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संत गरीबदास की जीवनी – Garib Das Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको संत गरीबदास की जीवनी – Garib Das Biography Hindi के बारे में बताएगे।

संत गरीबदास की जीवनी – Garib Das Biography Hindi

संत गरीब दास भक्ति और काव्य के लिए जाने जाते हैं।

गरीब दास ने एक विशाल संग्रह की रचना की जो गरीबग्रंथ के नाम से प्रसिद्द है।

जिसे रत्न सागर भी कहते हैं।

इन्होने गरीबदासी नामक सम्प्रदाय की नींव रखी।

स्वामी चेतन दास के अनुसार इन्होने 18500 से अधिक पदों की रचना की अच।

रोज के अनुसार गरीबदास की ग्रन्थ साहिब पुस्तक में 7000 कबीर के पद लिए गए थे और17000 स्वयं गरीब दास ने रचे थे। गरीबदास का मानना था कि राम में और रहीम में कोई अन्तर नहीं है।

जन्म

संत गरीब दास महाराज का जन्म बैशाख पूर्णिमा के दिन संवत 1774 (1717) को रोहतक ज़िले की झज्जर तहसील के छुड़ानी नामक ग्राम में हुआ थाहुआ था।

उनके पिता का नाम चौधरी बलराम धनखड़ था और उनकी माता का नाम रानी था।

इनके पिता बलराम धनखड़ अपनी ससुराल छुडानी (रोहतक) में अपना गाँव करौथा छोड़कर आ बसे थे।

उनके नानाजी का नाम चौधरी शिवलाल था वे बहुत सारी सम्पति के मालिक थे।

उनके घर कोई लड़का नहीं हुआ था।

केवल एक लड़की रानी थी जिसका विवाह करौथा निवासी चौधरी हरदेव सिंह धनखड़ के बेटे बलराम से कर दिया।

श्री बलराम अपने ससुर शिवलाल के कहने पर अपना गाँव करौथा छोड़कर गाँव छुडानी में घर जमाई बन कर रहने लगे।

तब कुछ समय के बाद रानी से एक रत्न पैदा हुए। जिसका नाम गरीबदास रखा गया।

संत गरीबदास का विवाह नादर सिंह दहिया, गाँव बरौना जिला सोनीपत की पुत्री देवी से हुआ था।

इससे इनको चार बेटे जेतराम, तुरतीराम, अन्गदेराम और आसारामर तथा दो बेटियाँ दिलकौर और ज्ञानकौर पैदा हुई।

गुरु – संत गरीबदास की जीवनी

ग़रीब दास जब 12 वर्ष की आयु के थे, उस समय भैसें चराते हुए उन्हें कबीर साहब के दर्शन हुए थे।

एक अन्य जनश्रुति यह भी है कि ग़रीब दास को स्वप्न में कबीर साहब के दर्शन हुए और उसी क्षण से इन्होंने उन्हें अपना गुरु मान लिया। सत्य यह है कि ग़रीब दास, कबीर साहब को अपना पथ प्रदर्शन मानते थे और उन्हीं के सिद्धान्तों से प्रभावित भी थे। ग़रीब दास ने कभी भी किसी सम्प्रदाय विशेष का भेष धारण नहीं किया और न उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग नहीं किया।

गरीबदास को बचपन से ही वैराग्य हो गया था।

ईश्वर भक्ति, स्पष्टवादिता तथा निर्भीकता के लिए वे बाल्यकाल से ही प्रसिद्द थे।

इन्होने हिंदुत्व और आध्यात्मिकता का बड़ा प्रचार किया।

इनमें जब जेतरामजी के जगन्नाथ पुत्र हुआ तो वह गृहस्थ छोड़कर नांगा साधू बन गया।

वह साधू करौथा गाँव में आकर रहने लगा तथा 1780 में महंतपुर (जलन्धर) में इनका निधन हो गया।

जहाँ पर उनकी छतरी बनी हुई हैं। इनकी एक छतरी करौथा में भी बनाई गयी है।

गरीबदास के दूसरे पुत्र तुरतीराम छुडानी की गद्दी पर बैठे जो 40 वर्ष तक आसीन रहे।

सन 1817 में इनका स्वर्गवास हो गया।

इनकी दोनों पुत्रियाँ पूरी आयु कंवारी रहकर ईश्वर भक्ति करती रही। एक बार गरीबदास को मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीला (1719 -1748) ने आशीर्वाद लेने के लिए दिल्ली बुलाया। तो गरीबदासने बादशाह के सामने तीन बातें रखी।

