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सदाशिवराव भाऊ की जीवनी – Sadashivrao Bhau Biography Hindi

Sadashivrao Bhau Peshwa बालाजी बाजीराव का चचेरा भाई था. वह शासन प्रबंध में बहुत कुशल था और मराठा साम्राज्य का समस्त शासन भार पेशवा ने उसी पर छोड़ दिया था। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको सदाशिवराव भाऊ की जीवनी – Sadashivrao Bhau Biography Hindi के बारे में बताएंगे ।

सदाशिवराव भाऊ की जीवनी – Sadashivrao Bhau Biography Hindi

सदाशिवराव भाऊ की जीवनी

जन्म

सदाशिव राव भाऊ का जन्म 4 अगस्त 1730 को हुआ था। उनके पिता का नाम चिमनाजी अप्पा और उनकी माता का नाम राखमबाई था। सदाशिवराव भाऊ मराठा सेना के सेनानायक थे।

बाजीराव पेशवा के भाई चिमनाजी के पुत्र सदाशिवराव भाऊ को देशी राज्यों के विरुद्ध सैनिक सफलताओं के कारण है, और पानीपत में मराठों के बीच में पराजय का आवश्यकता से अधिक दोषी माना गया।

अनुकूल प्रकृति होते हुए भी महत्वाकांक्षी और राष्ट्रवादी होने से अधिकतर लालची घमंडी हटाए गए।

शिक्षा (दीक्षा)

रामचंद्र बाबा की दीक्षा और प्रेरणा से शिवराव भाऊ ने शासन प्रबंधन में असाधारण दक्षता प्राप्त की, लेकिन वही भाऊ और पेशवा के बीच मन मुटाव बढ़ाने का भी कारण बना।

युद्ध

1746 में  शिवराव भाऊ का पहला कार्य पश्चिमी कर्नाटक में मराठा आधिपत्य स्थापित करना था. इसके बाद में 1750 में विद्रोही यामाजी शिवदेव को पराजित कर उसने संगोला का किला अपने अधीन कर लिया।

रामचंद्र बाबा की प्रेरणा से नई योजना को लागू करके उसने मराठा शासन में क्रांति स्थापित की और पेशवा ने भाऊ के कार्यों को अपने अधिकार के विरुद्ध समझा जिस वजह से पेशवा भाऊ और बाबा से नाराज हो गए।

तब बाबा से प्रोत्साहित हो भाऊ ने पेशवा से शासनसंचालन का पूर्णाधिकार माँगा, वही पद जो विगत पेशवा के समय से उसके पिता का था।

पेशवा की अस्वीकृति पर भाऊ ने कोल्हापुर के राजा के पेशवा के पद को ग्रहण करने की धमकी दी। किंतु बाद में महादोवा पुरंदरे के पद त्याग के कारण दोनों में समझौता हो गया, जिससे महाराष्ट्र में गृहयुद्ध की सम्भावना टल गई

1751 से 1759 तक, भाऊ ने पेशवा के साथ कुछ सफल सैनिक अभियानों में भाग लिया, किंतु मुख्यत: उसका कार्यक्षेत्र शासनप्रबंध ही रहा, जिसमें उसने पूर्ण योग्यता का परिचय दिया।

1760 भाऊ की ख्याति का चरमोत्कर्ष था, जब ऊदगिरि के युद्ध में निजाम को पूरी तरह से हराकर उसने महाराष्ट्र साम्राज्य का सीमाविस्तार किया। किंतु तभी महाराष्ट्र के भावी अनिष्ट की पूर्वसूचना के रूप में पेशवा को अहमदशाह दुर्रानी के हाथों बरारघाट में दत्ताजी सिंधिया की पराजय और मृत्यु के समाचार प्राप्त हुए। तब पेशवा ने अपने भाई रघुनाथराव की अपेक्षा भाऊ को दुर्रानी का गतिरोध करने के लिए सेनापति नियुक्त किया।

2 अगस्त को भाऊ ने दिल्ली पर अधिकार किया। 10 अक्टूबर को शाह आलम को दिल्ली का सम्राट् घोषित किया। फिर, 17 अक्टूबर को कुंजपुरा विजय कर, 31 अक्टूबर को वह पानीपत पहुँच गया।

4 नवम्बर को विपक्षी सेनाएँ आमने सामने खड़ी हो गईं। प्राय: ढाई महीने की मोर्चाबंदी के बाद, 14 जनवरी 1761 के दिन समूचे भारतीय इतिहास के घोरतम युद्धों में से एक, पानीपत का युद्ध प्रारंभ हुआ।

मृत्यु

उसकी विशाल सेना को पानीपत के मैदान में, जहाँ पर उसने अपनी मोर्चेबन्दी कर रखी थी, अब्दाली की फ़ौजों ने घेर लिया। 15 जनवरी, 1761 ई. को सदाशिवराव भाऊ ने असाधारण वीरता दिखाई, किन्तु वह मारा गया।

इस युद्ध में पराजय से मराठा शक्ति को गहरा धक्का लगा और इसी आघात से पेशवा की भी मृत्यु हो गई।

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