आज इस आर्टिकल में हम आपको प्रफुल्ल चंद्र राय की जीवनी – Prafulla Chandra Ray Biography Hindi के बारे में बताएगे।
प्रफुल्ल चंद्र राय की जीवनी – Prafulla Chandra Ray Biography Hindi
(English – Prafulla Chandra Ray)प्रफुल्ल चंद्र राय भारत में रसायन विज्ञान के जनक माने जाते हैं।
कलकता विश्वविद्यालय से डिप्लोमा लेने के बाद वे पढ़ने के लिए विदेश चले गए। भारत लौटकर 1889 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर बने।
1901 में बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड की नीव रखी। रासायनिक योगिक मर्क्यरियस नाइट्रेट की खोज की।
रसायन विज्ञान से जुड़े 100 से अधिक पेपर प्रकाशित हुए। कई मौकों पर राहत कार्यों का भी आयोजन किया।
संक्षिप्त विवरण
नाम | मीना कुमारी |
पूरा नाम अन्य नाम | आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय आचार्य राय, डॉ. राय |
जन्म | 2 अगस्त 1861 |
जन्म स्थान | ररौली गांव, जैसोर ज़िला, बांग्लादेश |
पिता का नाम | हरिश्चंद्र राय |
माता का नाम | भुवनमोहिनी देवी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | – |
जाति | – |
जन्म
Prafulla Chandra Ray का जन्म 2 अगस्त 1861 ई. में जैसोर ज़िले के ररौली गांव में हुआ था।
उनका पूरा नाम आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय था।
उनके पिता हरिश्चंद्र राय इस गाँव के प्रतिष्ठित ज़मींदार थे तथा उनकी माता का नाम भुवनमोहिनी देवी था।
शिक्षा – प्रफुल्ल चंद्र राय की जीवनी
1879 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर आगे की पढ़ाई मेट्रोपोलिटन कॉलेज (अब विद्यासागर कॉलेज) में शुरू की। उस समय रसायन विज्ञान ग्यारहवीं कक्षा का एक अनिवार्य विषय था। वहीं पर पेडलर महाशय की उत्कृष्ठ प्रयोगात्मक क्षमता देखकर धीरे-धीरे वे रसायन विज्ञान की ओर उन्मुख हुए। अब प्रफुल्ल चंद्र राय ने रसायन विज्ञान को अपना मुख्य विषय बनाने का निर्णय कर लिया था। पास में प्रेसिडेंसी कॉलेज में विज्ञान की पढ़ाई का अच्छा इंतज़ाम था इसलिए वह बाहरी छात्र के रूप में वहाँ भी जाने लगे।
Prafulla Chandra Ray को एडिनबरा विश्वविद्यालय में अध्ययन करना था जो विज्ञान की पढ़ाई के लिए मशहूर था। वर्ष 1885 में उन्होंने पी.एच.डी का शोधकार्य पूरा किया। तदनंतर 1887 में “ताम्र और मैग्नीशियम समूह के ‘कॉन्जुगेटेड’ सल्फेटों” के बारे में किए गए उनके कार्यों को मान्यता देते हुए एडिनबरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.एस.सी की उपाधि प्रदान की।
करियर
रफुल्ल चंद्र राय को जुलाई 1889 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में 250 रुपये मासिक वेतन पर रसायनविज्ञान के सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया। यहीं से उनके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। 1911 में वे प्रोफेसर बने। उसी वर्ष ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया।
1916 में वे प्रेसिडेंसी कॉलेज से रसायन विज्ञान के विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए।
फिर 1916 से 1936 तक उसी जगह एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत रहे।
1933 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पण्डित मदन मोहन मालवीय ने आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय को डी.एस-सी की मानद उपाधि से विभूषित किया। वे देश विदेश के अनेक विज्ञान संगठनों के सदस्य रहे।
अमोनियम नाइट्राइट का संश्लेषण
एक दिन आचार्य राय अपनी प्रयोगशाला में पारे और तेजाब से प्रयोग कर रहे थे। इससे मर्क्यूरस नाइट्रेट नामक पदार्थ बनता है। इस प्रयोग के समय डा. राय को कुछ पीले-पीले क्रिस्टल दिखाई दिए। वह पदार्थ लवण भी था तथा नाइट्रेट भी। यह खोज बड़े महत्त्व की थी। वैज्ञानिकों को तब इस पदार्थ तथा उसके गुणधर्मों के बारे में पता नहीं था। उनकी खोज प्रकाशित हुई तो दुनिया भर में डा. राय को ख्याति मिली। उन्होंने एक और महत्वपूर्ण कार्य किया था। वह था अमोनियम नाइट्राइट का उसके विशुद्ध रूप में संश्लेषण। इसके पहले माना जाता था कि अमोनियम नाइट्राइट का तेजी से तापीय विघटन होता है तथा यह अस्थायी होता है। राय ने अपने इन निष्कर्षों को फिर से लंदन की केमिकल सोसायटी की बैठक में प्रस्तुत किया।
स्वदेशी उद्योग की नींव
उस समय भारत का कच्चा माल सस्ती दरों पर इंग्लैंड जाता था। वहाँ से तैयार वस्तुएं हमारे देश में आती थीं और ऊँचे दामों पर बेची जाती थीं। इस समस्या के निराकरण के उद्देश्य से आचार्य राय ने स्वदेशी उद्योग की नींव डाली। उन्होंने 1892 में अपने घर में ही एक छोटा-सा कारखाना निर्मित किया। उनका मानना था कि इससे बेरोज़गार युवकों को मदद मिलेगी। इसके लिए उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ा। वे हर दिन कॉलेज से शाम तक लौटते, फिर कारखाने के काम में लग जाते। यह सुनिश्चित करते कि पहले के आर्डर पूरे हुए कि नहीं।
डॉ. राय को इस कार्य में थकान के बावजूद आनंद आता था। उन्होंने एक लघु उद्योग के रूप में देसी सामग्री की मदद से औषधियों का निर्माण शुरू किया। बाद में इसने एक बड़े कारखाने का स्वरूप ग्रहण किया जो आज “बंगाल केमिकल्स ऐण्ड फार्मास्यूटिकल वर्क्स” के नाम से सुप्रसिद्ध है। उनके द्वारा स्थापित स्वदेसी उद्योगों में सौदेपुर में गंधक से तेजाब बनाने का कारखाना, कलकत्ता पॉटरी वर्क्स, बंगाल एनामेल वर्क्स, तथा स्टीम नेविगेशन, प्रमुख हैं।
आंदोलन में योगदान
आचार्य राय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। गोपाल कृष्ण गोखले से लेकर महात्मा गाँधी तक से उनका मिलना जुलना था। कलकत्ता में गांधी जी की पहली सभा कराने का श्रेय डा. राय को ही जाता है। राय एक सच्चे देशभक्त थे उनका कहना था;- “विज्ञान प्रतीक्षा कर सकता है, पर स्वराज नहीं”। वह स्वतंत्रता आन्दोलन में एक सक्रिय भागीदार थे।
उन्होंने असहयोग आन्दोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के रचनात्मक कार्यों में मुक्तहस्त आर्थिक सहायता दी। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था- “मैं रसायनशाला का प्राणी हूँ। मगर ऐसे भी मौके आते हैं जब वक्त का तकाज़ा होता है कि टेस्ट-ट्यूब छोड़कर देश की पुकार सुनी जाए”।
मृत्यु – प्रफुल्ल चंद्र राय की जीवनी
प्रफुल्लचंद्र राय की मृत्यु 16 जून 1944 को कलकत्ता में हुई थी।
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