आज इस आर्टिकल में हम आपको रानी दुर्गावती की जीवनी – Rani Durgavati Biography Hindi के बारे में बताएगे।
रानी दुर्गावती की जीवनी – Rani Durgavati Biography Hindi
रानी दुर्गावती भारत की एक महान वीरांगना थीं
उन्होने अपने विवाह के चार साल बाद अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद
अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना शुरू किया।
जन्म
दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था।
बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 की दुर्गा अष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया।
उनके पिता का नाम राजा कीर्तिसिंह चंदेल था।
दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे।
महारानी दुर्गावती राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थी।
दुर्गावती अपने नाम के अनुसार ही तेज, सुशील, साहसी और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई।
दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।
योगदान – रानी दुर्गावती की जीवनी
दुर्भाग्यवश विवाह के चार साल बाद ही राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु हो गई।उस समय दुर्गावती की गोद में उनका तीन वर्षीय नारायण ही था। इसलिए रानी ने खुद ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया।उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।
युद्ध
इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था। चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी। उनके राज्य का नाम [गोंडवाना]] था जिसका केन्द्र जबलपुर था। रानी दुर्गावती इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।
रानी दुर्गावती के सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर वह हर बार पराजित हुआ। महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवादशुरू करनेके लिए रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वसनीय वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने उनकी इस यह मांग ठुकरा दिया।इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला दिया । दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया और उन्होने खुद पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।
इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी को भी अपार हानि हुई थी।
सम्मान
- जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वहाँ पर रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर उन्हे श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
- जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही के नाम पर बना हुआ है।
मृत्यु – रानी दुर्गावती की जीवनी
अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। लेकिन उस समय रानी का पक्ष कमजोर था, इसलिए रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर लेकिन उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वजीर आधारसिंह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इसलिए रानी ने अपनी कटार को खुद ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।