जीवनी हिंदी

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी – Uchharangrai Navalshankar Dhebar Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी – Uchharangrai Navalshankar Dhebar Biography Hindi के बारे में बताएगे।

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी – Uchharangrai Navalshankar Dhebar Biography Hindi

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी

(English – Uchharangrai Navalshankar Dhebar)उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर भारतीय स्वतन्त्रता के सेनानी और राजनेता थे।

महात्मा गांधी के प्रभाव में 1936 में वकालत छोड़ आजादी की लड़ाई में शामिल किया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए। 1948 में सौरष्ट के मुख्यमंत्री बने और ग्राम पंचायतों के गठन, शिक्षा, जल, भूमि सुधार व कुटीर उद्योगों के लिए काम किया।

देश की आजादी के बाद काठियावाड़  रियासत के भारत में विलय में भूमिका निभाई थी। 1955 – 1959 तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।

संक्षिप्त विवरण

नामउच्छंगराय नवलशंकर ढेबर
पूरा नामयू.एन. ढेबर, ढेबर भाई
जन्म21 सितंबर, 1905
जन्म स्थानजामनगर, गुजरात
पिता का नाम
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु
1977 में
मृत्यु स्थान

जन्म – उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर का जन्म 21 सितंबर, 1905 को जामनगर, गुजरात  के निकट एक झोपड़ी में हुआ था।

यह नागर परिवार अत्यंत गरीब था।

शिक्षा

Uchharangrai Navalshankar Dhebar ने राजकोट और मुंबई में अपनी शिक्षा पूरी की और उन्होने 1928 में वकालत करने लगे। अपने पेशे में उन्होंने शीघ्र ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।

लेकिन गांधीजी के प्रभाव में आकर उन्होंने 1936 में वकालत छोड़ दी और देश सेवा के काम में लग गए।

राजनीतिक करियर

सरदार पटेल का भी Uchharangrai Navalshankar Dhebar पर प्रभाव पड़ा। उन्होने राजकोट रियासत के निकट एक गांव को अपना केंद्र बनाया और लोगों को संगठित करके अकाल पीड़ितों की सहायता में जुट गए।

तभी उन्होंने राजकोट में मजदूरों का संगठन बनाया और 8 वर्ष से निष्प्राण काठियावाड़ के राजनीतिक सम्मेलन में जान डाली। रियासत के दीवान ने उनके इन कामों में बहुत बाधा डालने का प्रयत्न किया, फिर भी ढेबर भाई राजनीतिक सम्मेलन करने में सफल हो गए, जिसमें सरदार पटेल ने भी भाग लिया था।

सन 1947 में राजकोट रियासत ने ढेबर भाई को उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण गिरफ्तार कर लिया था, परंतु जन आंदोलन के दबाव के कारण वे शीघ्र ही रिहा कर दिए गए। लेकिन विरासत में प्रशासनिक सुधारों के लिए उनका आंदोलन जारी रहा।

मुख्यमंत्री के रूप में

1938-1939 में इसके लिए सत्याग्रह आरंभ हो गया जो ‘राजकोट सत्याग्रह’ के नाम से प्रसिद्ध है।

इस सिलसिले में गांधीजी को अनशन करना पड़ा था। तब कहीं सत्याग्रहियों के पक्ष में निर्णय हुआ।

ढेबर भाई 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गिरफ्तार हुए।

स्वतंत्रता के बाद काठियावाड़ की रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी।

1948 में यहां की रियासतों की सौराष्ट्र नाम से एक राजनीतिक इकाई बनी। ढेबर भाई यहां के मुख्यमंत्री बने।

उनके मुख्यमंत्रित्व में सौराष्ट्र में अनेक सुधार हुए।

ग्राम पंचायतों का गठन हुआ, शिक्षा की सुविधाएं बढ़ीं, लोगों को पेयजल उपलब्ध कराया गया और सर्वाधिक भूमि सुधार के ऐसे कानून बने, जिनसे खेतिहरों के हितों की रक्षा हुई। खादी और ग्रामोद्योग को भी बहुत प्रोत्साहन मिला।

अन्य पदों पर कार्य

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से थे।उन्होने कई पदों पर कार्य किया –

मृत्यु – उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की जीवनी

उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर की मृत्यु 11 मार्च 1977 को हुई।

इसे भी पढ़े – महंत नरेंद्र गिरि की जीवनी – Mahant Narendra Giri Biography Hindi

Exit mobile version