संत गरीबदास

संत गरीबदास  की तीनों बातें बादशाह ने मानली तो उन्होने आशीर्वाद दिया “जो कोई माने शब्द हमारा, राज करें काबुल कंधारा”लेकिन मुल्लाओं ने कहा कि “काफिर का कहा मानना नापाक हो जाता है,” शाह को तीनों बातें मानने से रोक दिया। बंदी बनाने तक का षडयंत्र रचा गया। लेकिन जब महाराज गरीबदास को इसका पता चला तो वह सेवकों सहित दिल्ली छोड़ गए तथा यह श्राप दे गए कि “दिल्ली मंडल पाप की भूमाधरती नाल जगाऊ सूभा” अर्थात दिल्ली पाप की भूमि बन गई है और यहाँ पर शत्रुओं के घोडों के खुरों की धूल उड़कर रहेगी। उनके श्राप के अनुसार अगले वर्ष ऐसा ही हुआ।

नादिरशाह ने दिल्ली पर धावा बोल कर इसे खूब लूटा तथा कत्ले आम किया।

गरीबदास जी कबीरदास जी के अनुयायी थे। वे ग्रामीणों को उपदेश करते थे

गरीब गाड़ी बाहो धर रहो। खेती करो, खुशहाल साईं सर पर रखिये तो सही भक्ति हरलाल”
उन्होंने आगे कहा
“दास गरीबा कहे दर्वेशा रोटी बाटों सदा हमेशा। “

उनकी 12 बोरियों का विशाल संग्रह गरीबग्रंथ के नाम से प्रसिद्द है। जिसे रत्न सागर भी कहते हैं। इन्होने दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी आदि के मठ तथा कुटियाँ बनवाई थी। इन्ही के नाम हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में लगभग 110 गरीबदास के नाम से आश्रम हैं।

अमृतवाणी

आचार्य श्री गरीब दास जी ने अमृतवाणी में सप्ताह के सभी दिनों का अलग-अलग रूप में वर्णन किया है।

अन्तर साधना ही मनुष्य मात्र का परम लक्ष्य है जिसकी और सतगुरु महाराज जी ने निम्नानुसार संकेत किया है।

गरीबदास की बाणी

अमर करू सतलोक पाठाॐ, ताते बन्दी छोड़ कहाॐ I

हम ही सतपुरुश दरवानी, मेट्टू उत्पति आवाजानी I

जो कोई कहा हमारा माने, सार शब्द कुं निश्चय आने I

हम ही शब्द शब्द की खानी, हम अविगत प्रवानी I

हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I

हम ही गरजे, हम ही बरषे, हम ही कुलफ जड़े हम निरखे I

हम ही सराफ जोहरी कहिया, हमरे हाथ लेखन सब बहिया I

यह सब खेल हमरे किये, हमसे मिले सो निश्चय जीये I

हम ही अदली जिन्दा जोगी, हम ही अमी महारस भोगी I

हमरा भेद न जाने कोई, हम ही सत्य शब्द निर्मोही I

ऐसा अदली दीप हमारा, कोटि बैकुण्ठ रूप की लारा I

संख पदम एक फुनि पर साजे, जहाँ अदली सत्य कबीर विराजे I

जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे I

जहाँ संखो ब्रह्म वेद उचारी, कोटि कन्हेया रास विचारी I

हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी I

दास गरीब हुक्म का हेला, हम अविगत अदली का चेला I

रचनाएँ

गरीब दास ने 24 हजार साखिये और पदों का संग्रह ‘हिंखर बोध’ नाम के प्रस्तुत किया था। इनमें से 17 हजार रचनाएँ इनकी हैं और शेष कबीरदास की हैं। इन 17 हजार पदों एवं साखियों में से कईयों का संग्रह वेलवेडियर प्रेस, प्रयाग से ‘गरीब दास की बानी’ नाम से प्रकाशित हुआ है। प्रसिद्ध है कि कबीर साहब की शैली पर उन्होंने भी एक बीजक नामक ग्रंथ की रचना की थी। ग़रीब दास के सम्बन्ध में अनेक चमत्कार प्रसिद्ध हैं।

बादशाह के कैद खाने से चमत्कार द्वारा निकल भागना, श्रद्धा विहीन व्यक्तियों में श्रद्धा का बीज अंकुरित कर देना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

मृत्यु – संत गरीबदास की जीवनी

छुड़ानी में1778 ई. को ग़रीब दास जी ने पार्थिव शरीर का परित्याग करके स्वर्गारोहण किया।

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