आज इस आर्टिकल में हम आपको विष्णु नारायण भातखंडे की जीवनी – Vishnu Narayan Bhatkhande Biography Hindi के बारे में बताने जा रहे है. विष्णु नारायण भातखंडे (English – Vishnu Narayan Bhatkhande) भारत के ‘हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत‘ के विद्वान व्यक्ति और प्रख्यात संगीतकार थे।
शास्त्रीय संगीत के विकास के लिए भातखंडे ने संगीत शास्त्र की रचना की और कई संस्थाएं और केंद्र स्थापित किए ।
उन्होने संगीत पर संस्कृत, मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी में किताबें लिखी। उनकी पहली किताब स्वर मालिका थी।
संगीत पर उन्होने पहली आधुनिक टीका लिखी। जिसमें करीब दो हजार बंदिशे एकत्रित की थी। उन्होने लगभग 200 राग तैयार किए। उनके पुस्तकों को राग का खजाना भी कहा जाता है।
विष्णु नारायण भातखंडे की जीवनी – Vishnu Narayan Bhatkhande Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण
नाम | विष्णुनारायण भातखंडे |
पूरा नाम | विष्णुनारायण भातखंडे |
जन्म | 10 अगस्त1860 |
जन्म स्थान | बालकेश्वर, मुंबई |
पिता का नाम | – |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जाति | ब्राह्मण |
मृत्यु | 19 सितंबर 1936 |
जन्म
Vishnu Narayan Bhatkhande का जन्म 10 अगस्त 1860 को मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
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शिक्षा
विष्णु नारायण भातखंडे ने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1883 में बी.ए. की डिग्री ‘ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज’, मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होने 1890 में एल.एल.बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए कराची के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।
संगीत के प्रति लगाव
भातखंडे की लगन आरंभ से ही संगीत की ओर थी। उनकी संगीत यात्रा 1904 में शुरू हुई, जिससे इन्होंने भारत के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी साहित्य की खोज की। उन्होने संगीत पर संस्कृत, मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी में किताबें लिखी। उनकी पहली किताब स्वर मालिका थी।
उन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके ‘हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका’ के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए विष्णुनारायण भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति, जो हिन्दी में ‘भातखंडे संगीत शास्त्र’ के नाम से छपी थी, के चार भाग मराठी भाषा में लिखे।
संस्कृत भाषा में भीउन्होंने ‘लक्ष्य-संगीत’ और ‘अभिनव राग-मंजरी’ नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला।
विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ ‘बिलावल’ मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।
संगीत पर उन्होने पहली आधुनिक टीका लिखी। जिसमें करीब दो हजार बंदिशे एकत्रित की थी। उन्होने लगभग 200 राग तैयार किए। उनके पुस्तकों को राग का खजाना भी कहा जाता है।
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सम्मेलन का आयोजन
वर्ष 1916 में भातखंडे द्वारा बड़ौदा में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें संगीत के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ।
इसी आयोजन में एक ‘ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी’ की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकार हुआ। इस संगीत सम्मेलन में विष्णुनारायण भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्त्वपूर्ण भाषण हुए, वे अंग्रेज़ी में ‘ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
संगीत विद्यालयों की स्थापना
विष्णुनारायण भातखंडे के प्रयत्नों से बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें लखनऊ का ‘मैरिस म्यूजिक कॉलेज’, जो अब ‘भातखंडे संगीत विद्यापीठ’ के नाम से जाना जाता है, ग्वालियर का ‘माधव संगीत महाविद्यावय’ तथा बड़ौदा का ‘म्यूजिक कॉलेज’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
मृत्यु
Vishnu Narayan Bhatkhande की मृत्यु 19 सितंबर 1936 को हुई।