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विजय सिंह पथिक की जीवनी – Vijay Singh Pathik Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको विजय सिंह पथिक की जीवनी – Vijay Singh Pathik Biography Hindi के बारे में बताएगे ।

विजय सिंह पथिक की जीवनी – Vijay Singh Pathik Biography Hindi

विजय सिंह पथिक की जीवनी

विजय सिंह पथिक, भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे।

उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर में मालागढ़ रियासत के दीवान थे

जिन्होंने 1857 के ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी।

महात्मा गाँधी के ‘सत्याग्रह आन्दोलन’ से बहुत पहले पथिक जी ने ‘बिजोलिया किसान आन्दोलन’ के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का कार्य शुरू कर दिया था।

जन्म

पथिक का जन्म 27 फ़रवरी, 1882 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के गुलावठी कलाँ नामक गाँव में हुआ था।

वे गुर्जर परिवार से थे।

उनके पिता का नाम हमीर सिंह और उनकी माता का नाम कमल कुमारी था।

उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर में मालागढ़ रियासत के दीवान थे

जिन्होंने 1857 के ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ में अंग्रेज़ों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी।

पथिक जी के पिता को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया था।

विजय सिंह पथिक पर उनकी माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा था। युवावस्था में ही पथिक जी का सम्पर्क रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे प्रसिद्ध देशभक्त क्रान्तिकारियों से हो गया था। उनका मूल नाम भूपसिंह गुर्जर था, लेकिन 1915 के ‘लाहौर षड्यन्त्र’ के बाद उन्होंने अपना नाम बदल कर विजय सिंह पथिक रख लिया। इसके बाद वे अपनी मृत्यु पर्यन्त तक इसी नाम से जाने गए। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के ‘सत्याग्रह आन्दोलन’ से बहुत पहले ही उन्होंने ‘बिजोलिया किसान आन्दोलन’ के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था।

48 वर्ष की आयु में विजय सिंह पथिक ने एक विधवा अध्यापिका जानकी देवी से विवाह किया। उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन शुरू किया ही था कि एक महीने के बाद ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण वे गिरफ़्तार कर लिए गये। उनकी पत्नी जानकी देवी ने ट्यूशन आदि करके किसी प्रकार से घर का खर्च चलाया। पथिक जी को इस बात का मरते दम तक अफ़सोस रहा था कि वे ‘राजस्थान सेवा आश्रम’ को अधिक दिनों तक चला नहीं सके और अपने मिशन को अधूरा छोड़ कर चले गये।

योगदान

1912 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाने का निर्णय किया।

इस अवसर पर दिल्ली के तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड हार्डिंग ने दिल्ली में प्रवेश करने के लिए एक शानदार जुलूस का आयोजन किया। उस समय अन्य क्रान्तिकारियों ने जुलूस पर बम फेंक कर लॉर्ड हार्डिंग को मारने की कोशिश की, लेकिन वह बच गया।1915 में रासबिहारी बोस के नेतृत्व में लाहौर में क्रान्तिकारियों ने निर्णय लिया कि 21 फ़रवरी को देश केकई स्थानों पर ‘1857 की क्रान्ति’ की तर्ज पर सशस्त्र विद्रोह किया जाएगा। ‘भारतीय इतिहास’ में इसे ‘गदर आन्दोलन’ कहा गया है। यह योजना बनाई गई थी कि एक तरफ तो भारतीय ब्रिटिश सेना को विद्रोह के लिए उकसाया जाए और दूसरी तरफ देशी राजाओं की सेनाओं का विद्रोह में सहयोग प्राप्त किया जाए। राजस्थान में इस क्रान्ति को संचालित करने का दायित्व विजय सिंह पथिक को सौंपा गया।

