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राजा कुरु की जीवनी – Raja Kuru Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको राजा कुरु की जीवनी – Raja Kuru Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

राजा कुरु की जीवनी – Raja Kuru Biography Hindi

राजा कुरु की जीवनी
राजा कुरु की जीवनी

Raja Kuru महाभारत में वर्णित ‘कुरु वंश‘ के सबसे पहले पुरुष माने जाते हैं।

वे बड़े प्रतापी और तेजस्वी राजा थे।

उन्ही के नाम से कुरु प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था।

उनका क्षेत्र आधुनिक हरियाणा (कुरुक्षेत्र) के आस-पास था। उनकी राजधानी संभव ही हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ थी।

कुरु के राज्य का विस्तार कहाँ तक रहा होगा ये भारतियों के लिए खोज का विषय है लेकिन विश्व इतिहास में कुरु प्राचीन विश्व के सबसे अधिक विशाल साम्राज्य को नए आयाम देने वाला चक्रवर्ती राजा था.

उन्होने ईरान में मेड साम्राज्य को अपने ही ससुर अस्त्यागस से हस्तांतरित करते हुए साम्राज्य का नया नाम अजमीढ़ साम्राज्य रखा था उन्हीं के नाम पर कुरु वंश की शाखाएँ निकलीं और विकसित भी हुईं।

एक से एक प्रतापी और तेजस्वी वीर कुरु के वंश में पैदा हुए।

पांडवों और कौरवों ने भी कुरु वंश में ही जन्म लिया था।

विश्व प्रसिद्ध ‘महाभारत का युद्ध’ भी कुरुवंशियों में ही लड़ा गया।

जन्म – राजा कुरु की जीवनी

राजा कुरु का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था।

उनके पिता का नाम संवरण था और उनकी माता का नाम ताप्ती था।

हिन्दू धार्मिक ग्रंथ ‘महाभारत‘ के अनुसार हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा था, जिसका नाम संवरण था।

संवरण वेदों को मानने वाला और सूर्यदेव का उपासक था।

वह जब तक वे सूर्यदेव की उपासना नहीं कर लेते थे, तब तक जल का एक घूंट भी कंठ के नीचे नहीं उतारता थे।

एक दिन संवरण हिम पर्वत पर हाथ में धनुष-बाण लेकर आखेट के लिए भ्रमण कर रहा था, तभी उसे एक अत्यंत सुंदर युवती दिखाई दी। वह युवती इतनी सुंदर थी कि संवरण उस पर आकृष्ट हो गया। वे उसके पास जाकर बोले – “तन्वंगी, तुम कौन हो? तुम देवी हो, गंधर्व हो या किन्नरी हो? तुम्हें देखकर मेरा चित्त चंचल और व्याकुल हो उठा है।

क्या तुम मेरे साथ गंधर्व विवाह करोगी? मैं सम्राट हूँ, तुम्हें हर तरह से सुखी रखूँगा।”

युवती ने संवरण को बताया कि वह सूर्य की छोटी पुत्री ताप्ती है।

उसने यह भी कहा कि जब तक मुझे मेरे पिता आज्ञा नहीं देंगे, मैं आपके साथ विवाह नहीं कर सकती।

यदि आपको मुझे पाना है तो मेरे पिता को प्रसन्न कीजिए।

” संवरण ने सूर्यदेव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया और वरदान स्वरूप पत्नी रूप में ताप्ती को माँग लिया।

ताप्ती और संवरण से ही कुरु का जन्म हुआ।

कुरु महाजनपद

राजा कुरु के नाम से ही ‘कुरु महाजनपद’ का नाम प्रसिद्ध हुआ, जो प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। उनका क्षेत्र आधुनिक हरियाणा (कुरुक्षेत्र) के आस-पास था। उनकी राजधानी संभवतः हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ थी। कुरु के राज्य का विस्तार कहाँ तक रहा होगा, ये भारतियों के लिए खोज का विषय है। लेकिन विश्व इतिहास में कुरु प्राचीन विश्व के सबसे विशाल साम्राज्य को नए आयाम देने वाले चक्रवर्ती राजा थे। उन्होंने ईरान में मेड़ साम्राज्य को अपने ही ससुर अस्त्यागस से हस्तांतरित करते हुए साम्राज्य का नया नाम ‘अजमीढ़ साम्राज्य’ रखा था। इस साम्राज्य की सीमाएँ भारत से मिस्र, लीबिया और ग्रीक तक फैली हुई थी ।

वंश परम्परा – राजा कुरु की जीवनी

ऐसा माना जाता है कि कौरव चन्द्रवंशी थे। वे अपने आदिपुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे।

इनके इष्टदेव शिव और गुरु शुक्राचार्य थे।

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ।

पुरुरवा के कौशल्या से जन्मेजय, जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान, प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति, संयाति के वारंगी से अहंयाति, अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम, सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन, जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन, अवाचीन के मर्यादा से अरिह, अरिह के खल्वंगी से महाभौम, महाभौम के शुयशा से अनुतनायी, अनुतनायी के कामा से अक्रोधन, अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि, देवातिथि के मर्यादा से अरिह, अरिह के सुदेवा से ऋक्ष, ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार, मतिनार के सरस्वती से तंसु, तंसु के कालिंदी से इलिन, इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए।

दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए, भरत के सुनंदा से भमन्यु, भमन्यु के विजय से सुहोत्र, सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती, हस्ती के यशोधरा से विकुंठन, विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़, अजमीढ़ से संवरण हुए, संवरण के ताप्ती से कुरु हुए, जिनके नाम से ये वंश ‘कुरु वंश’ कहलाया।

कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा, प्रतिश्रावा से प्रतीप, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक तथा शांतनु का जन्म हुआ था।

देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए और बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए।

इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली।

शांतनु के गंगा से देवव्रत हुए, जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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