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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी – Pandit Deendayal Upadhyay Biography Hindi

पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और जनसंघ के नेता थे। वे 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। उन्होने 1948 में लखनऊ से संघ की मासिक पत्रिका पांचजन्य को लॉन्च किया और 1955 में उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। उन्होने 21 अक्टूबर 1951 को बनी भारतीय जनसंघ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंडित जी ने शंकरचार्य की जीवनी भी लिखी। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी – Pandit Deendayal Upadhyay Biography Hindi के बारे में बताएगे।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी – Pandit Deendayal Upadhyay Biography Hindi

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी - Pandit Deendayal Upadhyay Biography Hindi

जन्म

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को उनके नाना के घर राजस्थान के जयपुर जिले के धनकिया  गाँव में हुआ था। वे पैतृक रूप से मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान गाँव के थे। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय तथा उनकी माता का नाम रामप्यारी था। उनके पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे। उनके छोटे भाई का नाम शिवदयाल था। जब वे तीन साल के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया। पिता की मृत्यु के बाद उनकी माँ खुद को अकेला महसूस करने लगी जिसके कारण उनकी तबतीयत खराब रहने लगी। जिसके चलते 8 अगस्त 1924 को उनका देहांत हो गया। जब वे 18 साल के थे तो उनके छोटे भाई का भी देहांत हो गया।

शिक्षा

उपाध्याय जी ने  8वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होने कल्याण हाईस्कूल, सीकर, राजस्थान से दसवीं की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1937 में पिलानी से इंटरमीडिएट की परीक्षा में पुनः बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1939 में कानपुर के सनातन धर्म कालेज से बी०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अंग्रेजी से एम०ए० करने के लिए सेंट जॉन्स कालेज, आगरा में प्रवेश लिया और पूर्वार्द्ध में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। बीमार बहन रामादेवी की शुश्रूषा में लगे रहने के कारण उत्तरार्द्ध न कर सके। बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी, उत्तीर्ण भी हुये किन्तु अंगरेज सरकार की नौकरी नहीं की। 1941 में प्रयाग से बी०टी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी०ए० और बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की।

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करियर

दीनदयाल ने लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म शुरू की। बाद में उन्होंने ‘पांचजन्य’ (साप्ताहिक) तथा ‘स्वदेश’ (दैनिक) की शुरुआत की। सन् 1950 में केन्द्र में पूर्व मंत्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ‘नेहरू – लियाकत समझौते’ का विरोध किया और मंत्रिमंड़ल के अपने पद से त्यागपत्र दे दिया तथा लोकतांत्रिक ताकतों का एक साझा मंच बनाने के लिए वे विरोधी पक्ष में शामिल हो गए। डॉ. मुकर्जी ने राजनीतिक स्तर पर कार्य को आगे बढ़ाने के लिए निष्ठावान युवाओ को संगठित करने में श्री गुरु जी से मदद मांगी।

पंडित दीनदयाल जी की संगठनात्मक कुशलता बेजोड़ थी। आख़िर में जनसंघ के इतिहास में चिरस्मरणीय दिन आ गया जब पार्टी के इस अत्यधिक सरल तथा विनीत नेता को सन् 1968 में पार्टी के सर्वोच्च अध्यक्ष पद पर बिठाया गया। दीनदयाल जी इस महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी को संभालने के पश्चात् जनसंघ का संदेश लेकर दक्षिण भारत गए।

वे 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। उन्होने 1948 में लखनऊ से संघ की मासिक पत्रिका पांचजन्य को लॉन्च किया और 1955 में उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। उन्होने 21 अक्टूबर 1951 को बनी भारतीय जनसंघ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। पंडित जी ने शंकरचार्य की जीवनी भी लिखी।

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पुस्तक

  • दो योजनाएँ
  • राजनीतिक डायरी
  • भारतीय अर्थनीति का अवमूल्यन
  • सम्राट चन्द्रगुप्त
  • जगद्गुरु शंकराचार्य
  • एकात्म मानववाद (अंग्रेजी: Integral Humanism)
  • राष्ट्र जीवन की दिशा
  • एक प्रेम कथा

विचार

  • जब राज्य में आर्थिक एवं राजनीतिक दोनों शक्तियां आ जाती हैं, तो इसका परिणाम धर्म की गिरावट होता है.
  • पिछले 1000 वर्षों में हमने जो भी अपनाया है, फिर चाहे वह हमने उसे मजबूरन अपनाया हो या इच्छा से, हम उसे त्याग नहीं सकते हैं.
  • स्वतंत्रता का तभी कोई अर्थ है, जब हम हमारी संस्कृति को व्यक्त करने के लिए साधन बनें.
    नैतिकता के सिद्धांत किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं बनाये जाते, बल्कि उन्हें खोजा जाता है.
  • भारत में नैतिकता के सिद्धांत को धर्म के रूप में जाना जाता है – यह जीवन का नियम है।

मृत्यु

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 51 वर्ष की आयु में 11 फ़रवरी  1968  को मुग़लसराय में उनकी हत्या कर दी गई।

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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