आज इस आर्टिकल में हम आपको सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी – Subrahmanyam Chandrasekhar Biography Hindi के बारे में बताएगे।
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी – Subrahmanyam Chandrasekhar Biography Hindi
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर जाने- माने भारतीय-अमेरिकी खगोल भौतिक शास्त्री थे।
खगोलिकी के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता उनके द्वारा प्रतिपादित “चन्द्रशेखर लिमिट” नामक सिद्धांत से हुई।
1952 से 1971 तक ‘खगोल-भौतिकी पत्रिका’ के प्रबन्ध सम्पादक रहे।
1968 में उन्हे भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
जन्म
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर, 1910 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ।
चन्द्रशेखर का बाल्यजीवन चेन्नई में बीता।
उनके पिता का नाम सुब्रह्मण्यम आयर था और सरकारी सेवा मे थे।
उनकी माता का नाम सीतालक्ष्मी था।
सर सी. वी. रमन, विज्ञान में पहले भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता चन्द्रशेखर के पिता के छोटे भाई थे।
उनकी पत्नी का नाम ललिता चन्द्रशेखर था।
शिक्षा
ग्यारह वर्ष की आयु में ‘मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज’ में उसने दाखिला लिया जहां पहले दो वर्ष उसने भौतिकी, कैमिस्ट्री, अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन किया।
चन्द्रशेखर ने 31 जुलाई 1930 को उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड का प्रस्थान किया और इस प्रकार एक लम्बा और शानदार वैज्ञानिक कैरियर आंरभ किया जो 65 वर्षों तक विस्तृत था।
पहले छ – वर्षों को छोड़, उसने ‘शिकागो विश्वविद्यालय’ मे काम किया।
करियर – सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी
उन्होंने अपने करियर का ज्यादा समय शिकागो विश्वविद्यालय में बिताया।
यहाँ उन्होंने कुछ समय यर्केस वेधशाला, और अस्त्रोफिजीकल जर्नल के संपादक के रूप में बिताया।
शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय में उन्होंने वर्ष 1937 से लेकर अपने मृत्यु 1995 तक कार्य किया।
वर्ष 1953 में वो संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक बन गए।
खगोलिकी के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता उनके द्वारा प्रतिपादित “चन्द्रशेखर लिमिट” नामक सिद्धांत से हुई। इसके द्वारा उन्होंने ‘श्वेत ड्वार्फ’ तारों के समूह की अधिकतम आयु सीमा के निर्धारण की विवेचना का मार्ग प्रशस्त किया। सुब्रमन्यन चन्द्रशेखर ने खगोलिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
इस विश्वविख्यात खगोल वैज्ञानिक ने खगोल भौतिकी के अतिरिक्त खगोलिकीय गणित के क्षेत्र में भी उच्च स्तरीय शोध और कार्य किये। “तारों के ठण्डा होकर सिकुड़ने के साथ केन्द्र में घनीभूत होने की प्रक्रिया” पर किये गये उनके अध्ययन संबंधी शोध कार्य के लिए 1983 में उन्हें भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। चन्द्रशेखर सीमा के प्रतिपादन के फलस्वरूप न्यूट्रोन तारों और ‘ब्लैक होल्स’ का पता चला।
चंद्रशेखर लिमिट की खोज के अलावा सुब्रमन्यन चंद्रशेखर द्वारा किये गए प्रमुख कार्यों में शामिल है – थ्योरी ऑफ़ ब्राउनियन मोशन (1938-1943); थ्योरी ऑफ़ द इल्लुमिनेसन एंड द पोलारिजेसन ऑफ़ द सनलिट स्काई (1943-1950); सापेक्षता और आपेक्षिकीय खगोल भौतिकी (1962-1971) के सामान्य सिद्धांत और ब्लैक होल के गणितीय सिद्धांत (1974-1983)।
चंद्रशेखर के जीवन और करियर की यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें तमाम प्रकार की कठिनाईयों से झूझना पड़ा पर ये सब बातें उनके लिए छोटी थीं। वह एक शख्श थे जिन्हें भारत (जहां उसका जन्म हुआ), इंग्लैंड और यूएसए की तीन भिन्न संस्कृतियों की जटिलताओं द्वारा आकार दिया गया।
उनके मार्गदर्शन और देख-रेख में लगभग 50 छात्रों ने पी. एच. डी. किया। अपने विद्यार्थीयों के साथ उनके संबंध हमें गुरू-शिष्य परंपरा की याद दिलाते है।
पत्रिकाओं का सम्पादन
वह 1952 से 1971 तक ‘खगोल-भौतिकी पत्रिका’ के प्रबन्ध सम्पादक रहे। ‘शिकागो विश्वविद्यालय’ की एक निजी पत्रिका को उन्होंने ‘अमेरिकन एस्ट्रोनामीकल सोसाइटी’ की एक राष्ट्रीय पत्रिका के रूप में परिवर्तित कर दिया। पहले बारह वर्षों तक पत्रिका की प्रबन्ध – व्यवस्था चन्द्रशेखर और एक अंशकालिक सचिव के हाथ में थी। ‘हम मिलजुल कर सारे काम करते थे।
हमने वैज्ञानिक पत्राचार पर ध्यान दिया। हम बजट, विज्ञापन और पृष्ठ प्रभार तैयार करते थे। हम री – प्रिंट आर्डर देते थे और बिल भेजते थे।’ जब चन्द्रशेखर सम्पादक बने तो पत्रिका वर्ष मे छः बार निकलती थी और कुल पृष्ठ संख्या 950 थी लेकिन चन्द्रशेखर के सम्पादकत्व की समाप्ति के समय पत्रिका ‘वर्ष में चौबीस बार’ प्रकाशित होती थी और कुल पृष्ठ संख्या 12,000 थी। उनके नेतृत्व में पत्रिका शिकागो विश्वविद्यालय से वित्तीय रूप से स्वतन्त्र हो गई। उन्होंने पत्रिका के लिए अपने पीछे ‘500,000 यू एस डॉलर’ की आरक्षित निधि छोडी।
पुस्तकें
डा. चंद्रशेखर ने खगोल भौतिक शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं।
- सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर ने ‘व्हाइट ड्वार्फ’, यानी ‘श्वेत बौने’ नाम के नक्षत्रों के बारे में सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
- इन नक्षत्रों के लिए उन्होंने जो सीमा निर्धारित की है, उसे ‘चंद्रशेखर सीमा’ कहा जाता है।
- उनके सिद्धांत से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में अनेक रहस्यों का पता चला।
पुरस्कार और सम्मान
- 1944 – रॉयल सोसाइटी के फेलो बने
- 1949 – हेनरी नोर्रिस रुस्सेल लेक्चररशिप
- 1952 – ब्रूस पदक
- 1953 – रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के स्वर्ण पदक से सम्मानित
- 1957 – अमेरिकन अकादमी ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंसेज के रमफोर्ड पुरस्कार से सम्मानित
- 1966 – राष्ट्रीय विज्ञान पदक , संयुक्त राज्य अमेरिका
- 1968 – भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित
- 1971 – नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा हेनरी ड्रेपर मेडल
- 1983 – भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार
- 1984 – रॉयल सोसाइटी का कोप्ले मेडल
- 1988 – इंटरनेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस के मानद फेलो
- 1989 – गॉर्डन जे लैंग पुरस्कार
- हम्बोल्ट पुरस्कार
मृत्यु – सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की जीवनी
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की 21 अगस्त, 1995 को मृत्यु हुई।
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