उस्ताद अमीर ख़ाँ (English – Ustad Amir Khan)भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक थे। उस्ताद अमीर ख़ाँ को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
उस्ताद अमीर ख़ाँ की जीवनी – Ustad Amir Khan Biography Hindi
संक्षिप्त विवरण
नाम | उस्ताद अमीर ख़ाँ |
पूरा नाम, अन्य नाम | उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब |
जन्म | 15 अगस्त, 1912 |
जन्म स्थान | इंदौर, मध्य प्रदेश |
पिता का नाम | शाहमीर ख़ान |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जाति | – |
धर्म | – |
जन्म
उस्ताद अमीर ख़ाँ का जन्म 15 अगस्त, 1912 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनका एक संगीत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहमीर ख़ान जोकि भिंडी बाज़ार घराने के सारंगी वादक थे, जो इंदौर के होलकर राजघराने में बजाया करते थे। उनके दादा, चंगे ख़ान तो बहादुर शाह ज़फ़र के दरबार में गायक थे। अमीर अली की माँ का देहान्त हो गया था जब वे केवल नौ वर्ष के थे। अमीर और उनका छोटा भाई बशीर, जो बाद में आकाशवाणी इंदौर में सारंगी वादक बने, अपने पिता से सारंगी सीखते हुए बड़े होने लगे। लेकिन जल्द ही उनके पिता ने महसूस किया कि अमीर का रुझान वादन से ज़्यादा गायन की तरफ़ है। इसलिए उन्होंने अमीर अली को ज़्यादा गायन की तालीम देने लगे। ख़ुद इस लाइन में होने की वजह से अमीर अली को सही तालीम मिलने लगी और वो अपने हुनर को पुख़्ता, और ज़्यादा पुख़्ता करते गए।
उन्होने अपने एक मामा से तबला भी सीखा। अपने पिता के सुझाव पर अमीर अली ने 1936 में मध्य प्रदेश के रायगढ़ संस्थान में महाराज चक्रधर सिंह के पास कार्यरत हो गये, लेकिन वहाँ वे केवल एक वर्ष ही रहे। 1937 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। वैसे अमीर ख़ान 1934 में ही बम्बई (अब मुम्बई) स्थानांतरित हो गये थे और मंच पर प्रदर्शन भी करने लगे थे। इसी दौरान वे कुछ वर्ष दिल्ली में और कुछ वर्ष कलकत्ता (अब कोलकाता) में भी रहे, लेकिन देश विभाजन के बाद स्थायी रूप से बम्बई में जा बसे
फ़िल्म संगीत
फ़िल्म संगीत में भी उस्ताद अमीर ख़ान का योगदान उल्लेखनीय है। ‘बैजू बावरा’, ‘शबाब’, ‘झनक झनक पायल बाजे’, ‘रागिनी’, और ‘गूंज उठी शहनाई’ जैसी फ़िल्मों के लिए उन्होंने अपना स्वरदान किया। बंगला फ़िल्म ‘क्षुधितो पाशाण’ में भी उनका गायन सुनने को मिला था।
सम्मान और पुरस्कार
- उस्ताद अमीर ख़ाँ संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उस्ताद अमीर ख़ान को 1967 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
- 1971 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
विशेष योगदान
कहा जाता है कि उस्ताद अमीर ख़ाँ ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को मंदरा ख़याल दिया। ज़रूर, क्योंकि वे कहा करते कि जितनी गहरी आपकी नींव, उतनी ऊंची आपकी इमारत, लेकिन इससे भी ज्यादा बात है कि उन्होंने ख़याल संगीत को एक ऐसा आलाप बताया, जो राग को अवरोही से बराता, जैसे कि घड़ी घूमती है। ध्यान का वसूल भी यही है। और इसी उसूल को साधते-साधते उन्हें अपनी गायकी में ध्यान के आकार मिले, और वे एक अवरोही प्रधान खयाल गाने लगे, जहां राग भी असल में खुलता है। यही वजह थी कि उन्होंने आवाज़ का मंदरा भी खोला, और गायकी बनाई। यह भी जानी-मानी बात है कि उस्ताद अमीर ख़ाँ ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को ‘पाज’ यानी उसका अनहद फिक्रा दिया, जिससे उनका विलम्बित ख़याल बहुत चैनदार सुनने में आता था। इसके पीछे बात यह थी कि संगीत, आत्मा की कभी न मिटने वाली भूख, पहले आत्मा में सोचा जाता है, और फिर उसका साक्षात्कार होता है। इसी कारण खान साहब ने ‘पाज’ को आगे रखकर गेय फिक्रा गाया। उनके संगीत का संचालन ही अनकही से होता, जिसे हम कभी से पहले सुनते। यही उनकी सोच थी। जिस वजह से उनकी इंदौर की गायकी को शास्त्रीय संगीत का पहला अंतर्मुखी घराना कहा जाता है।
निधन
उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब का 13 फरवरी, 1974 को एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।