फ़िरोजपुर षड़यंत्र – विजय सिंह पथिक की जीवनी

उस समय पथिक जी ‘फ़िरोजपुर षड़यंत्र’ केस के सिलसिले में फ़रार चल रहे थे और ‘खरवा’ में गोपाल सिंह के पास रह रहे थे। दोनों ने मिलकर दो हजार युवकों का एक दल तैयार किया और तीस हजार से अधिक बन्दूकें इकठी कीं। दुर्भाग्य से अंग्रेज़ी सरकार पर क्रान्तिकारियों की देशव्यापी योजना का भेद खुल गया। देश भर में क्रान्तिकारियों को समय से पूर्व पकड़ लिया गया। पथिक जी और गोपाल सिंह ने गोला बारूद भूमिगत कर दिया और सैनिकों को बिखेर दिया गया। इसके कुछ दिनों बाद अजमेर के अंग्रेज़ कमिश्नर ने पाँच सौ सैनिकों के साथ पथिक जी और गोपाल सिंह को खरवा के जंगलों से गिरफ्तार कर लिया और टाडगढ़ के क़िले में नजरबंद कर दिया। उस समय ‘लाहौर षड़यंत्र केस’ में पथिक जी का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए।

किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई और वे टाडगढ़ के क़िले से फ़रार हो गए।

गिरफ्तारी से बचने के लिए पथिक जी ने अपना वेश राजस्थानी राजपूतों जैसा बना लिया और चित्तौड़गढ़ में रहने लगे।

1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजोलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा।

पथिक जी ने बम्बई जाकर किसानों की करुण कथा गाँधीजी को सुनाई और गाँधीजी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह खुद बिजोलिया सत्याग्रह का संचालन करेंगे। महात्मा गाँधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। पथिक जी ने बम्बई यात्रा के समय गाँधीजी की पहल पर यह निश्चय किया गया कि वर्धा से ‘राजस्थान केसरी’ नामक समाचार पत्र निकाला जाये।

1920 में पथिक जी के प्रयासो से अजमेर में ‘राजस्थान सेवा संघ’ की स्थापना हुई।

आन्दोलन

1920 में विजय सिंह पथिक अपने साथियों के साथ ‘नागपुर अधिवेशन’ में शामिल हुए और बिजोलिया के किसानों की दुर्दशा और देशी राजाओं की निरंकुशता को दर्शाते हुये एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। गाँधीजी पथिक जी के ‘बिजोलिया आन्दोलन’ से प्रभावित तो हुए, लेकिन उनका रुख देशी राजाओं और सामन्तों के प्रति नरम ही बना रहा।कांग्रेस और गाँधीजी यह समझने में असफल रहे कि सामन्तवाद साम्राज्यवाद का ही एक स्तम्भ है और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विनाश के लिए साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के साथ-साथ सामन्तवाद विरोधी संघर्ष जरूरी है। गाँधीजी ने ‘अहमदाबाद अधिवेशन’ में बिजोलिया के किसानों को क्षेत्र छोड़ देने की सलाह दी।  लेकिन पथिक जी ने इसे अपनाने से इनकार कर दिया।  1921 के आते-आते पथिक जी ने ‘राजस्थान सेवा संघ’ के माध्यम से बेगू, पारसोली, भिन्डर, बासी और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन किए।

‘बिजोलिया आन्दोलन’ अन्य क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था।

ऐसा लगने लगा मानो राजस्थान में किसान आन्दोलन की लहर चल पड़ी है।

इससे ब्रिटिश सरकार डर गई।

इस आन्दोलन में उसे ‘बोल्शेविक आन्दोलन’ की प्रतिछाया दिखाई देने लगी थी।

दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी।

आखिर में सरकार ने राजस्थान के ए. जी. जी. हालैण्ड को ‘बिजोलिया किसान पंचायत बोर्ड’ और ‘राजस्थान सेवा संघ’ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया।

जल्द ही दोनो पक्षों में समझौता हो गया।

किसानों की कई माँगें मान ली गईं।

मृत्यु

28 मई, 1954 को मथुरा, उत्तर प्रदेश में विजय सिंह पथिक की मृत्यु हो गई।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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