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श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी – Srinivasa Ramanujan Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी – Srinivasa Ramanujan Biography Hindi के बारे में बताएगे।

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी – Srinivasa Ramanujan Biography Hindi

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी
श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

Srinivasa Ramanujan प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे।

उन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है।

1913 में उन्होने कैब्रिज के गणितिज्ञ प्रो. हार्डी को प्रमेयों की लंबी सूची भेजी।

जिसे पढ़ने के बाद हार्डी काफी प्रभावित हुए औरउन्होने रामानुजन को बुला लिया।

1918 में उन्हे केंब्रिज फिलोसोफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी और ट्रिनिटी
का फ़ेलो चुना गया।

उन्होने गणित की करीब चार हजार समस्याओं का हल निकाला।

2012 में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई।

संक्षिप्त विवरण

 

नामश्रीनिवास रामानुजन
पूरा नामश्रीनिवास अयंगर रामानुजन
जन्म22 दिसंबर 1887
जन्म स्थानइरोड गांव,तमिलनाडु
पिता का नामश्रीनिवास अय्यंगर
माता का नामकोमलताम्मल
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
जाति रामानुजन

जन्म

Srinivasa Ramanujan का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड गांव में हुआ था।

उनका पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन था।

उनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर तथा उनकी माता का नाम कोमलताम्मल था।

रामानुजन के पिता एक कपड़े व्यापारी की दुकान में मुनीम का काम करते थे।

रामानुजन जब एक साल के थे तभी उनका परिवार कुंभकोणम आ गया था।

शुरू में बालक रामानुजन का बौद्धिक विकास दूसरे सामान्य बालकों जैसा नहीं था और वह तीन साल की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे, जिससे उनके माता-पिता को चिंता होने लगी।

1908 में उनके माता पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया।

 

शिक्षा – श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

जब बालक रामानुजन पाँच साल के थे तब उनका दाखिला कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया।

पारंपरिक शिक्षा में रामानुजन का मन कभी भी नहीं लगा और वो ज्यादातर समय गणित की पढाई में ही बिताते थे।

आगे चलकर उन्होंने दस साल की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सर्वोच्च अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल गए।

रामानुजन बड़े ही सौम्य और मधुर व्यवहार के व्यक्ति थे। वह इतने सौम्य थे कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था।

धीरे-धीरे इनकी प्रतिभा ने विद्यार्थियों और शिक्षकों पर अपना छाप छोड़ना शुरू कर दिया।

वह गणित में इतने मेधावी थे कि स्कूल के समय में ही कॉलेज स्तर का गणित पढ़ लिया था।

हाईस्कूल की परीक्षा में Srinivasa Ramanujan को गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण छात्रवृत्ति
मिली जिससे कॉलेज की शिक्षा का रास्ता आसान हो गया।

उनके अत्यधिक गणित प्रेम ने ही उनकी शिक्षा में बाधा डाला।

दरअसल, उनका गणित-प्रेम इतना बढ़ गया था कि उन्होंने दूसरे विषयों को पढना छोड़ दिया।

दूसरे विषयों की कक्षाओं में भी वह गणित पढ़ते थे और प्रश्नों को हल किया करते थे।

इसका परिणाम यह हुआ कि कक्षा 11वीं की परीक्षा में वे गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए
जिसके कारण उनको मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई।

उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही ठीक नहीं थी और छात्रवृत्ति बंद होने के कारण कठिनाईयां और बढ़ गयीं।

यह दौर उनके लिए मुश्किलों भरा था।

घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए रामानुजन ने गणित के ट्यूशन और कुछ एकाउंट्स का काम किया।

वर्ष 1907 में उन्होंने बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी लेकिन इस बार भी वह अनुत्तीर्ण हो गए।

इस असफलता के साथ उनकी पारंपरिक शिक्षा भी समाप्त हो गई।

संघर्ष का समय

बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद के कुछ वर्ष उनके लिए बहुत हताशा और गरीबी भरे थे।

इस दौरान रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का अवसर।

इन विपरीत परिस्थितियों में भी रामानुजन ने गणित से सम्बंधित अपना शोध जारी रखा।

गणित के ट्यूशन से महीने में कुल पांच रूपये मिलते थे और इसी में गुजारा करना पड़ता था।

यह समय उनके लिए बहुत कष्ट और दुःख से भरा था।

उन्हें अपने भरण-पोषण और गणित की शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और लोगों से
सहायता की मिन्नतें भी करनी पड़ी।

