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श्रीलाल शुक्ल की जीवनी- Shrilal Shukla Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको श्रीलाल शुक्ल की जीवनी- Shrilal Shukla Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

श्रीलाल शुक्ल की जीवनी- Shrilal Shukla Biography Hindi

श्रीलाल शुक्ल की जीवनी- Shrilal Shukla Biography Hindi

Shrilal Shukla समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिए पहचाने जाने साहित्यकार माने जाते थे।

श्रीलाल शुक्ल जी की ‘राग दरबारी’  तथा ‘विश्रामपुर का संत’ चर्चित कृतियां है।

‘राग दरबारी’ (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसके साथ ही उनके उपन्यास ‘राग दरबारी’ का अंग्रेजी सहित 16 भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, इस पर दूरदर्शन ने एक धारावाहिक का निर्माण किया है श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।

उन्हे साहित्य अकादमी , व्यास सम्मान, पद्मभूषण आदि  कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

जन्म – श्रीलाल शुक्ल की जीवनी

श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर, 1925 को  लखनऊ जिले के एक कस्बे अतरौली में हुआ था।

वह कस्बा भौगोलिक रूप से तो लखनऊ जनपद का हिस्सा था,लेकिन वास्तव में जनपद सीतापुर और हरदोई के सांझी संस्कृति के कस्बे के रूप में जाना जाता रहा है।

इसी जनपद के एक छोटे खेतिहर के परिवार में श्री लाल शुक्ल का जन्म हुआ था।

उनके पितामाह संस्कृत, उर्दू और फारसी के ज्ञानी थे, तथा एक विद्यालय में के अध्यापक के रूप में कार्यरत थे।

श्रीलाल शुक्ल के पिता संगीत के शौकीन थे और पितामह द्वारा एकत्र की गई खेती से ही जीवन यापन करते थे।

1946 में उनके पिता का देहांत हो गया था।

श्रीलाल शुक्ल का विवाह गिरिजा देवी से हुआ था,और उनके चार बच्चे थे जिनके नाम इस प्रकार है – रेखा अवस्थी, मधुलिका मेहता, आशुतोष शुक्ला और डॉ० विनीता माथुर।

श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपने आप में ही एक मिसाल थी।

सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक।

श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषाका काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त था।

श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे।

वे ‘कथाक्रम’ समारोह समिति के भी अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, लेकिन उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है।

वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे थे। न पढ़ने और लिखने के लिए लोग सैद्धांतिकी बनाते हैं। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते।

श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे।

शिक्षा

श्री लाल शुक्ल ने प्रयाग में बी० ए० की शिक्षा ग्रहण की।

अपने पिता की मृत्यु के बाद 1947 में श्रीलाल शुक्ल अपने आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय आ गये और 1948 में एम० ए०. करने के बाद यही से ही कानून की पढ़ाई की।

कानून की पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह कर दिया गया जिसके कारण उनकी की पढ़ाई पूरी ना हो सकी।

करियर – श्रीलाल शुक्ल की जीवनी

1949 में राज्य सिविल सेवा से नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवानिर्वित हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू होता है और इसी के साथ हिंदी गद्य का एक गौरवशाली अध्याय आकार लेने लगता है।

उनका प्रथम प्रकाशित उपन्यास ‘सूनी घाटी का सूरज’ 1957 में तथा प्रथम प्रकाशित व्यंग्य ‘अंगद का पांव’ 1928 में प्रकाशित हुआ था।

भाषा शैली

श्रीलाल शुक्ल जी ने शिवपालगंज के रूप में अपनी अद्भुत भाषा शैली, मिथकीय शिल्प और देशज मुहावरों से गढ़ा था। त्रासदियों और विडंबनाओं के इसी साम्य ने ‘राग दरबारी’ को महान कृति बनाया, तो इस कृति ने श्रीलाल शुक्ल को महान लेखक भी बनाया। राग दरबारी व्यंग्य है या उपन्यास, यह एक श्रेष्ठ रचना है, जिसकी तसदीक करोड़ों पाठकों ने की है और कर रहे हैं।

‘विश्रामपुर का संत’, ‘सूनी घाटी का सूरज’ और ‘यह मेरा घर नहीं’ जैसी कृतियाँ साहित्यिक कसौटियों में खरी साबित हुई हैं। बल्कि ‘विश्रामपुर का संत’ को स्वतंत्र भारत में सत्ता के खेल की सशक्त अभिव्यक्ति तक कहा गया था।

राग दरबारी को इतने वर्षों बाद भी पढ़ते हुए उसके पात्र हमारे आसपास नजर आते हैं।

शुक्ल जी ने जब इसे लिखा था, तब एक तरह की हताशा चारों तरफ़ नजर आ रही थी।

यह मोहभंग का दौर था।

रचनाएँ

उपन्यास-

व्यंग्य निबंध

कहानी संग्रह ( लघुकथाएँ)

1957 – सूनी घाटी का सूरज1958 – अंगद के पाँव1979 – ये घर में नहीं
1962- अज्ञातवास1970 – यहाँ से वहाँ1991 – सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ
1968 – राग दरबारी1979 – मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ2003 – इस उम्र में
1957 – आदमी का जहर1986 – उमरावनगर में कुछ दिन2003 – दस प्रतिनिधि कहानियाँ
1973 – सीमाएँ टूटती हैं1990 – कुछ जमीन में कुछ हवा में2002 -मेरे साक्षातकार
1976 – मकान1995 – आओ बैठ लें कुछ देर2008 – कुछ साहित्य चर्चा भी
1987 – पहला पडाव1996 – अगली शताब्दी के शहर2000 – हिन्दी हास्य व्यंग्य संकलन ( संपादन )
1998 – विश्रामपुर का सन्त2003 – जहालत के पचास साल1989 – भगवती चरण वर्मा ( आलोचना )
1999 – बब्बर सिंह और उसके साथी2005 – खबरों की जुगाली1994 – अमृतलाल नागर ( आलोचना )
2001 – राग विरागबब्बर सिंह और उसके साथी ( बाल साहित्य )1999 – अज्ञेयःकुछ रंग कुछ राग ( आलोचना )

इसके साथ ही उनके उपन्यास ‘राग दरबारी’ का अंग्रेजी सहित अन्य 16 भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, इस पर दूरदर्शन ने एक धारावाहिक का निर्माण किया है एवं इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

पुरस्कार – श्रीलाल शुक्ल की जीवनी

मृत्यु

श्रीलाल शुक्ल को 16 अक्टूबर को पार्किंसन बीमारी के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

86 वर्ष की आयु में 28 अक्तूबर, 2011 को सहारा अस्पताल में श्रीलाल शुक्ल की मृत्यु हो गई।

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