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विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी – Vishwanath Pratap Singh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको  विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी – Vishwanath Pratap Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।

विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी – Vishwanath Pratap Singh Biography Hindi

विश्वनाथ प्रताप सिंह ( English – Vishwanath Pratap Singh ) भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे।

राजीव गांधी सरकार के पतन के कारण बने विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आम चुनाव के माध्यम से 2 दिसम्बर, 1989 को प्रधानमंत्री पद प्राप्त किया था।

Vishwanath Pratap Singh बेहद महत्त्वाकांक्षी होने के अलावा कुटिल राजनीतिज्ञ भी कहे जाते हैं।

1969 से 1971 में वे उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुँचे।

उन्होंने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का कार्यभार भी सम्भाला।

उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 9 जून, 1980 से 28 जून, 1982 तक ही रहा।

इसके बाद वे 29 जनवरी, 1983 को केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री बने।

विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्यसभा के भी सदस्य रहे चुके है ।

31 दिसम्बर, 1984 को वे भारत के वित्तमंत्री भी बने।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में ‘गोपाल इंटरमीडिएट कॉलेज’ की स्थापना की थी।

जन्म

Vishwanath Pratap Singh का जन्म 25 जून, 1931 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम बहादुर राय गोपाल सिंह था।

उनका विवाह 25 जून, 1955 को उनके जन्मदिन के दिन ही सीता कुमारी के साथ हुआ था।

उनके दो बेटे है।  Vishwanath Pratap Singh ने इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में ‘गोपाल इंटरमीडिएट कॉलेज’ की स्थापना की थी।

शिक्षा – विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी

Vishwanath Pratap Singh ने कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल, देहरादून से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर उन्होने इलाहाबाद और पूना विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। वे 1947 से 1948 में उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी की विद्यार्थी यूनियन के अध्यक्ष  भी रहे।

प्रताप सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्टूडेंट यूनियन में उपाध्यक्ष भी थे। 1957 में उन्होंने ‘भूदान आन्दोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी ज़मीनें दान में दे दीं। इसके लिए पारिवारिक विवाद हुआ, जो कि न्यायालय भी जा पहुँचा था।

वे इलाहाबाद की ‘अखिल भारतीय कांग्रेस समिति’ के अधिशासी प्रकोष्ठ के सदस्य भी रहे। राजनीति के अतिरिक्त उन्हे कविता और पेटिंग का भी शौक़ था। उनके कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए और पेटिंग्स की प्रदर्शनियाँ भी लगीं।

विश्वनाथ प्रताप सिंह की दो कविताएँ इस प्रकार हैं-

मुफ़लिस

मुफ़लिस से अब चोर बन रहा हूँ
पर इस भरे बाज़ार से चुराऊँ क्या,
यहाँ वही चीज़ें सजी हैं
जिन्हें लुटाकर मैं मुफ़लिस हो चुका हूँ।

आईना

मेरे एक तरफ़ चमकदार आईना है
उसमें चेहरों की चहल-पहल है,
उसे दुनिया देखती है
दूसरी ओर कोई नहीं
उसे मैं अकेले ही देखता हूँ।

रचनाएँ – विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी

करियर

1969 में कांग्रेस पार्टी का सदस्य बने रहते हुए सिंह उत्तर प्रदेश की वैधानिक असेंबली के सदस्य भी नियुक्त हुए।

इसके बाद 1971 में उनकी नियुक्ती लोक सभा में भी की गयी और फिर 1974 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कॉमर्स का डिप्टी मिनिस्टर भी बनाया।

1976 से 1977 तक उन्होंने कॉमर्स का मिनिस्टर बने रहते हुए सेवा की थी।

1980 में जब गाँधी पुनर्नियुक्त की गयी थी तब इंदिरा गाँधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया था।

1980 से 1982 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने बटमारी की समस्या को सुलझाने के लिए काफी प्रयास किये।

उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम इलाको के ग्रामीण भागो में यह समस्या गंभीर रूप से परिपूर्ण थी। इसके चलते उन्होंने बहुत से लोगो का भरोसा जीत लिया था और अपने इलाको में बहुत सी ख्याति प्राप्त कर ली थी। और कुछ समय बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

1983 में फिर से उनकी नियुक्ती मिनिस्टर ऑफ़ कॉमर्स के पद पर की गयी थी।

इसके बाद 1989 के चुनाव में सिंह की वजह से ही बीजेपी राजीव गांधी को गद्दी से हटाने में सफल रही थी।

1989 में उनके द्वारा निभाए गए महत्वपूर्ण भूमिका के लिए वे हमेशा भारतीय राजनीती में याद किये जाते है।

कहा जाता है की 1989 के चुनाव से देश में बहुत बड़ा बदलाव आया था और इसी चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री बनकर दलित और छोट वर्ग के लोगो की सहायता की।विश्वनाथ प्रताप सिंह एक निडर राजनेता थे, दुसरे प्रधानमंत्रीयो की तरह वे कोई भी निर्णय लेने से पहले डरते नही थे बल्कि वे निडरता से कोई भी निर्णय लेते थे और ऐसा ही उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ गिरफ़्तारी का आदेश देकर किया था।

मृत्यु – विश्वनाथ प्रताप सिंह की जीवनी

विश्वनाथ प्रताप सिंह गुर्दे और हृदय की समस्याओं से पीड़ित थे जिसकी वजह से उन्हे बॉम्बे अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में भर्ती कराया गया था।76 वर्षीय सिंह के गुर्दे और दिल की बीमारियों का इलाज चल रहा था। आम तौर पर उनका नई दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल में या मुंबई के बॉम्बे अस्पताल में डायलिसिस होता था।

वे 1991 से ब्लड कैंसर जैसी बीमारी से भी जूझ रहे थे मगर इसके बावजूद उन्होंने सक्रिय राजनीतिक जीवन नहीं छोड़ा और 27 नवंबर 2008 को लंबी बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई

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