इधर रामानुजन बेरोजगारी और गरीबी से जूझ ही रहे थे कि उनकी माता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया।

आर्थिक तंगी और पत्नी की बढ़ी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए वे नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए।

चूँकि उन्होंने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी इसलिए इन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी और इसी बीच
उनका स्वास्थ्य भी बुरी तरह खराब हो गया जिसके कारण वापस कुंभकोणम लौटना पड़ा।

स्वास्थ्य ठीक होने के बाद वे दोबारा मद्रास गए और कुछ संघर्षों के बाद वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले जो गणित के बड़े विद्वान थे।अय्यर ने उनकी दुर्लभ प्रतिभा को पहचाना और अपने जिलाधिकारी रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध करा दिया।25 रूपये की इस छात्रवृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” में प्रकाशित किया।

कार्य – श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

रामानुजन और उनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं।

एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को
अपूर्व गौरव प्रदान किया।

Srinivasa Ramanujan अधिकतर गणित के महाज्ञानी भी कहलाते है।

उस समय के महान व्यक्ति लोन्हार्ड यूलर और कार्ल जैकोबी भी उन्हें खासा पसंद करते थे।

जिनमे हार्डी के साथ रामानुजन ने विभाजन फंक्शन P(n) का अभ्यास किया था।

इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया।

वह अपनी विख्यात खोज गोलिय विधि (Circle Method) के लिए भी जाने जाते है।

प्रोफेसर हार्डी के साथ पत्रव्यावहार और विदेश गमन

रामानुजन का शोध धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था पर अब स्थिति ऐसी थी कि बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता के शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था।रामानुजन ने कुछ शुभचिंतकों और मित्रों की सहायता से अपने कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा पर इससे कुछ विशेष सहायता नहीं मिली।

इसके बाद जब रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उन्होंने उनको समय के प्रसिद्ध गणितग्य प्रोफेसर हार्डी के पास भेजने का सुझाव दिया।1913 में उन्होने कैब्रिज के गणितिज्ञ प्रो. हार्डी को प्रमेयों की लंबी सूची भेजी। जिसे पढ़ने के बाद हार्डी काफी प्रभावित हुए और उन्होने रामानुजन को बुला लिया।

इसके बाद प्रो हार्डी को ऐसा लगा की रामानुजन द्वारा किए गए कार्य को ठीक से समझने और आगे शोध के लिए उन्हें इंग्लैंड आना चाहिए।इसके बाद प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन के बीच पत्रव्यवहार शुरू हो गया और हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आकर शोध कार्य करने का सुझाव दिया।

शुरू में तो रामानुजन ने साफ़ माना कर दिया पर हार्डी ने प्रयास जारी रखा और आखिरकार रामानुजन को मनाने में सफल हो गए। हार्डी ने रामानुजन के लिए केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में व्यवस्था की।यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का आरम्भ हुआ और इसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका थी।

स्वास्थ्य खराब हुआ

रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई और दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया।रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर कई शोधपत्र प्रकाशित किए और इनके एक विशेष शोध के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने इन्हें बी.ए. की उपाधि भी दी।सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन इंग्लैंड की जलवायु और रहन-सहन की शैली रामानुजन के अनुकूल नहीं थी जिसके कारण उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा।

डॉक्टरी जांच के बाद पता चला की उन्हें क्षय रोग था।

चूंकि उस समय क्षय रोग की कोई दवा नहीं होती थी तो रोगी को स्वास्थ्य लाभ के लिए सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था।

रामानुजन भी कुछ दिनों तक सेनेटोरियम में रहे।

रॉयल सोसाइटी की सदस्यता

1918 में उन्हे केंब्रिज फिलोसोफिकल सोसायटी, रॉयल सोसायटी और ट्रिनिटी का फ़ेलो चुना गया।

उन्होने गणित की करीब चार हजार समस्याओं का हल निकाला।

रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में उनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है।

रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले वह पहले भारतीय भी बने।

एक तरफ उनका करियर बहुत अच्छी दिशा में जा रहा था लेकिन दूसरी ओर उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था।

अंततः डॉक्टरों ने उन्हें वापस भारत लौटने की सलाह दी।

भारत आने पर इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और वो अध्यापन और शोध कार्य में दोबारा लग गए।

सम्मान – श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

2012 में Srinivasa Ramanujan के जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई।

मृत्यु

श्रीनिवास रामानुजन की 32 साल की उम्र में 26 अप्रैल 1920 को उनकी मृत्यु हुई।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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