राहुल सांकृत्यायन की जीवनी – Rahul Sankrityayan Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको राहुल सांकृत्यायन की जीवनी – Rahul Sankrityayan Biography Hindi के बारे में बताएगे।

राहुल सांकृत्यायन की जीवनी – Rahul Sankrityayan Biography Hindi

राहुल सांकृत्यायन की जीवनी

राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा साहित्य का प्रवर्तक (जनक ) माना जाता है।

वे एक जाने-माने बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने यात्रा वृतांत एवं विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए।

बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में अनुक्रमिक माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तककी यात्रा की थी।

जन्म

राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल, 1893 को पन्दहा ग्राम, ज़िला आजमगढ,उत्तर प्रदेश में हुआ था । उनके पिता का नाम गोवर्धन पाण्डे और उनकी माता का नाम कुलवन्ती था।

उनके चार भाई और एक बहन थी, लेकिन उनकी बहन की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। राहुल जी अपने भाइयों में बड़े थे। पितृकुल से मिला हुआ उनका नाम ‘केदारनाथ पाण्डे’ था।राहुल सांकृत्यायन की जीवनी – Rahul Sankrityayan Biography Hindi

1930 ई. में लंका में बौद्ध होने पर उनका नाम ‘राहुल’ रख दिया गया। बौद्ध होने के पहले राहुल जी ‘दामोदर स्वामी’ के नाम से भी पुकारे जाते थे।

उनके ‘राहुल’ नाम के आगे ‘सांस्कृत्यायन’ इसलिए लगा कि पितृकुल सांकृत्य गोत्रीय है।

करियर – राहुल सांकृत्यायन की जीवनी

राहुल जी का बचपन उनके ननिहाल पन्दहा गाँव बीता। राहुल जी के नाना का नाम था पण्डित राम शरण पाठक, जो फ़ौज में नौकरी कर चुके थे।नाना के मुख से सुनी हुई फ़ौज़ी जीवन की कहानियाँ, शिकार के अद्भुत वृत्तान्त, देश के कई प्रदेशों का रोचक वर्णन, अजन्ता-एलोरा की किवदन्तियों एवं नदियों, झरनों के वर्णन आदि ने राहुल जी के आने वाले जीवन की भूमिका तैयार कर दी थी। इसके अलावा दर्जा तीन की उर्दू किताब में पढ़ा हुआ ‘नवाजिन्दा-बाजिन्दा’ का शेर-

सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहाँ,
ज़िन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ

राहुल जी को दूर देश जाने के लिए प्रेरित करने लगा।इसके कुछ समय के बाद घर छोड़ने का संयोग यों उपस्थित हुआ कि घी की मटकी सम्भाली नहीं और दो सेर घी ज़मीन पर बह गया। उन्हे नाना की डाँट का भय था, नवाजिन्दा बाजिन्दा का वह शेर और नाना के ही मुख से सुनी कहानियाँ इन सबने मिलकर राहुल जी  को घर से बाहर निकालने के लिए मजबूर कर दिया।

राहुल जी की जीवन यात्रा के अध्याय इस प्रकार हैं-

  • पहली उड़ान वाराणसी तक
  • दूसरी उड़ान कलकत्ता तक
  • तीसरी उड़ान दोबारा कलकत्ता तक

इसके बाद वे दोबारा वापस आने पर हिमालय की यात्रा पर चले गये, वे 1990 से 1914 तक वैराग्य से प्रभावित रहे और हिमालय पर यायावर जीवन जिया। वाराणसी में संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया। परसा महन्त का सहचर्य मिला, आगरा में पढ़ाई की, लाहौर में मिशनरी कार्य किया और इसके बाद भी ‘घुमक्कड़ी का भूत’ हावी रहा। वे कुर्ग में भी चार महीनों तक रहे।राहुल सांकृत्यायन ने छपरा के लिए प्रस्थान किया, बाढ़ पीड़ितों की सेवा की, स्वतंत्रता आंदोलन में सत्याग्रह में भाग लिया और उसमें जेल की सज़ा मिली,वे बक्सर जेल में छ: महीनों तक रहे, राहुल सांकृत्यायन ज़िला कांग्रेस के मंत्री बने और इसके बाद नेपाल में डेढ़ महीने तक रहे, उन्हे हज़ारी बाग़ जेल में भी रहना पड़ा।

 

यात्राएँ

  • राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा की।
  • उन्होने दो बार लद्दाख यात्रा,
  • दो बार तिब्बत यात्रा,
  • जापान,
  • कोरिया,
  • मंचूरिया,
  • सोवियत भूमि (1935 ई.),
  • ईरान में पहली बार,
  • 1936 में तिब्बत में तीसरी बार,
  • 1937 में सोवियत भूमि में दूसरी बार,
  • 1938 में तिब्बत में चौथी बार यात्रा की।

