परमानंद दास अष्टछाप के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। परमानंद दास ने भगवान श्री कृष्ण के कई लीलाओं का अपने पदों में वर्णन किया है. तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको परमानंद दास की जीवनी – Parmanand Das Biography Hindi के बारे में बताएंगे
परमानंद दास की जीवनी – Parmanand Das Biography Hindi

जन्म
परमानंद दास का जन्म लगभग 1550 विक्रमी (1493 ई.) के आसपास का कन्नौज, उत्तर प्रदेश में हुआ था. परमानंद का जन्म एक निर्धन कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिस दिन वे पैदा हुए, उसी दिन एक धनी व्यक्ति ने उनके पिता को बहुत-सा धन दिया। दान के परिणामस्वरूप घर में परम आनंद छा गया। पिता ने बालक का नाम परमानंद रखा। उनकी बाल्यावस्था सुखपूर्वक व्यतीत हुई। बचपन से ही उनके स्वभाव में त्याग और उदारता का बाहुल्य था। उनके पिता साधारण श्रेणी के व्यक्ति थे। दान आदि से ही वे अपनी जीविका चलाते थे। एक समय कन्नौज में अकाल पड़ा।
हाकिम ने दण्ड के रूप में उनके पिता का सारा धन छीन लिया और वे कंगाल हो गये। परमानंद पूरी तरह से युवाअवस्था में आ चुके थे। अभी तक उनका विवाह नहीं हुआ था। परमानंद के पिता को हमेशा उनके विवाह की चिन्ता बनी रहती थी और परमानंद उनसे कहा करते थे कि- “आप मेरे विवाह की चिन्ता न करें, मुझे विवाह ही नहीं करना है। जो कुछ आय हो, उससे परिवार वालों का पालन करें, साधु-सेवा और अतिथि-सत्कार करें।”लेकिन उनके पिता को तो द्रव्योपार्जन की सनक थी, वे घर से निकल पड़े। देश-विदेश में घूमने लगे।
ग्रंथ
अष्टछाप के महाकवि सूरदास के बाद में इनका ही स्थान आता है इनके दो ग्रंथ सबसे प्रसिद्ध है
- ध्रुव चरित्र
- दानलीला
ग्रंथों के अलावा परमानंद दास ने ‘परमानंद सागर’ में इनके 835 पद संग्रहित है। इनमें मधुर, सरस और गेय है
- परमानंद सागर
- परमदास पद
रचनाएं
- वृंदावन क्यों न भाई हम मोर
- कौन रसिक है इन बातन कौ
- बज्र के बिरही लोग बिचारे
- मैया मोहिं ऐसी दुलहिन भावै
- कहां करो बैकुंठहि जाय
- लाल कछु कीजे भोजन तिल तिल कारी हों वारी हों
- पतंग की गुडी उड़ावन लागे वज्र बाल
- माई मीठे हरी जू के बोलना
- यह मांगो गोपीजन वल्लभ
- आज दधि मीठो मदन गोपाल
आदि उनकी रचनाएं हैं
पद
- यह मांगो गोपीजन वल्लभ।
- मानुस जन्म और हरि सेवा, ब्रज बसिबो दीजे मोही सुल्लभ ॥
- श्री वल्लभ कुल को हों चेरो, वल्लभ जन को दास कहाऊं।
- श्री जमुना जल नित प्रति न्हाऊं, मन वच कर्म कृष्ण रस गुन गाऊं ॥
- श्री भागवत श्रवन सुनो नित, इन तजि हित कहूं अनत ना लाऊं।
- ‘परमानंद दास’ यह मांगत, नित निरखों कबहूं न अघाऊं ॥
- आज दधि मीठो मदन गोपाल।
- भावे मोही तुम्हारो झूठो, सुन्दर नयन विशाल ॥
- बहुत दिवस हम रहे कुमुदवन, कृष्ण तिहारे साथ।
- एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥
- आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट।
- जिन नहीं पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥
- माई मीठे हरि जू के बोलना।
- पांय पैंजनी रुनझुन बाजे, आंगन आंगन डोलना ॥
- काजर तिलक कंठ कचुलामल, पीतांबर को चोलना।
- ‘परमानंद दास’ की जीवनी, गोपि झुलावत झोलना ॥
मृत्यु
परमानंद दास की मृत्यु संवत 1641 विक्रमी (1584 ई.) में सुरभिकुंड, गोवर्धन में हुई थी।