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तारा चेरियन की जीवनी – Tara Cherian Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको तारा चेरियन की जीवनी – Tara Cherian Biography Hindi के बारे में बताएगे।

तारा चेरियन की जीवनी – Tara Cherian Biography Hindi

तारा चेरियन की जीवनी
तारा चेरियन की जीवनी

Tara Cherian भारत की समाज सेविका के रूप में कार्य करने वाली मद्रास की पहली महिला थी जो मेयर बनी।

चेरियनने मेयर बनने के बाद उन्होंने स्कूली बच्चों के लिए शिक्षा पद्धति में तुरंत आवश्यकता का समावेशन कराया और उसके बाद स्वास्थ्य के लिए उन्हें दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वल्पाहार की व्यवस्था की।

परिणाम स्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा।

स्वास्थ्य में सुधार होने के कारण बच्चों में पढ़ने की रूचि और बढ़ने लगी।

चेरियन के सेवा भाव को देखकर भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था।

जन्म

तारा चेरियन का जन्म मई 1913 में मद्रास(चेन्नई) में हुआ था।

उनका विवाह पी.वी. चेरियन के साथ हुआ था जो मद्रास के गवर्नर थे

तारा चेरियन के 5 बच्चे थे।

शिक्षा – तारा चेरियन की जीवनी

तारा चेरियन ने वीमेन्ट्र क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया था।

तारा चेरियन विद्यार्थी जीवन में कभी भी किताबी कीड़ा बन कर नहीं रही बल्कि कॉलेज के कई कार्यक्रमों से लेकर खेलकूद तक
भाग लेती थी।

उनको हमेशा यह विश्वास था कि जो अपने जीवन में कोई विशेष कार्य करना चाहता है, अपने व्यक्तित्व को ठीक प्रकार से विकसित करना चाहता है तो उसे मौजूद कार्यक्रमों में पूरे मन से भाग लेना चाहिए अपने इसी विश्वास के चलते वे अपने कॉलेज की प्रतिष्ठित कार्यकर्ता रहीं और कई बार मद्रास विश्व विद्यालय के सीनेट की सदस्या चुनी गईं।

अपनी कुशाग्रता, तत्परता और निःसंकोचता से वे अपने कॉलेज की गौरव बनी रहीं।

कॉलेज की प्रत्येक प्रतियोगिता में भाग लेना, प्रत्येक कार्यक्रम में सम्मिलित होना उन्होने अपना एक नैतिक कर्त्तव्य बना लिया था। प्रतियोगिताओं में असफल होने के  बादल जब कोई उनसे पूछता क्यों तारा अब आगे की प्रतियोगिता के लिए क्या इरादा है तो उनका केवल एक ही उत्तर रहता की प्रतियोगिता की हार-जीत से प्रभावित होने वाले व्यक्ति निर्बल और असहाय होते हैं, मैं तो
प्रत्येक प्रतियोगिता में बुद्धि विकास के दृष्टिकोण से भाग लेती हूं किसी पुरस्कार के लोभ में नहीं।

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करियर – तारा चेरियन की जीवनी

तारा चेरियन के बच्चे जब बड़े हुए तो उन्होंने सार्वजनिक कार्य में रुचि लेना शुरू किया। सबसे पहले अपनी विद्या बुद्धि और अनुभव के विकास के लिए उन्होंने विदेश यात्रा की जिसमें वे ब्रिटेन, बर्लिन सान्फ्राँसिस्को में विशेष रूप से घूमी। अपने विदेश यात्रा के समय उन्होंने मनोरंजक संस्थानों की अपेक्षा जनसेवक संस्थानों को अधिक महत्व दिया। मनोरंजक कार्यक्रमों में भाग लेने के बजाय उन्होंने समाज सेवा के साथ और कार्यविधियों को गंभीरता के साथ उनका अध्ययन किया। जिसका लाभ उन्होंने अपनी समाज सेवा में उठाया। विदेशों से वापस आने पर उनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिए कई संस्थाओं ने उन्हें अपने में सम्मिलित करने के लिए आमंत्रित
किया।

