Biography Hindi

ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी – Thakur Pyarelal Singh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी – Thakur Pyarelal Singh Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी – Thakur Pyarelal Singh Biography Hindi

ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी
ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी

Thakur Pyarelal Singh ने 1909 में राजनांदगांव में ‘सरस्वती पुस्तकालय’ की स्थापना की।

1920 में बी. एन. सी. मिल की हड़ताल का सफल नेतृत्व, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा में सक्रिय भूमिका निभाई।

उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना तथा रायपुर में ‘छत्तीसगढ़ महासभा’ की स्थापना में विशेष योगदान दिया।

छत्तीसगढ़ में सहकारिता-आंदोलन के जनक श्री प्यारेलाल 1945 में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी समिति की स्थापना की ताकि बुनकरों की आर्थिक स्थिति सुधरे।

सितंबर 1950 में राष्ट्र-बंधू नामक एक अर्द्ध-सप्ताहिक पत्रिका प्रारंभ की थी। 1952 ई. के आम चुनाव में रायपुर से किसान मजदूर प्रजा पार्टी की टिकट पर विधान सभा सदस्य बने तथा विपक्ष के नेता निर्वाचित हुए।

जन्म

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसंबर 1891 को छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव जिले के ‘दैहान’ नामक ग्राम में हुआ था।

उनके पिता का नाम दीनदयाल सिंह और मां का नाम नर्मदा देवी था।

बाल्यकाल से ही ठाकुर प्यारेलाल मेधावी, सच्चे स्वदेशी, और राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत थे।

16 वर्ष की उम्र से ही स्वदेशी कपड़े पहनने लगे थे।

उस वक्त मेंवे कुछ क्रांतिकारियों से मिले जो बंगाल से थे, तब से उन्होंने ठान लिया था कि देश सेवा ही इनके जीवन का महत्वपूर्ण अंग होगा। 1999 में जब प्यारेलाल सिर्फ 19 वर्ष के थे, उसी वक्त राजनांदगांव में ‘सरस्वती वाचनालय’ की स्थापना की गई। वहाँ समाचार पत्र पढ़ कर लोगों को देश की समस्याओं के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उत्साहित किया जाता था।

इसे भी पढ़े –  जतरा भगत की जीवनी – Jatra Tana Bhagat Biography Hindi

शिक्षा – ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी

ठाकुर में प्राथमिक राजनांदगांव और रायपुर में हुई।

हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्हें रायपुर आना पड़ा 1999 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा  पास की।

इसके बाद उन्होंने नागपुर से बीए की परीक्षा पास की नागपुर तथा जबलपुर में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और फिर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने वकालत प्रारंभ कर दी।

महात्मा गांधी ने जब वर्धा में नई योजना शुरू करने के लिए विचार विमर्श करते हुए बैठक आयोजित की।

तब उस समय बैठक में ठाकुर साहब को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।

शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता के क्षेत्र से शुरू से ही वे गहरी  रुचि रखते थे।

गीता के प्रकांड विद्वान थे।

हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत आदि कई भाषाओं के साथ-साथ अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में सम्मान अधिकार रखने वाले भाषा शास्त्री थे।

योगदान

1916 में प्यारे लाल जी ने दुर्ग में वकालत शुरु की थी, पर 1920 में जब नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने ‘असहयोग आंदोलन’ छेड़ने की घोषणा की तो ठाकुर प्यारेलाल ने अपनी वकालत छोड़ दी और जिले भर में असहयोग आंदोलन करने के लिए निकल पड़े। असहयोग आंदोलन के दौरान कितने विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिए, कितनों ने वकालत छोड़ दी।

ठाकुर प्यारेलाल के भाइयों ने भी स्कूल छोड़ दिया।

उन स्कूल छोड़े हुए विद्यार्थियों के लिए ठाकुर प्यारेलाल सोचने लगे कि क्या किया जाए और इसके बाद में उन विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना की गई। प्यारे लाल जी ने खुद में एक माध्यमिक स्कूल की स्थापना की। धमतरी राष्ट्रीय विद्यालय का दायित्व प्यारे लाल जी के पिता दीनदयाल स्कूलों के डिप्यूटी इंस्पेक्टर थे, जो राजनांदगांव, छुईखदान और कवर्धा रियासतों के थे।

ठाकुर प्यारे लाल वकालत छोड़ने के बाद गांव-गांव घूमकर चरखी और खादी का प्रचार करने लगे। पर प्रचार केवल दूसरों के लिए ही नहीं था, प्रचार तो अपने आप के लिए भी था।

ऐसा कहते हैं कि उन दिनों प्यारे लाल जी सिर्फ एक ही खादी की धोती पहनते थे उसी को पहन कर स्नान करते थे, धोती का एक छोर पहने रहते तो दूसरा छोर सूखते दूसरा सूखने पर उसे पहन लेते और पहला छोर  सूखते थे। लगातार 3 साल तक प्यारे लाल जी ने उसी एक धोती को पहनते रहे।

आंदोलनों का नेतृत्व – ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी

ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में  राजनांदगांव छात्र में आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, अत्याचारी दीवान हटाओ आंदोलन चलते  इसआंदोलनों में उन्हें सफलता भी मिली।

छात्र जीवन में ही वे बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे।

लोकमान्य तिलक और माधवराव सप्रे के संपर्क में भी वे छात्र जीवन में आए थे।

1909 में उन्होंने राजनांदगांव में ‘सरस्वती पुस्तकालय’ की स्थापना की थी, जो आन्दोलनकारियों का अड्डा बना।

राजनांदगांव में वकालत करते हुए ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मिल के मजदूरों को संगठित किया।

