Biography Hindi

सिद्धू और कान्हु की जीवनी – Sidhu Kanhu Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको सिद्धू और कान्हु की जीवनी – Sidhu Kanhu Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

सिद्धू और कान्हु की जीवनी – Sidhu Kanhu Biography Hindi

सिद्धू और कान्हु की जीवनी
सिद्धू और कान्हु की जीवनी

 

संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हु ने किया था।

चांद और भैरव नामक दो भाइयों ने भी इस विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी।

संथाल विद्रोह से प्रभावित क्षेत्र दामिनी और भोगनाडीह था।

 

जन्म

संथाल हूल का नेतृत्व भोगनाडीह निवासी चुन्नी मांझी के चार पुत्रों ने किया।

इनके नाम थे सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव। हूल के समय कान्हू की उम्र लगभग 35 वर्ष, चाँद की आयु 30 वर्ष और भैरव की आयु 20 वर्ष बतायी जाती हैं।

सिद्धू सबसे बड़ा था लेकिन उसकी जन्म 1825  के आस – पास मानी गई है।

योगदान – सिद्धू और कान्हु की जीवनी

जब सिद्धू -कान्हू ने शोषण के विरूद्ध विद्रोह करने का संकल्प ले लिया तो जन समूह को एकजुट करने तथा एकत्रित करने के लिए परंपरागत ढंग से अपनाया।

दूगडूगी पिटवा दी और साल टहनी का संदेशा गाँव – गाँव भेजा गया ।

साल टहनी क्रांति संदेश का प्रतीक है।

30 जून, 1855 की तिथि भगनाडीहा में विशाल सभा रैली के लिए निर्धारित की गई थी ।

तीर धनुष के साथ लोगों को सभा में लाने की जिम्मेवारी मांझी परगनाओं को सौंपी गई।

संदेश चारों ओर फ़ैल गया था । दूरदराज के गांवों से पैदल-यात्रा करते  हुए लोग चल पड़े तीर – धनुष और पारंपरिक हथियारों से लैस लगभग बीस हजार संथाल 30 जून को भगनाडीह पहुँच गये। इस विशाल सभा में सिद्धू कान्हू के अंग्रेज हमारी भूमि छोडो के नारे गूँज उठे। तभी तिलक ने कहा था- स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था – तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा और महात्मा गाँधी ने नारा दिया था – करो या मरो

इनसे पहले ही उसी तर्ज पर सिद्धू ने ललकारा था – करो या मरो, अंग्रेजों हमारी पार्टी छोड़ दो

सिद्धू का लोकतंत्र में काफी विश्वास था। उसने समझ लिया था कि केवल संथालों द्वारा जन – आंदोलन असंभव है। इसलिए उन्होने औरों का भी सहयोग लिया। इस विद्रोह में अन्य लोग भी जैसे कुम्हार, चमार, ग्वाला, तेली, लोहार, डोम और मुस्लिम भी शामिल हो गये थे ।

सिद्धू-कान्हू ने हूल को सजीव और सफल बनाने के लिए धर्म का भी सहारा लिया।

मरांग बूरू (मुख्य देवता) और जाहेर – एस (मुख्य देवी) के दर्शन और उनके आदेश की बात का प्रचार कर लोगों की भावना को उभारा। सखुआ  डाली घर – घर भिजवा कर लोगों तक निमंत्रण पहूंचाया कि मुख्य देवी – देवता का आशीर्वाद लेने के लिए 30 जून को भगनाडीह में इकठ्ठा होना है।

योगदान

फलत : 30 जून को भगनाडीह में कोई 30 हजार लोग शस्त्रो के साथ इकट्ठे हो गये।

उस सभा में सिद्धू को राजा, कान्हू  को मंत्री, चाँद को प्रशासक और भैरव को सेनापति मान कर नये संथाल राज्य के गठन की घोषणा कर दी गई। महाजन, पुलिस, जमींदार, तेल अमला, सरकारी कर्मचारी के साथ ही अंगेजों गोरों को मार भगाने का संकल्प लिया गया तथा लगान नहीं देने व सरकारी  आदेश नहीं मानने का निश्चय भी किया गया।