तारा चेरियन ने पहले ‘एग्मोर‘ स्थित महिलाओं और बच्चों के अस्पताल के सलाहकार मंडल की अध्यक्षता के रूप में प्रथम प्रवेश किया। अपनी कुशलता से श्रीमती चेरियन ने संस्था में चार चांद लगा दिए। उनका कार्यक्रम अध्यक्ष के कार्य काल तक सीमित नहीं रहा।  बल्कि वह अस्पताल में प्रत्येक स्त्री- बच्चे के पास खुद जाती थी , उनका हाल-चाल पूछती थी और जितना संभव होता उनके दुख को दूर करने की कोशिश करती। उन्होंने अस्पताल की कमियों को दूर किया और अपने उदाहरण से कार्यकर्ताओं तथा कर्मचारियों में सच्ची सेवा की भावना को जागृत किया। श्रीमती तारा चेरियन की सहानुभूतिपूर्ण सेवा भावना का परिणाम यह था कि वो उक्त अस्पताल के सलाहकार मंडल की 20 वर्ष तक अध्यक्ष बनी रहे।  तारा चेरियन के सेवा कार्यों से प्रभावित होकर मद्रास की जनता ने उन्हें नगर महापालिका
का अध्यक्ष
नामित किया था।

योगदान

प्राचार्य ने महानगर पालिका का अध्यक्ष बनने के बाद उसी दिन से अपने आप को नगर कल्याण के सेवा कार्यों में खुद को डूबा दिया था वह जब नगर का दौरा करती थी, गंदी और गरीब बस्तियों को देखती तो उनके सुधार की व्यवस्था करती असहयो को सहानुभूति और सहायता सहायता प्रदान करती। विकलांगों की सहायता उनके कार्यक्रम का विशेष अंग था। वह कहती थी कि जो निरुपाय, असहाय, पराश्रित हैं, ऐसे अपंगों की सेवा मानवता की सबसे महान् सेवा होती है  यह एक समाज सुधार कार्य होने के साथ साथ धार्मिक पुण्य
भी है।

श्रीमती तारा चेरियन विकलाँग सेवा के इस तथ्य से अंजान नहीं थी। इन्होंने उनके लिये कई आश्रमों एवं कार्य-शालाओं की स्थापना के प्रयत्न किए, तथा उनकी आर्थिक तथा शारीरिक सहायता की व्यवस्था की। एक सुसंस्कृत, निरर्थक एवं सभ्य समाज की रचना के दृष्टिकोण से उन्होने स्कूली बच्चों की ओर उचित ध्यान दिया तथा उनकी शिक्षा पद्धति में सरलता एवं सानुकूलता का समावेश कराया। उनके स्वास्थ्य के लिये दोपहर में पोषक तत्वों से पूर्ण स्वभोजन की व्यवस्था कराई, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ। स्वास्थ्य में सुधार होने से बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी, जिसको देखकर प्रायः सभी नागरिक अपने बच्चों को
स्कूल भेजने के लिये समुत्सुक होने लगे।

महानगरपालिका की अध्यक्षा होने के साथ-साथ श्रीमती तारा चेरियन – महिला कल्याण विभाग, बाल मन्दिर, स्कूल ऑफ़ शोसल-वर्कस एण्ड द गिल्ड ऑफ़ सर्विस, भारतीय समाज सेवा संगठन, अखिल भारतीय महिला खाद्यान्न परिषद्, क्षेत्रीय पर्यटन सलाहकार समिति
तथा जीवन-बीमा निगम की सलाहकार परिषद् की अभिभाविका एवं कार्यकर्ता भी थीं।

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पुरस्कार – तारा चेरियन की जीवनी

तारा चेरियन के सेवा भाव को देखकर भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था

मृत्यु

तारा चेरियन की मृत्यु 7 नवम्बर 2000 को हुई थी ।

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