शाह अब्दुल लतीफ एक महान विद्वान संत और अध्यात्मिक कवि थे। अब्दुल लतीफ सिंधी भाषा में गुनगुनाते, बोलते और लिखते थे। जिन्होंने सिन्धी भाषा को विश्व के मंच पर स्थापित किया। शाह लतीफ़ का कालजयी काव्य-संकलन ‘शाह जो रसालो’ सिन्धी समुदाय के दिल की धड़कन सा है। जिसकी वजह से पूरी दुनिया में उनको पहचान मिली। आज भी सिंधी के लोग उनकी रचनाओं को धड़कन की तरह मानते हैं और सिंधी में लिखे गानों को गुनगुनाते हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको शाह अब्दुल लतीफ की जीवनी – Shah Abdul Latif Bhittai Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
शाह अब्दुल लतीफ की जीवनी – Shah Abdul Latif Bhittai Biography Hindi
जन्म
`शाह अब्दुल लतीफ़ का जन्म 18 नवंबर 1689 में हैदराबाद जिला सिंध के खतियान गांव के पास हल हवेली में हुआ था। उनके पैतृक जड़े अफगानिस्तान में थी। शाह अब्दुल लतीफ के पिता का नाम सैयद हबीब शाह था। ऐसा कहा जाता है कि शाह के पिता एक स्थानीय धर्मगुरु बिलावल के साथ आध्यात्मिक संपर्क प्राप्त करने के लिए अफगानिस्तान में सिंध के भानपुर में अपने पैतृक घर मटियारू से चले गए थे। 1713 में सूफी कवि ने सईदा बेगम से निकाह किया। यह प्रेम विवाह था। उनकी पत्नी की कम उम्र में ही मृत्यु हो गई। इससे पहले कि वह किसी बच्चे को जन्म दे पाती। उनका पूरा नाम अब्दुल शाह लतीफ भिट्टाई था।
शिक्षा
अब्दुल लतीफ ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अखूंद नूर एम. भट्टी द्वारा संचालित मदरसे से प्राप्त की। वे कुरान और परंपराओं के ज्ञान में निपुण थे। अब्दुल लतीफ अपने साथ हमेशा कुरान मसनवी मौलाना रूम, और बरली के अपने महान पिता शाह अब्दुल करीम की प्रतियां लेकर जाते थे। कवि ने सिंधी भाषा में बेहतर प्रदर्शन किया। वे उर्दू,फारसी,सरायकी,संस्कृत और बलूची भाषाओं में भी निपुण थे। उनके सबसे पहले गुरु का नाम अखूंद नूर मोहम्मद भट्टी था। हालांकि वे काफी हद तक स्व-शिक्षित थे। उन्हें थोड़ी औपचारिक शिक्षा मिली, लेकिन रिस्लों इन बात का प्रमाण देता है कि वह अरबी और फारसी के अच्छे जानकार थे। कुरान हदीस मौलाना जलालुद्दीन रूमी की मसनवी, शाह करीम की कविताओं के संग्रह के साथ, उनके निरंतर साथी ,समृद्ध संदर्भ थे जो सांस रिसालों मे बने है।
अब्दुल लतीफ अब्दुल लतीफ एक धर्म प्रचारक थे और व्यवहारिक शिक्षा में विश्वास रखते थे। उनकी यात्रा के पृष्ठ भूमि का अधिग्रहण किया उन्होंने सभी रूपों में और सभी सत्रों पर अपव्यय अन्याय और शोषण की निंदा की और सादगी और आतिथ्य की प्रशंसा की उनकी अध्यात्मिक और आशावादी कविता मानव जाति की प्रेम और सार्वभौमिकता का संदेश देती है कि उनकी अध्यात्मिक और रहस्यवादी कविता मानव जाति के प्रेम और सार्वभौमिकता का संदेश देती है।
उनको अपनी मृत्यु से पहले डर था कि लोग उनके द्वारा लिखी गई कविताओं को अनदेखा न कर दे इसलिए उन्होंने किरण झील में अपने लेखों को फैक कर नष्ट कर दिया। लेकिन अपने एक शिष्य के अनुरोध पर सूफी कवि ने अपने नौकर माई नैमत, जिन्होंने अपने अधिकातर छंदो को याद किया था, उन्हें फिर से लिखने के लिए कहा। संदेश को विधिवत रिकॉर्ड किया गया और संकलित किया गया। संकलन की एक प्रति जिसे “गंज” के नाम से जाना जाता हैं। मकबरे मे रखी हुई है।
