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सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी – Suryakant Tripathi ‘Nirala’ Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी – Suryakant Tripathi ‘Nirala’ Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी – Suryakant Tripathi ‘Nirala’ Biography Hindi

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी

Suryakant Tripathi ‘Nirala’ एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे।

निराला जी छायावादी काल के कवि माने जाते हैं।

वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिंदी साहित्य के चार स्तंभों में से एक हैं।

निराला ने 1920 ई० के आसपास से लेखन कार्य आरंभ किया।

निराला की प्रथम रचना ‘जूही की कली’ 1922 ई० में पहली बार प्रकाशित हुई थी।

उन्होंने कई कहानियां उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं।

निराला जी को विशेष प्रसिद्धि उनकी कविता के कारण मिली।

इलाहाबाद में पत्थर तोड़ती महिला’ पर लिखी उनकी कविता आज भी सामाजिक यथार्थ का एक आईना है।

उनका ज़ोर वक्तव्य पर नहीं वरन् चित्रण पर था, सड़क के किनारे पत्थर तोड़ती महिला का रेखांकन उनकी काव्य चेतना की सर्वोच्चता को दर्शाता है –

वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार-बार प्रहार
सामने तरू-मालिका अट्टालिका प्राकार

जन्म

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म  माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी, संवत् 1953 -16 फरवरी 1896 को मेदनीपुर ज़िला, बंगाल -पश्चिम बंगाल मे हुआ था।

उनके पिता का नाम पंडित रामसहाय था जो कि बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में एक सरकारी नौकरी करते थे। जब निराला जी 3 वर्ष के थे, तो उनकी मां का देहांत हो गया था जिसके कारण उनके उनका पालन-पोषण उनके पिता ने ही किया।15 वर्ष की अल्पायु में निराला जी का विवाह रायबरेली जिले के डलमऊ के पंडित रामदयाल की बेटी मनोहरा देवी से कर दिया गया।

मनोहरा देवी एक सुंदर और शिक्षित महिला थी उनको संगीत का अभ्यास था।

16-17 वर्ष की उम्र से ही इनके जीवन में विपत्तियाँ आरम्भ हो गयीं, पर अनेक प्रकार के दैवी, सामाजिक और साहित्यिक संघर्षों को झेलते हुए भी इन्होंने कभी अपने लक्ष्य को नीचा नहीं किया।

इनकी माँ पहले ही गत हो चुकी थीं, पिता का भी असामायिक निधन हो गया।

इनफ्लुएँजा के विकराल प्रकोप में घर के अन्य प्राणी भी चल बसे।

पत्नी की मृत्यु से तो वे बिल्कुल ही टूट से गये।

पर कुटुम्ब के पालन-पोषण का भार स्वयं झेलते हुए वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए।

शिक्षा – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी

‘निराला’ की शिक्षा  बंगाली माध्यम से शुरू हुई।

हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया। हाईस्कूल करने के बाद वे लखनऊ और उसके बाद गढकोला -उन्नाव चले गये। शुरुआत से ही रामचरितमानस उन्हें काफी प्रिय था।

वे हिन्दी, बंगला, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषा में निपुण थे और श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर से विशेष रूप से प्रभावित थे। मैट्रीकुलेशन कक्षा में पहुँचते-पहुँचते उनकी दार्शनिक रुचि का परिचय मिलने लगा।

निराला जी स्वच्छन्द प्रकृति के थे और स्कूल में पढ़ने से अधिक उनकी रुचि घूमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लड़ने इत्यादि में थी। संगीत में उनकी विशेष रुचि थी।

करियर

 कृतियाँ – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी

काव्य संग्रह

अनामिका -1923परिमल -1930गीतिका -1936तुलसीदास -1939
कुकुरमुत्ता -1942अणिमा -1943बेला -1946नये पत्ते -1946
अर्चना -1950आराधना 91953गीत कुंज -1954सांध्य काकली

उपन्यास

अप्सरा -1931अलका -1933प्रभावती -1936
निरुपमा -1936कुल्ली भाट -1938-39बिल्लेसुर बकरिहा -1942
चोटी की पकड़ -1946काले कारनामे -1950चमेली
इन्दुलेखा

कहानी संग्रह

निबन्ध-आलोचना

रवीन्द्र कविता कानन -1929प्रबंध पद्म -1934प्रबंध प्रतिमा -1940
चाबुक -1942चयन -1957संग्रह -1963[9]

पुराण कथा

बालोपयोगी साहित्य

अनुवाद

आनंद मठ -बाङ्ला से गद्यानुवादविष वृक्षकृष्णकांत का वसीयतनामा
कपालकुंडलादुर्गेश नन्दिनीराज सिंह
युगलांगुलीयराजरानीदेवी चौधरानी
श्रीरामकृष्णवचनामृत -तीन खण्डों मेंरजनीचन्द्रशेखर
परिव्राजकभारत में विवेकानंदराजयोग -अंशानुवाद

 रचनाएँ-

‘निराला’ जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित है

काव्य रचनाएं –

मृत्यु – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961को प्रयाग, भारत में हुई।

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