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रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी – R. G. Bhandarkar Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी – R. G. Bhandarkar Biography Hindiके बारे में बताएगे।

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी – R. G. Bhandarkar Biography Hindi

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी

(English – R. G. Bhandarkar) रामकृष्ण गोपाल भंडारकर भारत के प्रसिद्ध समाज सुधारक, इतिहासविद और शिक्षाशास्त्री थे।

उन्होने ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि प्राकृत भाषाओं का अध्ययन करके शोध के रूप में जो पांच विशाल खंड प्रकाशित किए वे पुरातत्व के इतिहासकारों के लिए आज भी मार्गदर्शक हैं।

1885 में जर्मनी की गोतिन्गे युनिवर्सिटी ने इन्हें ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की। 1911 में उन्हे ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।

संक्षिप्त विवरण

 

नामआर . जी. भंडारकर
पूरा नाम, वास्तविक नाम
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर
जन्म6 जुलाई 1837
जन्म स्थानरत्नागिरि, महाराष्ट्र
पिता का नाम
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
जाति

जन्म

R. G. Bhandarkar का जन्म 6 जुलाई 1837 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के मालवण नामक स्थान में एक साधारण परिवार में हुआ था।

उनके पिता मालवण के मामलेदार के अधीनस्थ मुंशी (क्लर्क) थे।

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की शुरुआती शिक्षा में आयी कठिनाई के बाद जब उनके पिता का स्थानांतरण रत्नागिरी ज़िले के राजस्व विभाग में हुआ तो उन्हें अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।

शिक्षा – रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी

R. G. Bhandarkar ने रत्नागिरी से स्कूली शिक्षा पूरी करके 1853 में मुम्बई के एल्फ़िंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने जिन जानी मानी हस्तियों से शिक्षा प्राप्त की, उनमें प्रथम राष्ट्रवादी ‘चिंतक’ और ‘ड्रेन थियरी’ के प्रतिपादक दादाभाई नौरोज़ी प्रमुख थे।

दादा भाई नौरोजी के प्रोत्साहन के कारण ही अंग्रेज़ी साहित्य, प्राकृतिक विज्ञान और गणित के प्रति रुचि के बावजूद भण्डारकर ने संस्कृत और पालि के ज्ञान के सहारे गौरवशाली अतीत के पुनर्निर्माण के लिए इतिहास-लेखन को अपनाया।

1862 में ये एल्फ़िंस्टन कॉलेज के पहले बैच से ग्रेजुएट होने वालों में से एक थे। वहाँ पर बी. ए. तथा एम. ए. की परीक्षाओं में इन्होंने सर्वोत्तम अंक प्राप्त किए। 1863 में ही उन्होने परास्नातक की उपाधि प्राप्त की।

करियर

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर कुछ समय तक सिंध के हैदराबाद और रत्नागिरी के राजकीय विद्यालयों में प्रधानाध्यपक के तौर पर कार्य करने के बाद ये एल्फ़िंस्टन कॉलेज में व्याख्याता पद पर नियुक्त हुए और आगे चल कर पुणे के डेक्कन कॉलेज में संस्कृत के प्रथम भारतीय प्रोफ़ेसर हुए।

1894 में अपनी सेवानिवृत्ति से पूर्व भण्डारकर मुम्बई विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। 1885 में जर्मनी की गोतिन्गे युनिवर्सिटी ने इन्हें ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की। प्राच्यवादियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मे शामिल होने के लिए ये लंदन (1874) और वियना (1886) भी गये।

शिक्षाशास्त्री के तौर पर उन्होने 1903 में भारतीय परिषद के अनाधिकारिक सदस्य चुने गये।

गोपाल कृष्ण गोखले भी उस परिषद के सदस्य थे। 1911 में R. G. Bhandarkar को ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।

योगदान

रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की सबसे बड़ी देन लुप्तप्राय इतिहास के तत्वों को प्रकाश में आना है।

उस समय तक भारत में इस विषय की ओर किसी का ध्यान नहीं गया था।

उन्होंने ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि प्राकृत भाषाओं का अध्ययन करके शोध के इस क्षेत्र में पथ-प्रदर्शक का काम किया। सरकार ने इन्हें हस्तलिखित ग्रंथों की खोज और प्रकाशन का कार्य सौंपा था। शोध के बाद जो पांच विशाल खंड प्रकाशित किए वे पुरातत्व के इतिहासकारों के लिए आज भी मार्गदर्शक हैं।

1883 के वियना के प्राच्य भाषा सम्मेलन में इनकी विद्वता से विदेशी विद्वान् चकित रह गए थे।

उनके सम्मान में 1917 में पूना में ‘भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की गई।

भंडारकर समाजसुधारक और सार्वजनिक नेता के रूप में भी प्रसिद्ध थे।रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ”प्रार्थना समाज‘ के सक्रिय सदस्य थे। राजनीति में भी ये भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत बनाए रखने के पक्षधर में थे।

ऑल इण्डिया सोशल कांफ़्रेंस (अखिल भारतीय सामाजिक सम्मलेन) के सक्रिय सदस्य रहे रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने अपने समय के सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाते हुए अपने शोध आधारित निष्कर्षों के आधार पर विधवा विवाह का समर्थन किया।

इसके साथ ही उन्होंने जाति-प्रथा एवं बाल विवाह की कुप्रथा का खण्डन भी किया। सामाजिक रूढ़िवादी माहौल के बावजूद भण्डारकर ने अपनी पुत्रियों और पौत्रियों को विश्वविद्यालयी शिक्षा दिलायी और अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की परिपक्वता प्राप्ति तक उनका विवाह नहीं किया।उन्होंने अपनी विधवा पुत्री के पुनर्विवाह के लिए भी अनुमति दी और उन्होंने अपनी विधवा पुत्री का पुनर्विवाह करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया था।

पुरस्कार – रामकृष्ण गोपाल भंडारकर की जीवनी

  • 1863 में ही उन्हे परास्नातक की उपाधि प्राप्त से नवाजा गया ।
  • 1885 में जर्मनी की गोतिन्गे युनिवर्सिटी ने रामकृष्ण गोपाल भंडारकर को ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की गई।
  • 1911 में उन्हे ‘नाइट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर की मृत्यु 24 अगस्त 1925 को निधन हो गया।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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