लतीफ काले दागों से सिला लंबा कुर्ता पहनते थे। लतीफ की कविताएं उस दौर में उर्दू और फारसी में ज्यादा लिख जाती थी। सिंधी भाषा में भी कोई लिखता तो उर्दू और फारसी का मिलान कर देता। उर्दू और फारसी से आजादी दिलाते हुए सिंधी कविताओं को नया मुकाम लतीफ ने दिलाया। लतीफ के लिखे का ही कमाल था कि ‘शाह जो रसीला’ को कई भाषाओं में अनुवाद किया गया ।
अब्दुल लतीफ के बारे में राजमोहन गांधी ने पुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग द मुस्लिम माइंड’ में लिखा है कि जब उनसे कोई पूछता था कि आप का मजहब क्या है तो वे कहते थे कि मेरा कोई मजहब नहीं है, फिर कुछ देर बाद में कहते थे कि हर मजहब ही मेरा मजहब है। सूफ़ी दर्शन कहता है कि जिस प्रकार किसी वृत्त के केंद्र तक अनगिनत अर्द्ध- व्यास पहुँच सकते हैं, वैसे ही सत्य तक पहुंचने के लिए अनगिनत रास्ते हैं। हिंदू और मुस्लिम रास्तों में कोई एक अच्छा रास्ता हो ऐसा नहीं है। कबीर की तरह शाह भी प्रेम को उत्सर्ग से जोड़ते हैं। प्रेम तो सरफ़रोशी चाहता है। इसलिए शाह ने अपनी एक पद में कहते है कि-
सूली से आमंत्रण है मित्रो,
क्या तुम में से कोई जाएगा?
जो प्यार की बात करते हैं,
उन्हें जानना चाहिए,
कि सूली की तरफ ही उन्हें शीघ्र जाना चाहिए!
सम्मान
भिटाई की 16 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण उनके 274 वर्ष के अवसर पर भित्त शाह रेस्ट हाउस के सामने किया गया। प्रतिमा को नादिर अली जमाली ने मूर्तिकला दी थी। जो सिंध विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग से जुड़े हुई हैं। इसे स्थाई रूप से भिलाई मंदिर के बगल में करार झील के केंद्र में स्थापित करने की योजना कीऔर इसे पूरा करने में 10 महीने लगें।
लोकप्रिय संस्कृति में शाह अब्दुल लतीफ भिटाई कि एक हालिया पेंटिंग इसलिए हेडन, सो होदान प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं अंजली मोंटेइरोऔर सेंटर फॉर मीडिया एंड कल्चरल स्टडीज के केपी शंकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पादरी की “जटोई समुदाय” पर एक फिल्म है। कच्छ के महान रंण जो भिटाई के गीत गाते हैं
वह हर साल 14 वें सफर से शुरू होता है और 3 दिनों तक चलता है। 2017में शाह अब्दुल लतीफ का 274 वां उर्स भित शाह शुरू किया गया और माई ढाई,आबिदा परवीन और कई अन्य गायकों और कलाकारों ने प्रदर्शन किया समारोह का उद्घाटन अंतरिम राज्यपाल सिंध ने किया।
मृत्यु
संगीत का बड़ा शौक रखते हुए एक दिन उन्होंने संगीतकारों को संगीत बजाने का आदेश दिया है 3 दिनों तक लगातार खेले। जब संगीतकारों ने थकावट से खेलना बंद कर दिया तो उन्होंने कवि को मृत पाया। 1 जनवरी 1752 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें भिट में दफनाया गया बाद में वहां एक मकबरे का निर्माण किया गया।