प्रकाशवीर शास्त्री (English – Prakash Vir Shastri) संसद के लोकसभा सदस्य और संस्कृत के विद्वान् साथ ही आर्य समाज के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे तीन बार (दूसरी, तीसरी और चौथी) लोकसभा के सांसद रहे।
प्रकाशवीर शास्त्री की जीवनी – Prakash Vir Shastri Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण
नाम | प्रकाशवीर शास्त्री |
पूरा नाम | ओमप्रकाश त्यागी |
जन्म | 21 नवंबर 1916 |
जन्म स्थान | रेहड़ा,उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री दिलीप सिंह त्यागी |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाति |
जन्म
प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म 30 दिसंबर, 1923 को उत्तर प्रदेश के गाँव रेहड़ा में हुआ। उनका वास्तविक नाम ओमप्रकाश त्यागी था। उनके पिता का नाम श्री दिलीप सिंह त्यागी था।
शिक्षा
वह किशोरावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हो गये और इसी बीच आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्नातकोत्तर) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद में प्रकाशवीर गुरुकुल वृन्दावन के कुलपति बने। उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई।
करियर
प्रकाशवीर शास्त्री ने हिंदी, धर्मांतरण, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों तथा पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। 1957 में आर्य समाज द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही पंजाब आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे। 1958 में स्वतंत्र रूप से लोकसभा सांसद बनकर संसद में गये। प्रकाशवीर शास्त्री संयुक्त राज्य संगठन में हिन्दी बोलने वाले पहले भारतीय थे जबकि दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी थे।
आर्य समाज के समर्थक
प्रकाशवीर शास्त्री, स्वामी दयानन्द जी तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे। इस कारण ही आर्य समाज की अस्मिता को बनाए रखने के लिए आपने 1939 में मात्र 16 वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये। इनकी आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी, इस कारण ये अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के माध्यम से उपदेशक स्वरूप कार्य करने लगे। आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में इनका नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया और इनके व्याख्यान के लिए इनकी देश के विभिन्न भागों से माँग होने लगी।
हिन्दी रक्षा समिति
पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो यहां हिन्दी रक्षा समिति ने सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही सत्याग्रह का शंखनाद 1958 ईस्वी में हो गया। इन्होंने भी इस समय अपनी आर्य समाज के प्रति निष्ठा व कर्तव्य दिखाते हुए सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने इनको आर्य समाज का सर्वमान्य नेता बना दिया।
अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन
इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए इन्होंने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनऊ तथा हैदराबाद में इसके दो सम्मेलन भी आयोजित किये। 1962 तथा फिर 1967 में फिर दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोकसभा के लिए चुने गए। एक सांसद के रूप में आपने आर्य समाज के बहुत-से कार्य निकलवाये।
विश्व हिन्दी सम्मेलन
वर्ष 1975 में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पन्न हुआ, में भी इन्होंने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में, सम्मेलन में पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया। इस सभा में (हिन्दी सम्मेलन में पंजाब के प्रतिनिधि स्वरूप भाग लेने के कारण) मैं भी उपस्थित था, आपके भाव प्रवाह व्याख्यान से जन जन भाव विभोर हो गया।
निधन
प्रकाशवीर शास्त्री का निधन 23 नवंबर 1977 को उत्तर प्रदेश में हुआ।