श्रीभट्ट जी भगवान कृष्ण के एक अनन्य भक्त थे। विक्रमीय संवत की सोलहवीं सदी से पहले वृन्दावन की पवित्र भूमि मधुर भक्ति से पूरी तरह से अभिभूत थी। इसी समय ब्रजभाषा के महान कवि रसिक श्री भट्ट ने श्री राधा कृष्ण की उपासना से समाज को सरस और नवीन भक्ति चेतना में समान रूप से मिलाकर सगुण लीला का प्रचार किया। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको श्री भट्ट की जीवनी – Shri Bhatt Biography Hindi के बारे में बताएंगे
श्री भट्ट की जीवनी – Shri Bhatt Biography Hindi
जन्म
श्री भट्ट का जन्म संवत् 1595 में अनुमान किया जाता है। श्री भट्ट बज्र और मथुरा की सीमा में रहने को परम सुख और आनंद का साधन मानते थे। ब्रज की लताएं, कुंज, सरिता, हरितिमा और मोहिनी छवि को वे प्राणों से भी प्यारी समझते थे।
शिष्य
श्री भट्ट निंबार्क संप्रदाय के प्रसिद्ध विद्वान ‘केशव कश्मीरी’ के प्रमुख शिष्य थे।
पद
श्रीभट्ट का कविताकाल संवत् 1625 या उसके कुछ आगे तक माना जाता है। उनकी कविता सीधी सादी और चलती भाषा में है। उनके पद भी करीब -करीब छोटे- छोटे हैं। इनकी कृतियों का भी अधिक विस्तारसे वर्णन नहीं किया गया है पर ‘युगल शतक’ नाम का इनका 100 पदों का एक ग्रंथ कृष्णभक्तों में बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। ‘युगल शतक’ के अलावा इनकी एक छोटी सी पुस्तक ‘आदि वाणी’ भी मिलती है। युगल शतक के नाम से उन्होंने 100 पदों की रचना की थी वह भगवान की रस -रूप -माधुरी की उपासना में रात-दिन लीन रहते थे। उनकी भावना परम, पवित्र और शुद्ध थी। इसी के अनुसार उन्हें समय-समय पर भगवान के नए-नए लीलाओं के दर्शन होते रहते थे। जब मगन होकर पद गाने लगते तब कभी-कभी उसी के ध्यान में भगवान की दिव्य झांकी का साक्षात्कार भी हो जाता था। एक बार श्री भट्ट ने भगवती कालिनंदिनी की परम पवित्र तट पर मतभेद कर रहे थे। उन्होंने नीरव और नितान्त शान्त निकुंजों की ओर दृष्टि डाली।भगवान की लीला-माधुरी का रस नयनों में उमड़ आया। आकाश में काली घटाएं छा गई। जमुना की लहरों का यौवन चंचल हो उठा। वंशीवट पर नित्य रास करने वाले राधारमण की वंशीस्वर-लहरी ने उनकी चित्तवृत्ति पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया।वे नंद नंदनंदन और श्री राधारानी की रसमयी छवि पर अपना सबकुछ न्यौछावर करने के लिये विकल हो उठे। सरस्वती ने उनके कंठदेश में करवट ली। ‘सरस समीर की धीमी -धीमी गति’ उनकी दिव्य संगीत-सुधा से आलोडित हो उठी। रसिक श्रीभट्ट के प्राण भगवान के दर्शन के लिए उत्सुक थे। वे गाने लगे-
भीजत कब देखौं इन नैना।
स्यामाजू की सुरँग चूनरी, मोहन को उपरैना
कहते हैं कि राधा कृष्ण इसी रूप में इन्हें दिखाई पड़ गए और इन्होंने पद इस प्रकार पूरा किया –
स्यामा स्याम कुंजतर ठाढ़े, जतन कियो कछु मैं ना।
श्रीभट उमड़ि घटा चहुँ दिसि से घिरि आई जल सेना॥
रस साहित्य में कुशाग्र
“बसौ मेरे नैननि में दोउ चंद’ की कांतिमय इच्छा को पूरा करने की उनकी अतुल संपत्ति थी। भगवान का रस रूप ही भव बंधन से निर्मित होने का कल्याण और विधान था। श्री भट्ट के पदों में भगवान के स्वरुप का चिंतन अधिकता से हुआ है उनकी रस उपासना और भक्ति पद्धति से प्रभावित होकर अन्य रस उपासक और कवियों ने श्री राधा कृष्ण की निकुंज- लीला- माधुरी के और गान से भक्ति साहित्य की श्रीवृद्धि में जो योग दिया है, वह हमेशा सराहनीय है। श्रीभट्ट रस-साहित्य के कुशाग्र और भक्त कवि थे।