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राजा रवि वर्मा की जीवनी – Raja Ravi Verma Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको राजा रवि वर्मा की जीवनी – Raja Ravi Verma Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

राजा रवि वर्मा की जीवनी – Raja Ravi Verma Biography Hindi

राजा रवि वर्मा की जीवनी

Raja Ravi Verma भारत के मशहूर चित्रकार थे।

18वी सदी के भारतीय कलाकार राजा रवि वर्मा को ‘द फादर ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट’ के रूप में भी जाना जाता रहा है।

उन्होंने भारत के देवी देवताओं और महाभारत और रामायण के पात्रों को अपनी
कल्पना से चेहरे दिए।

उनके द्वारा बनाई गई पौराणिक पात्रों की तस्वीरों को भगवान के रूप में देश के हर घर में पूजा जाता है।

2014 में आई फिल्म ‘रंगरसिया’ उन्ही की जिंदगी पर आधारित थी।

राजा रवि वर्मा का किरदार मशहूर अभिनेता रणदीप हुड्डा ने निभाया था।

1904 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें केसर-ए-हिंद से नवाजा था।

जन्म

राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के किलिमानूर गांव में हुआ था।

उनका परिवार त्रावणकोर के शाही परिवार से संबध रखता था।

बचपन से ही रवि वर्मा को चित्र बनाने का काफी शौक था और वो अपने घरो की दीवारों पर कोयले से चित्र बनाया करते थे।

शिक्षा – राजा रवि वर्मा की जीवनी

राजा रवि वर्मा की कला के प्रारंभिक शिक्षा तिरुवंतपुरम के शाही दरबार में हुई।

कोयले से दीवार पर चित्र बनाने के कारण उनके चाचा ने रवि वर्मा को मारने की बजाय उनकी कला को पहचाना और अपने साथ तिरुवंतपुरम ले गए और वहीं से उन्हें कला के प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त हुई।

चित्रकला की आगे की शिक्षा उन्होंने मदुरै के चित्रकार अलाग्री नायडू तथा विदेशी चित्रकार श्री थियोडोर जेंसन से, जो भ्रमणार्थ भारत आये थे, से प्राप्त की थी।

दोनों यूरोपीय शैली के कलाकार थे। राजा अयिल्यम थिरूनल के महल में रवि वर्मा ने अनेक प्रकार की भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता के चित्र देखे।

इन चित्रों को देखकर उन्हें यूरोपीय चित्रों में एक गहराई दिखी जिसे वो भी अपनी चित्रकला में समाहित करना चाहते थे ।

करियर – राजा रवि वर्मा की जीवनी

राजा रवि वर्मा ने अपने करियर की शुरुआत कम उम्र में ही कर दी थी और जल्द ही उन्हें अपने कामों के लिए व्यापक पहचान भी मिल गयी।

उन्होने भारतीय धर्म के सभी देवी देवताओं के चित्र अत्यंत कलात्मकता ,सुन्दरता ,मधुरता एवं सौष्ठव के साथ बनाये है।

उनके अद्वितीय चित्रकला कौशल के अनुपम उदाहरण विश्वामित्र , मेनका के चित्र , हरीशचंद्र , श्रीकृष्ण ,बलराम ,मोहिनी ,रुकमागंधा तथा दुष्यंत-शकुंतला आदि है।

जब 1893 में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगायी गयी थी तब उस चित्र प्रदर्शनी को देखने का का अधिकार केवल अमीर लोगो को ही था। इसके बाद में चित्रकला जब जनसामान्य तक पहुची ,तब लोगो को उनकी अद्भुद चित्रकला से परिचित होने का अवसर मिला

उन्होंने चित्रकारी के लिए विषयों की तलाश में समूचे देश का भ्रमण किया।

वे हिन्दू देवियों के चित्रों को अक्सर सुन्दर दक्षिण भारतीय महिलाओं के ऊपर दर्शाते थे।

राजा रवि वर्मा ने महाभारत के महत्वपूर्ण कहानियों जैसे ‘दुष्यंत और शकुंतला’ और ‘नल और दमयंती’ के ऊपर भी चित्रकारी की।

उन्होंने हिन्दू पौराणिक किरदारों को अपनी चित्रकारी में महत्वपूर्ण स्थान दिया।

राजा रवि वर्मा के आलोचक उनकी शैली को बहुत ज्यादा दिखावटी और भावनात्मक मानते हैं पर उनकी कृतियां भारत में बहुत लोकप्रिय हैं।

उनके कई चित्र बड़ोदा के लक्ष्मी विलास पैलेस में सुरक्षित हैं।

उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा ने राजा रवि वर्मा की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सबसे पहले उन्होंने पारंपरिक तंजावुर कला शैली प्रशिक्षण प्राप्त की जिसके बाद यूरोपीय कला और तकनीक का अध्ययन किया।

राजा रवि वर्मा की कला कृतियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

उनकी कलाकृतियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा गया है। वे है –

यद्यपि जनसाधारण में राजा रवि वर्मा की लोकप्रियता इतिहास पुराण व देवी देवताओं के चित्रों के कारण हुई लेकिन तैल माध्यम में बनी अपनी प्रतिकृतियों के कारण वे विश्व में सर्वोत्कृष्ट चित्रकार के रूप में जाने गये।

आज तक तैलरंगों में उनकी जैसी सजीव प्रतिकृतियाँ बनाने वाला कलाकार दूसरा नहीं हुआ।

मुख्य कृतियाँ – राजा रवि वर्मा की जीवनी

अन्य जानकारी

सम्मान और पुरस्कार

मृत्यु – राजा रवि वर्मा की जीवनी

2 अक्टूबर,1906 को राजा रवि वर्मा की मृत्यु हो गई।

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