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वी. वी. गिरी की जीवनी – V. V. Giri Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको वी वी गिरी की जीवनी – V। V। Giri Biography Hindi के बारे में बताएगे।

वी. वी. गिरी की जीवनी – V. V. Giri Biography Hindi

वी. वी. गिरी की जीवनी - V. V. Giri Biography Hindi,

वी. वी. गिरी भारत के चौथे राष्ट्रपति थे।

उनका कार्यकाल 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969 तक था।

इसके अलावा वे भारत के पहले कार्य वाहक राष्ट्रपति रहे थे।

सरकार ने उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए  1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ देकर सम्मानित किया।

वी. वी. गिरि ‘अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ’ और ‘अखिल भारतीय व्यापार संघ’ (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी रहे।

जन्म

वी. वी. गिरी का जन्म 10 अगस्त, 1894 ब्रह्रापुर, ओड़िशा में हुआ था।

उनका पूरा नाम श्री वराहगिरि वेंकट गिरि था।

उनके पिता का नाम वी. वी. जोगिआह पंतुलु था

उनकी माता का नाम सुभद्राम्मा था।

उनके पिता एक सफल वकील और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता थे।

उन्होने  सरस्वती बाई के साथ विवाह किया और उनके कुल 14 बच्चे थे।

शिक्षा – वी. वी. गिरी की जीवनी

वी वी गिरी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा खालिकोट कॉलेज, बेरहामपुर से प्राप्त की थी।

1913 में कानून की पढाई करने के लिए वे आयरलैंड चले गये और
वहाँ पर उन्होंने 1913 से 1916 के बीच यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन से शिक्षा प्राप्त की थी।

करियर

1916 से 1954 तक
  • 1916 में भारत लौटने के बाद वी. वी. गिरि श्रमिक और मज़दूरों के चल रहे आंदोलन का हिस्सा बन गए थे।
  • हालांकि उनका राजनीतिक सफ़र आयरलैंड में पढ़ाई के दौरान ही शुरू हो गया था,
  • लेकिन ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ का हिस्सा बनकर वे पूरी तरह से स्वतंत्रता के लिए सक्रिय हो गए।
  • वी. वी. गिरि ‘अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ’ और ‘अखिल भारतीय व्यापार संघ’ (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी रहे।
  • सन 1934 में वह इम्पीरियल विधानसभा के भी सदस्य नियुक्त हुए।
  • सन 1937 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के आम चुनावों में वी. वी. गिरि को कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में बोबली में स्थानीय राजा के विरुद्ध उतारा गया, जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई।
  • सन 1937 में मद्रास प्रेसिडेंसी में कांग्रेस पार्टी के लिए बनाए गए ‘श्रम एवं उद्योग मंत्रालय’ में मंत्री नियुक्त किए गए।
  • सन 1942 में जब कांग्रेस ने इस मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया, तो वी. वी. गिरि भी वापस श्रमिकों के लिए चल रहे आंदोलनों में लौट आए।
  • अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रहे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए, अंग्रेज़ों द्वारा इन्हें जेल भेज दिया गया।
  • इसके बाद वर्ष 1946 के आम चुनाव के बाद वे श्रम मंत्री बनाए गए।
  • 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद वह सिलोन में भारत के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए।
  • सन 1952 में वह पाठापटनम सीट से लोकसभा का चुनाव जीत संसद पहुंचे।
  • सन 1954 तक वह श्रममंत्री के तौर पर अपनी सेवाएँ देते रहे।
1955 से 1974 तक
  • वी. वी. गिरि उत्तर प्रदेश, केरल, मैसूर में राज्यपाल भी नियुक्त किए गए थे।
  • लोकसभा में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें प्रतिष्ठित शिक्षाविदों के समूह का नेतृत्व करने, श्रम एवं औद्योगों से संबंधित मामलों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने का कार्य सौंपा गया।
  • उनके प्रयासों के फलस्वरूप वर्ष 1957 में ‘द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स’ की स्थापना की गयी।
  • भारतीय राजनीति में सक्रियता के बाद उन्होंने वर्ष 1957-1960 तक उत्तर प्रदेश, फिर 1960-1965 तक केरल और अंत में 1965-1967 तक मैसूर के राज्यपाल के रूप कार्य किया।
  • 1957 में वे  राज्यपाल बने, उसके बाद भी वे ‘इंडियन कांफ्रेंस ऑफ़ सोशल वर्क’ के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे।
  • वी. वी. गिरि सन 1967 में ज़ाकिर हुसैन के काल में भारत के उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे।
  • इसके अलावा जब ज़ाकिर हुसैन के निधन के समय भारत के राष्ट्रपति का पद ख़ाली रह गया, तो वाराहगिरि वेंकटगिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति का स्थान दिया गया।
  • सन 1969 में जब राष्ट्रपति के चुनाव आए तो इन्दिरा गांधी के समर्थन से वी. वी. गिरि देश के चौथे राष्ट्रपति बनाए गए।
  • 24 अगस्त, 1969 को वी. वी. गिरि ने भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में प्रात: नौ बजे पद और गोपनीयता की शपथ ली।
  • 24 अगस्त, 1974 को इन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ा।
  • उसी दिन डाक विभाग ने इनके सम्मान में एक 25 पैसे का नया डाक टिकट जारी किया था।
  • वे एक विदेशी शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता, सफल छात्र नेता, एक अतुलनीय श्रमिक नेता, निर्भीक स्वतंत्रता सैनानी, एक जेल यात्री, एक प्रमुख वक्ता, एक त्यागी पुरुष थे, जिसने केन्द्रीय मंत्री पद को त्याग दिया था,
  • अपने सिद्घांतों पर अडिग रहने वाले वे नैष्ठिक पुरुष थे।

योगदान

वर्ष 1969 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हो गया, तो उसके उपरांत वी. वी. गिरि को भारत का कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। उसके बाद वे अपनी पार्टी के सदस्यों के मामूली विरोध के बाद भारत के चौथे राष्ट्रपति बने और वर्ष 1974 तक देश की सेवा की।

जीवन पर्यंत वे अपने भाषण कौशल के लिए विख्यात रहे।

पुस्तक

  • इंडस्ट्रियल रिलेशन
  • लेबर प्रॉब्लम इन इंडियन इंडस्ट्री

पुरस्कार – वी. वी. गिरी की जीवनी

  • भारत सरकार ने उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए उन्हें 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ देकर सम्मानित किया।
  • 1974 में भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने ‘श्रम से संबंधित मुद्दों पर शोध, प्रशिक्षण, शिक्षा, प्रकाशन और परामर्श’ के लिए एक स्वायत्त संस्था की स्थापना की। इस संस्था का नाम वर्ष 1995 में उनके सम्मान में ‘वी. वी. गिरि नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट’ रखा गया। उन्हें श्रमिकों के उत्थान और उनके अधिकारों के संरक्षण की दिशा में काम करने लिए एक मुखर कार्यकर्ता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

मृत्यु

85 वर्ष की आयु में 24 जून 1980 मे  वी वी गिरी की मृत्यु हुई थी।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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