इसी समय एक घटना घटी। रेल निर्माण कार्य से जुड़े एक अंग्रेज ठेकेदार ने तीन संथाली मजदूर औरतों  का अपरहण कर लिया। इस घटना ने आग में घी का काम किया। क्रांति की शुरूआत हो गई।

कुछ संथालों ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। तीन अंग्रेज मारे गये। और अपहृत स्त्रियाँ मुक्त कर ली गई। हूल यात्रा शुरू हुई तो कलकत्ता की ओर बढ़ती गई। गाँव के गाँव लुटे गए, जलाये गये और लोग मारे जाने लगे।

निलहा साहबों की विशाल कोठियों पर अधिकार पर अधिकार कर लिया गया।

7 जुलाई को दिघी थाना के दारोगा और अंग्रेजों के पिट्टू, महेशलाल दत्त की हत्या कर दी गई।

तब तक 19 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

सुरक्षा के लिए बनाये गये मारटेल टाबर से अंधाधुंध गोलियां चलाकर संथाल सैनिकों को भारी हानि पहुँचायी गई।

फिर भी बन्दूक का मुकाबला उन्होने तीर – धनुष के साथ किया ।

संथालों ने वीरभूमि क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और वहां से अंग्रेजों को भगा दिया।

वीरपाईति में अंग्रेज सैनिकों की करारी हार का सामना करना पड़ा ।

रघुनाथपुर और संग्रामपुर की लड़ाई में संथाली की सबसे बड़ी जीत हुई।

भागलपुर कमिश्नरी के सभी जिलों में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।

विद्रोहियों की गिरफ्तारी के लिए पुरस्कार की घोषणा कर दी गई।

उनसे मुकाबले के लिए भी जबरदस्त बंदोबस्त किया गया ।

मृत्यु – सिद्धू और कान्हु की जीवनी

बडहैत की लड़ाई में चाँद, भैरव कमजोर पड़ गये और अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हो गए।

सिद्धू – कान्हू  के कुछ साथी लालच में आकर अंग्रेजों से मिल गये।

गद्दारों के सहयोग से आखिर उपरबंदा गाँव के पास कान्हू को गिरफ्तार कर लिया गया।

बड़हैत में 19 अगस्त को सिद्धू को भी पकड़ लिया गया।

मेहर शकवार्ग ने उसे बंदी बनाकर भागलपुर जेल ले जाया गया।

दोनों भाईयों को खुलेआम फांसी दे दी गई।

सिद्धू को बड़हैत में जिस स्थान पर दरोगा मारा गाया था और कान्हू को भगनाडीह में ही फांसी पर चढ़ा दिया गया।

इसके साथ ही संथाल विद्रोह का सशक्त नेतृत्व समाप्त हो गया। धीरे – धीरे विद्रोह को कुचल दिया गया।

30 नवंबर को कानूनन संथाल परगना जिला की स्थापना हुई और इसके प्रथम जिलाधीश के एशली इडेन बनाये गये।

पूरे देश से अलग कानून से संथाल परगना का शासन शुरू हुआ।

सम्मान – सिद्धू और कान्हु की जीवनी

संथाल हूल का तो अंत हो गया। लेकिन दो वर्ष के बाद ही 1857 में होने वाले सिपाही विद्रोह – प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  – की पीठिका तैयार कर दी गई।

आज भी इन चारों भाईयों पर छोटानागपुर को गर्व है और संथाली गीतों में आज भी सिद्धू – कान्हू याद किये जाते हैं। इन शहीदों की जयंती संथाल हूल दिवस के रूप में मनायी जाती है।

इसे भी पढ़े – 24 अगस्त का इतिहास – 24 August History Hindi

Related Articles

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close