पंडित जसराज (English – Jasraj )भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्व विख्यात गायक है। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत भी माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ जिन्होंने सिर्फ 3 वर्ष की छोटी आयु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले और केवल सात स्वरों के साथ क़दम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बनकर विश्व-जगत में उन्हें प्रसिद्धि दिला रहे हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको पण्डित जसराज की जीवनी – Jasraj Biography Hindi के बारे मे बताएगे।
पण्डित जसराज की जीवनी – Jasraj Biography Hindi
जन्म
Jasraj का जन्म 28 जनवरी 1930 को हिसार, हरियाणा ( फतेहाबाद के गाँव पीली मंदोरी) में हुआ था। उनका पूरा नाम Sangeet Martand Pandit Jasraj था। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिता का नाम पंडित मोतीराम जी था, जो स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, बेटा सारंग देव और बेटी दुर्गा हैं।
शिक्षा
पंडित जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली लेकिन जब वे सिर्फ 3साल के थे, तो प्रकृति ने उनके पिता का देहांत हो गया । पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के पालन-पोषण का भार संभाला उनके बडे़ बेटे संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पंडित जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा।
मणिराम जी अपने साथ जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। लेकिन उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी तुच्छ माना जाता था और 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के नीच बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में निपुणता प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसकेबाद में उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से और आगरा के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया।
आवाज़ की विशेषता
पंडित जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की ‘ख़याल’ शैली की विशेषता को दर्शाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में ‘हवेली संगीत’ पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो ‘मूर्छना’ की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में कई रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम ‘जसरंगी’ रखा गया है।
योगदान
दिग्गज शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने अनूठी उपलब्धि हासिल की है।शास्त्रीय गायक ने हाल में अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी प्रस्तुति दी थी । इसके साथ ही वह सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने बीती 8 जनवरी को अंटार्कटिका तट पर ‘सी स्प्रिट’ नामक क्रूज पर गायन कार्यक्रम पेश किया।।
मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने पहली बार सन 2008 में रिलीज़ हिंदी फ़िल्म के एक गीत को अपनी आवाज दी है। विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘1920’ के लिए उन्होंने अपनी जादुई आवाज में एक गाना गाया है। पंडित जसराज ने इस फ़िल्म के प्रचार के लिए बनाए गए वीडियो के गीत ‘वादा तुमसे है वादा’ को अपनी दिलकश आवाज दी है। गाने की शूटिंग मुम्बई के जोगेश्वरी स्थित विसाज स्टूडियो में हुई। इस गाने को संगीत से सजाया अदनान सामी ने और बोल समीर ने लिखे हैं। वीडियो के गानों की कोरियोग्राफी राजू खान ने की है। ए.एस.ए. प्रोडक्शन एंड एंटरप्राइजेज लिमिटेड के निर्माण में बनाई जा रही फ़िल्म ‘1920’ में नए कलाकार काम कर रहे हैं। 1920 के दौर में सजी यह फ़िल्म एक भारतीय लड़के और एक अंग्रेज लड़की की प्रेम कहानी है। ये दोनों लोगों के भारी विरोधों के बावजूद दोनों एक-दूसरे से शादी कर लेते हैं।
जीवन के 75वें सोपान
“रानी तेरो चिरजियो गोपाल….” 28 जनवरी, 2005 की भोर से ही “रसराज” कहे जाने वाले संगीत मार्तण्ड पं. जसराज के चाहने वालों के होठों पर उनके इस भजन के बोल तैर रहे थे। “रसराज” जसराज ने ऋतुराज की दस्तक के साथ ही अपने जीवन के 75 सोपान तय किए। 75 दीपों की मालिका के साथ दिल्ली के कमानी सभागार में पंडित जसराज के ज्योतिर्मय जीवन की कामना की गई। पांच साल पहले जब पंडित जी के दिल की सर्जरी हुई थी, तब सबको लगता था कि पता नहीं, उनके मधुर स्वरों की गंगा उसी प्रकार प्रवाहित होती रहेगी या फिर….। पंडित जी के शब्दों में -“वह तो बिल्कुल वैसा ही था, जैसे किसी सितार के तारों में जंग लग जाए और फिर आप उन तारों को बदल दें या मिट्टी के तेल में रुई डुबोकर साफ कर दें। “बाईपास सर्जरी” से पहले कुछ तकलीफें रहती थीं, उसके बाद सब एकदम निर्मल जल-सा हो गया।”
29 जनवरी को पंडित जसराज अपने अभिनंदन में आयोजित समारोह के लिए दिल्ली पधारे थे। इस अवसर पर प्रशंसकों से घिरे पंडित जी से उनकी जीवन-यात्रा के अनुभव जानने चाहे तो थोड़ा गंभीर होकर कहा , “सोचता हूं कि आज अगर 35 बरस का होता और 75 बरस के ये अनुभव साथ होते, और उससे आगे 35 बरस की यात्रा करता तो कितना फ़र्क़ होता। संगीत के प्रति यही भावनाएं, श्रद्धा और भक्ति होती तो जीवन कितना सौभाग्यशाली होता।”
सम्मान और पुरस्कार
पंडित जसराज को कई सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित हो किया जा चुका हैं। वे है-
- पद्म विभूषण (2001)
- पद्म भूषण
- पद्म श्री
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड
- लता मंगेशकर पुरस्कार
- महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार
मृत्यु
Jasraj की मृत्यु 90 वर्ष की उम्र में 17 अगस्त 2020 को कार्डियक के कारण हुई।