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रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी – Rani Gaidinliu Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी – Rani Gaidinliu Biography Hindi के बारे में बताएगे।

रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी – Rani Gaidinliu Biography Hindi

रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी
रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी

(English – Rani Gaidinliu) रानी गाइदिन्ल्यू  भारत की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं।

उन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के लिए नागालैण्ड में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया।

वे 13 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी।

17 अक्टूबर 1932 को समर्थकों के साथ उन्हे उम्रकैद की सजा हुई।

वे 1933 से 1947 तक जेल में रही। उन्हे रानी का खिताब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिया था।

रानी 1960 से 1966 तक एजे फिजो के नागा नेशनल काउंसिल से लड़ने के लिए वह भूमिगत रही।

इसके बाद में उनके समर्थकों को नागालैण्ड आंर्ड पुलिस की बटालियन के रूप में शामिल कर लिया गया।

संक्षिप्त विवरण

 

नामरानी गाइदिनल्यू
पूरा नामरानी गाइदिनल्यू
जन्म 26 जनवरी 1915
जन्म स्थानमणिपुर
पिता का नामलोत्तनोहोड़
माता का नामकलोतनेनल्यु
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू

जन्म – रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी

Rani Gaidinliu का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के एक छोटे से गाँव में हुआ था।

उनके पिता का नाम लोत्तनोहोड़ तथा उनकी माता का नाम कलोतनेनल्यु था।

रानी गाइदिनल्यू अपने माता – पिता की आठ संतानों में से पाँचवे नंबर की थी, जिनमें वे खुद, छ बहनें और एक छोटा भाई था।

गाइदिनल्यू के परिवार का सम्बन्ध गाँव के शासक वर्ग से था।

उनके गाँव में कोई स्कूल नहीं था, इस वजह से रानी गाइदिनल्यू की औपचारिक शिक्षा नहीं हो सकी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

Rani Gaidinliu13 वर्ष की आयु में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेजों ने उन्हें 29 अगस्त, 1931 को फांसी पर लटका दिया।

अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने गांधी जी के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की।

उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कदम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जनजातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे।

गिरफ्तारी

नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे।

इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की सेना का सामना किया।

वह छापामार युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। अंग्रेज उन्हें बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था।

इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए लेकिन इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुलेआम ‘असम राइफल्स’ की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया।

 

स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा किला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें।

इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया।  गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं।

17 अक्टूबर 1932 को समर्थकों के साथ उन्हे उम्रकैद की सजा हुई। वे 1933 से 1947 तक जेल में रही।

उन्होने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए।

1947 में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं।

रानी 1960 से 1966 तक एजे फिजो के नागा नेशनल काउंसिल से लड़ने के लिए वह भूमिगत रही।

इसके बाद में उनके समर्थकों को नागालैण्ड आंर्ड पुलिस की बटालियन के रूप में शामिल कर लिया गया।

पुरस्कार – रानी गाइदिन्ल्यू की जीवनी

स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र देकर और राष्ट्रपति की ओर
से ‘पद्मभूषण’ की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

रानी गाइदिनल्यू की मृत्यु 17 फरवरी 1993 को हुई ।

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