नामदेव की जीवनी – Sant Namdev Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको नामदेव की जीवनी – Sant Namdev Biography Hindi के बारे में बताएगे।

नामदेव की जीवनी – Sant Namdev Biography Hindi

नामदेव की जीवनी

Sant Namdev भारत के संत कवि थे।

दुनियाभर में उनकी पहचान “संत शिरोमणि” के रूप में जानी जाती है।

जन्म

Namdev का जन्म 29 अक्टूबर 1270 को महाराष्ट्र के गाँव नरसी-वामनी, ज़िला सितारा(अब इसका नाम नरसी नामदेव है)में हुआ था।

उनके पिता जी का नाम दमशेटी और माता जी का नाम गोनाबाई था।

उनके पिता जी छीपे थे जो कपड़ों की सिलाई का काम करते थे।

उन्होंने ईश्वर की भक्ति और गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता पर ज़ोर दिया।

नामदेव का विवाह रजाई से हुआ और उनका एक बेटा भी है, जिसका नाम विठा है।

लेकिन उनके परिवार और पारिवारिक इतिहास से जुडी कोई भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नही है।

यात्रा

संत ज्ञानदेव और दूसरे संतों के साथ उन्होने सारे देश का भ्रमण किया। वह पंजाब के गुरदासपुर ज़िला के गाँव घुमाण में बीस साल रहे। उन्होंने मराठी, हिंदी और पंजाबी में काव्य रचना की। उनकी वाणी गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है।

Sant Namdev ने भारत के बहुत से भागो की यात्रा कर अपनी कविताओ को लोगो तक पहुचाया है। मुश्किल समय में उन्होंने महाराष्ट्र के लोगो को एकता के सूत्र में बांधने का भी काम किया है।

कहा जाता है की पंजाब के गुरदासपुर जिले के घुमन ग्राम में उन्होंने 20 साल से भी ज्यादा समय व्यतीत किया था। पंजाब में सिक्ख समुदाय के लोग उन्हें नामदेव बाबा के नाम से जानते थे। संत नामदेव में हिंदी भाषा में तक़रीबन 125 अभंगो की रचना की है। जिनमे से 61 अभंग को गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख शास्त्र) में नामदेवजी की मुखबानी के नाम से शामिल किया गया है।

पंजाब के शब्द कीर्तन और महाराष्ट्र के वारकरी कीर्तन में हमें बहुत से समानताये भी दिखाई देती है। पंजाब के घुमन में उनका शहीद स्मारक भी बनवाया गया है। उनकी याद में सिक्खों द्वारा राजस्थान में उनका मंदिर भी बनवाया गया है।

50 साल की उम्र के आस-पास संत नामदेव पंढरपुर में आकर बस चुके थे, जहाँ उनके आस-पास उनके भक्त होते थे। उनके अभंग काफी प्रसिद्ध बन चुके थे और लोग दूर-दूर से उनके कीर्तन सुनने के लिए आते थे। नामदेव के तक़रीबन 2500 अभंगो को नामदेव वाची गाथा में शामिल किया गया है।

साथ ही इस किताब में लंबी आत्मकथात्मक कविता तीर्थावली को भी शामिल किया गया है, जिसमे नामदेव और संत ज्ञानेश्वर की यात्रा के बारे में बताया गया है। इस कविता ने उन्हें मराठी साहित्य का पहला आत्मजीवनी लेखक बनाया।

दोहे – नामदेव की जीवनी

अभिअंतर नहीं भाव, नाम कहै हरि नांव सूं ।
नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबौ केसवे ॥१॥

अभि अंतरि काला रहै, बाहरि करै उजास ।
नांम कहै हरि भजन बिन, निहचै नरक निवास ॥२॥

अभि अंतरि राता रहै, बाहरि रहै उदास ।
नांम कहै मैं पाइयौ, भाव भगति बिसवास ॥३॥

बालापन तैं हरि भज्यौं, जग तैं रहे निरास ।
नांमदेव चंदन भया सीतल सबद निवास ॥४॥

पै पायौ देवल फिरयौ, भगति न आई तोहि ।
साधन की सेवा करीहौ नामदेव, जौ मिलियौ चाहे मोहि ॥५॥

जेता अंतर भगत सूं तेता हरि सूं होइ ।
नाम कहै ता दास की मुक्ति कहां तैं होइ ॥६॥

ढिग ढिग ढूंढै अंध ज्यूं, चीन्है नाहीं संत ।
नांम कहै क्यूं पाईये, बिन भगता भगवंत ॥७॥

बिन चीन्हया नहीं पाईयो, कपट सरै नहीं काम ।
नांम कहै निति पाईये, रांम जनां तैं राम ॥८॥

नांम कहै रे प्रानीयां, नीदंन कूं कछू नांहि ।
कौन भांति हरि सेईये, रांम सबन ही मांहि ॥९॥

समझ्या घटकूं यूं बणै, इहु तौ बात अगाधि ।
सबहनि सूं निरबैरता, पूजन कूं ऐ साध ॥१०॥

साह सिहाणौ जीव मैं, तुला चहोडो प्यंड ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न सब ब्रह्मंड ॥११॥

तन तौल्या तौ क्या भया, मन तोल्या नहि जाइ ।
सांच बिना सीझसि नहीं, नाम कहै समझाइ ॥१२॥

दान पुनि पासंग तुलै, अहंडै सब आचार ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न जग ब्यौहार ॥१३॥

शब्द

  • देवा पाहन तारीअले
  • एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई
  • आनीले कु्मभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ
  • मनु मेरो गजु जिहबा मेरी काती
  • सापु कुंच छोडै बिखु नही छाडै
  • पारब्रहमु जि चीन्हसी आसा ते न भावसी
  • जौ राजु देहि त कवन बडाई

मृत्यु – नामदेव की जीवनी

जुलाई 1350 में 80 साल की उम्र में पंढरपुर में भगवान की शरण में उनकी मृत्यु हो गई।

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