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शांता सिन्हा की जीवनी – Shanta Sinha Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको शांता सिन्हा की जीवनी – Shanta Sinha Biography Hindi के बारे में बताएगे।

शांता सिन्हा की जीवनी – Shanta Sinha Biography Hindi

शांता सिन्हा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बालश्रम विरोधी भारतीय कार्यकर्ता हैं।

वे हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर भी रह चुकी हैं।

उन्होने 1991 में एमवी फाउंडेशन की स्थापना की। वे बाल अधिकार आयोग की पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रही।

उन्हे पद्मश्री से नवाजा गया। इसके साथ ही उन्हे मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

पिछले 25 सालों में वे अपने संगठन के माध्यम से करीब 10 लाख बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिला चुकी है।

जन्म

शांता सिन्हा का जन्म 7 जनवरी 1950 को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में हुआ था।

शिक्षा

शांता सिन्हा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा सेंट एन्स हाई स्कूल, सिकंदराबाद से उन्होने कक्षा 8 तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होने कक्षा 9 से 12 तक की शिक्षा कीस हाई स्कूल फॉर गर्ल्स, सिकंदराबाद की। इसके बाद उन्होने पोलेटिकल साइंस में उस्मानिया यूनिवर्सिटी से 1972 में एम.ए. की परीक्षा पास की तथा 1976 में उन्होंने जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।

योगदान – शांता सिन्हा की जीवनी

‘मामिडिपुडी वैंकटरगैया फाउन्डेशन’ (एमवी) की स्थापना

वे हैदराबाद सेंट्रल विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर भी रह चुकी हैं।

उन्होने 1991 में एमवी फाउंडेशन की स्थापना की।

वे बाल अधिकार आयोग की पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रही।

1991 में उन्होंने अपना विचार अपने परिवार के सामने रखा और अपने दादा जी के नाम पर एक संस्था स्थापित की।

उस संस्था का नाम “मामिडिपुडी वैंकटरगैया फाउन्डेशन” रखा गया।

इस संस्था का लक्ष्य बना कि पूरे आन्ध्र प्रदेश से बाल मजदूरी खत्म करके हर एक बच्चे को स्कूल भेजने की परम्परा डालनी है।

अपने इस काम की शुरुआत शान्ता ने रंगारेड्डी ज़िले के ग़रीबी से ग्रस्त गाँवों से की।

शान्ता की संस्था के सदस्य वहाँ के स्थानीय लोगों से मिले।

वहाँ इनका अनुभव बहुत चुनौती भरा रहा। संस्था के लोग इस तलाश में थे कि वह बाल मजदूरी कर रहे बच्चों के परिवार से मिलकर उन्हें बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करें। इस कोशिश में सबकी धारणा यही थी कि इस ग़रीबी में काम में लगे परिवार के सदस्य को काम से हटा कर स्कूल भेजना कैसे सम्भव है…? उन परिवारों के लिए उनके बच्चे जो मजदूरी कर रहे थे, वह परिवार के एक कमाऊ सदस्य जैसे थे।

बाल या बचपन जैसे विशेषण उनकी जिन्दगी में कोई मायने नहीं रखते थे। उन्हें यह लगता था कि पढ़ाई, स्कूल, सब पैसे वाले परिवारों की बातें हैं, जब कि एमवीएफ़ की तरफ से संस्था के लोगों का कहना था कि पढ़-लिख कर ही ग़रीबी से छुटकारा पाया जा सकता है।

यह स्थिति एमवीएफ़ तथा शान्ता के लिए कठिन थी, जिसे उन लोगों को हर हाल में जीतना था।

पिछले 25 सालों में वे अपने संगठन के माध्यम से करीब 10 लाख बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिला चुकी है।

पुरस्कार – शांता सिन्हा की जीवनी

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