उनके नेतृत्व में 1919 में मजदूरों ने देश की सबसे पहली और लंबी हड़ताल की।

जिसका परिणाम यह रहा कि उन्हे रियासत से निष्कासित किए जाने की सजा मिली थी।

इस घटना से ठाकुर साहब एक श्रमिक नेता के रूप में देश में काफी प्रसिद्ध हो गए।

वे 1920 में पहली बार महात्मा गांधी के संपर्क में आए।

और उन्होने असहयोग और सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने भाग लिया और गिरफ्तारी देकर जेल भी गए।

उनके नेतृत्व में मजदूरों ने हड़ताल की।

श्रमिकों पर लाठियाँ और गोलियां बरसाई गई।

लेकिन हड़ताल जारी रही। ठाकुर साहब को दोबारा राजनांदगांव से निष्कासित कर दिया गया।

रायपुर में उन्होंने पंडित सुंदरलाल शर्मा  के साथ जुड़कर ‘अछुतोद्धार’ के कार्यों में सहयोग प्रदान किया।

1930 से 1947 तक

1930 और 1932 के आंदोलन में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने क्रांतिकारी की भूमिका निभाई।

उन्होंने हजारों की संख्या में किसानों को इकट्ठा कर “पट्टा मत लो’ लगान मत पटाओं” आंदोलन चलाकर ब्रिटिश शासन की नींव को हिला कर रख दिया था।

दोनों बार उन्हे डेढ़-डेढ़ साल की सजा हुई।

उनसे वकालत की उपाधिपत्र ब्रिटिश सरकार ने छीन लिया।

यह अनुमान लगाया जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में ठाकुर साहब ऐसे अकेले वकील होंगे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उनके जीवन यापन का काम वकालत पेशा जारी रखने के लिए वकालत का संबंध नहीं लौटाया गया।

अंग्रेजों की दृष्टि में ठाकुर प्यारेलाल बहुत बड़ेबगावत करने वाले व्यक्ति थे।

इसलिए उनके कार्यों की निगरानी की जाती थी। 1934 में वे ‘महाकोशल कांग्रेस कमेटी’ के महासचिव निर्वाचित हुए थे।

खरे मंत्रिमंडल में वे कुछ समय के लिए शिक्षा मंत्री रहे चुके थे।

1936 से 1947 तक वे रायपुर नगर पालिका में तीन बार अध्यक्ष निर्वाचित किए गए।

यह उनके खुद में ही एक रिकॉर्ड था ।

वे ‘छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसाइटी’ के संस्थापक अध्यक्ष थे।

1945 में उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ’ की स्थापना की थी, जिसमें प्रारंभिक काल में 3000 सदस्य थे।

आज भी यह छत्तीसगढ़ के एक मजबूत सहकारी संस्था है।

1945 में ही उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ शोषण विरोधी संघ’ की स्थापना की थी इस संघ के बैनर तले भाटापारा के नगर पालिका चुनाव में स्थानीय सदस्यों ने विजय हासिल कर इस संघ कि अयोग्यता प्रमाणित की थी।

1948 से 1972 तक

प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ राज्य की अवधारणा के जन्मदाताओं में से थे।

‘त्रिपुरी कांग्रेस‘ के पहले बिलासपुर में एक बैठक हुई थी, जिसमें ठाकुर प्यारेलाल सिंह, पंडित सुंदरलाल शर्मा, बैरिस्टर छेदीलाल ने छत्तीसगढ़ को एक अलग राजनीतिक पहचान देने के विषय में विचार किया था।

जिसमें ठाकुर साहब, पंडित रामदयाल तिवारी, डॉक्टर ज्वाला प्रसाद मिश्र, द्वारिका प्रसाद तिवारी  विप्र आदि ने बहुत बड़ी संख्या में सम्मिलित होकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण विश्व का प्रस्ताव पारित किया था।

1940 में ठाकुर साहब से पूछा गया था कि आजादी के बाद क्या छत्तीसगढ़ अलग प्रदेश बन सकता है तब उन्होंने कहा था- “जब तक छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल नहीं की जाती तब तक भौगोलिक रूप में छत्तीसगढ़ को प्रदेश का दर्जा देना संभव नहीं है” इस असंभव को संभव बनाने के लिए 1946 में उन्होंने रियासती आंदोलन की नींव डाली और छत्तीसगढ़ रियासती आंदोलन के निर्मित संघर्ष समिति के अध्यक्ष के रूप में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने बागडोर संभाली। इस आन्दोलन में न केवल रियासतों के समन्वय के मार्ग को सुगम व प्रशस्त किया, बल्कि छत्तीसगढ़ को प्रदेश बनने लायक सुनिश्चित भौगोलिक सीमा निर्धारित की।

छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन को इन्हीं गुप्त रियासतों सहित सात ज़िलों के आधार पर मजबूती के साथ खड़ा किया।

1972 में उन्होंने ‘भूमिगत आंदोलन’ का संचालन किया था।

इसे भी पढ़े –  महाराजा अग्रसेन की जीवनी

मृत्यु

ठाकुर प्यारेलाल सिंह की भूदान आंदोलन की यात्रा के समय अस्वस्थ होने के कारण 23 अक्टूबर 1954 को उनकी मृत्यु हो गई।

सम्मान – ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जीवनी

छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए “ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान” स्थापित किया है।

इसे भी पढ़े – जाकिर हुसैन की जीवनी – Zakir Hussain Biography Hindi

Related Articles

One Comment

  1. क्योंकि दरअसल वह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के तहत की गई यात्रा थी जब 23 अक्टूबर 1954 को छत्तीसगढ़ के एक गांव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह की मृत्यु हार्ट अटैक से हुई थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close