विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। भारत के लिए ‘नेहरू परिवार’ ने जो महान बलिदान और योगदान दिया है, उसे राष्ट्र हमेशा याद रखेगा। विजयलक्ष्मी पण्डित ने भी देश की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। विजयलक्ष्मी एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित कई सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष भी थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको विजयलक्ष्मी पंडित की जीवनी – Vijaya Lakshmi Pandit Biography Hindi के बारे में बताएगे।
विजयलक्ष्मी पंडित की जीवनी – Vijaya Lakshmi Pandit Biography Hindi
जन्म
विजयलक्ष्मी पण्डित का जन्म 18 अगस्त, 1900 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम पण्डित मोतीलाल नेहरू था तथा ये जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित का बचपन का नाम ‘स्वरूप’ था, 1921 में उन्होंने काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पण्डित से विवाह कर लिया। गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आज़ादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया।विजय लक्ष्मी आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर आन्दोलन में जुट जातीं। इनकी पुत्री इन्दिरा गांधी लगभग 13 वर्षों तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं।
शिक्षा
उन्होंने अपनी सारी शिक्षा एक अंग्रेज़ अध्यापिका से घर पर ही प्राप्त की थी।
राजनैतिक करियर
श्रीमती विजय लक्षमी ने 1952 में ग्रामीण सभ्यता व संसकृति के बारे मे जानने के लिए उन्होने राजस्थान के बाडमेर जिले के सांस्कृतिक गांव बिसाणिया में ‘मालाणी डेलूओं की ढाणी’ का ऐतिहासिक दौरा किया था।
विजय लक्ष्मी पंडित की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक थी और इसलिए श्रीमती पंडित में भी राजनीति के लिए उत्साह था| इस कारण वो राजनीति में में शामिल हो गई| जब देश में भारत सरकार अधिनियम, 1935 लागु हुआ और उसके तहत 1937 में कई प्रान्तों में कांग्रेस की सरकारे बनी तो श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित को उत्तरप्रदेश (संयुक्त प्रान्त) का केबिनेट मंत्री बनाया गया|
- ब्रिटिश राज के दौरान कैबिनेट पद पर रहने वाली पहली महिला विजयलक्ष्मी पंडित ही थीं।
- 1937 में उनका निर्वाचन यूनाइटेड प्रॉविंसेज के विधानमंडल में हुआ तथा उन्हें स्थानीय स्वप्रशासन और जन-स्वास्थ्य विभाग में मंत्री बनाया गया। पहले वे 1939 तक तथा बाद में 1946 से 1947 तक इस पद पर रहीं।
- भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् वे राजनयिक सेवाओं का हिस्सा बनीं और उन्होंने विश्व के कई देशों में भारत के राजनयिक के पद पर कार्य किया।
- 1946 से 1968 के बीच उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया। इसी दौरान 1953 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया और वे इस पद पर आसीन होने वाली विश्व की प्रथम महिला बन गई ।
- 1962 से 1964 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद रहीं। 1979 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया।
- उन्होने 1964 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंची
भारत की राजदूत
वर्ष 1945 में विजयलक्ष्मी पण्डित अमेरिका गईं और अपने जोरदार भाषणों के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया। 1946 में वे पुन: उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनीं। स्वतंत्रता के बाद विजयलक्ष्मी पण्डित ने ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में भारत के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व किया और संघ में महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गईं। विजयलक्ष्मी पण्डित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैण्ड और स्पेन में भारत के राजदूत का और इंग्लैण्ड में हाई कमिश्नर के पद पर कार्य किया। 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वे कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थीं।
योगदान
श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने अपने पति के साथ आजादी के आन्दोलन में भाग लिया और इसके लिए उनको कई बार जेल में भी जाना पड़ा। वो हमेशा राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय रही। 1940 से 1942 अक वे ‘आल इंडिया वुमेंस कान्फ्रेंस’ के अध्यक्ष के पद पर भी रही।
1937 के चुनाव में विजयलक्ष्मी उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की वह प्रथम महिला थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने के बाद मंत्रिपद छोड़ते ही विजयलक्ष्मी पण्डित को फिर बन्दी बना लिया गया। जेल से बाहर आने पर 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में वे फिर से गिरफ़्तार की गईं, लेकिन बीमारी के कारण नौ महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। 14 जनवरी, 1944 को उनके पति रणजीत सीताराम पण्डित का निधन हो गया।
विजय लक्ष्मी पंडित के पतिके निधन होनेके बाद उन्हें और उनकी बेटियों को सम्पत्ति पर से बेदखल कर दिया गया| और पूरी सम्पत्ति पर उनके पति के भाई ने अधिकार कर लिया। श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने महिलायों का अधिकार दिलाने के लिए काफी संघर्ष किए और उनकी ही मेहनत से आजादी के बाद महिलाओं को अपने पति और अपने पिता की सम्पत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ।
गाँधीजी का प्रभाव
जब 1919 में महात्मा गाँधी ‘आनन्द भवन’ में आकर रुके तो विजयलक्ष्मी पण्डित उनसे बहुत प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने गाँधीजी के ‘असहयोग आन्दोलन’ में भी भाग लिया। इसी बीच आन्दोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पण्डित को 1932 में गिरफ़्तार भी किया गया। गाँधीजी का प्रभाव विजयलक्ष्मी पण्डित पर बहुत ज़्यादा था। वह गाँधीजी से प्रभावित होकर ही जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़ी थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर से आन्दोलन में जुट जातीं।
पुस्तक
द इवॉल्यूशन ऑफ इंडिया (1958) एवं ‘द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस-ए-पर्सनल मेमोएर’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
मृत्यु
1 दिसंबर 1990 में विजयलक्ष्मी पण्डित का निधन हुआ।