्ध हुई राजस्थान की दलित महिला भंवरीबाई को भी यह पुरस्कार दिया गया था

फिल्म

  • नीरजा के साहसिक कार्य और उनके बलिदान को याद रखने के लिये उन पर फ़िल्म बनाने की घोषणा 2010 में ही हो गयी थी, लेकिन किन्हीं कारणों से यह कार्य टलता रहा। अप्रैल, 2015 में राम माधवानी के निर्देशन में इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई। इस फ़िल्म में नीरजा का किरदार अभिनेत्री सोनम कपूर ने अदा किया।
  • यह फ़िल्म 19 फ़रवरी, 2016 को रिलीज हुई थी। इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर अतुल काशबेकर हैं।

मृत्यु

नीरजा भनोट 5 सितंबर 1986 के पैन ऐम उड़ान 73 के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं।

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