राहुल जी की प्रारम्भिक यात्राओं ने उनके चिंतन को दो दिशाएँ दीं। एक तो प्राचीन और अर्वाचीन विषयों का अध्ययन एवं दूसरे देश-देशान्तरों की अधिक से अधिक प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करना। इन दोनों प्रवृत्तियों से अभिभूत होकर राहुल जी महान् पर्यटक और महान् अध्येता बने।

योगदान – राहुल सांकृत्यायन की जीवनी

राहुल सांकृत्यायन की एक कर्मयोगी योद्धा की तरह बिहार के किसान-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका थी । 1940 के दौरान किसान-आन्दोलन के सिलसिले में उन्हें एक साल की जेल हुई तो देवली कैम्प के इस जेल-प्रवास के दौरान उन्होंने ‘दर्शन-दिग्दर्शन’ ग्रन्थ की रचना की 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद वे जेल से निकलने पर किसान आन्दोलन के उस समय के शीर्ष नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्र ‘हुंकार’ का उन्हें सम्पादक बनाया गया। ब्रिटिश सरकार ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाते हुए गैर कांग्रेसी पत्र-पत्रिकाओं में चार अंकों हेतु ‘गुण्डों से लड़िए’ शीर्षक से एक विज्ञापन जारी किया। इसमें एक व्यक्ति गाँधी टोपी व जवाहर बण्डी पहने आग लगाता हुआ दिखाया गया था।राहुल सांकृत्यायन ने इस विज्ञापन को छापने से इन्कार कर दिया पर विज्ञापन की मोटी धनराशि देखकर स्वामी सहजानन्द ने इसे छापने पर जोर दिया।

इसी प्रकार 1940 में ‘बिहार प्रान्तीय किसान सभा’ के अध्यक्ष रूप में जमींदारों के आतंक की परवाह किए बिना वे किसान सत्याग्रहियों के साथ खेतों में उतर हँसिया लेकर गन्ना काटने लगे। प्रतिरोध स्वरूप ज़मींदार के लठैतों ने उनके सिर पर वार कर लहुलुहान कर दिया पर वे हिम्मत नहीं हारे। इसी तरह न जाने कितनी बार उन्होंने जनसंघर्षों का सक्रिय नेतृत्व किया और अपनी आवाज को मुखर अभिव्यक्ति दी। राहुल सांकृत्यायन ने किसान मज़दूरों के आन्दोलन में 1938-44 तक भाग लिया, किसान संघर्ष में 1936 में भाग लिया और सत्याग्रह भूख हड़ताल किया। राहुल सांकृत्यायन जी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। उन्होने 1940 से 1942 ई. तक 29 मासजेल में बिताए। इसके बाद उन्होने सोवियत रूस के लिए दोबारा प्रस्थान किया। रूस से लौटने के बाद राहुल जी भारत में रहे और कुछ समय के बाद चीन चले गये, फिर लंका चले गये।

रचनाएँ

कहानियाँ

  • सतमी के बच्चे
  • वोल्गा से गंगा
  • बहुरंगी मधुपुरी
  • कनैला की कथा

उपन्यास

बाईसवीं सदी जीने के लिए सिंह सेनापति
जय यौधेय भागो नहीं, दुनिया को बदलो मधुर स्वप्न
राजस्थान निवास विस्मृत यात्री दिवोदास

आत्मकथा

  • मेरी जीवन यात्रा

जीवनी

सरदार पृथ्वीसिंह नए भारत के नए नेता बचपन की स्मृतियाँ अतीत से वर्तमान
स्तालिन लेनिन कार्ल मार्क्स माओ-त्से-तुंग
घुमक्कड़ स्वामी मेरे असहयोग के साथी जिनका मैं कृतज्ञ वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली
सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन कप्तान लाल सिंहल के वीर पुरुष महामानव बुद्ध
यात्रा साहित्य
लंका जापान इरान
किन्नर देश की ओर चीन में क्या देखा मेरी लद्दाख यात्रा
मेरी तिब्बत यात्रा तिब्बत में सवा बर्ष रूस में पच्चीस मास

अनुवाद

‘शैतान की आँख’ (1923 ई.) ‘विस्मृति के गर्भ से’ (1923 ई.) ‘जादू का मुल्क’ (1923 ई.)
‘सोने की ढाल’ (1938) ‘दाखुन्दा’ (1947 ई.) ‘जो दास थे’ (1947 ई.)
‘अनाथ’ (1948 ई.) ‘अदीना’ (1951 ई.) ‘सूदख़ोर की मौत’ (1951 ई.)
‘शादी’ (1952 ई.)

पुरस्कार

  • राहुल सांकृत्यायन को 1958 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’
  • 1963 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया।

मृत्यु – राहुल सांकृत्यायन की जीवनी

राहुल सांकृत्यायन को अपने जीवन के आखिरी दिनों में ‘स्मृति लोप’ (भूलने की बीमारी) जैसी अवस्था से गुजरना पड़ा और इलाज के लिए उन्हें मास्को ले जाया गया। राहुल सांकृत्यायन की मृत्यु 14 अप्रैल, 1963 दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल मे हुई थी।

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