आज इस आर्टिकल में हम आपको खान अब्दुल गफ्फार खां की जीवनी – Khan Abdul Ghaffar Khan Biography Hindi के बारे में बताएगे।
खान अब्दुल गफ्फार खां की जीवनी – Khan Abdul Ghaffar Khan Biography Hindi
(English – Khan Abdul Ghaffar Khan)खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान एक महान् राजनेता और अहिंसा के समर्थक थे।
यही कारण था कि लोग उन्हे धार्मिक नेता के तौर पर भी पहचानते थे।
1929 में खुदाई खिदमतगार आंदोलन शुरू किया। आंदोलन कि सफलता से अंग्रेज़ शासक तिलमिला उठे।
ये देश के बँटवारे के बिलकुल खिलाफ थे।
उन्होने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलग पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था।
संक्षिप्त विवरण
नाम | ‘सीमांत गांधी’, ‘बाचा ख़ान’, ‘बादशाह ख़ान’ |
पूरा नाम | खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान |
जन्म | 6 फरवरी 1890 |
जन्म स्थान | पेशावर, पाकिस्तान |
पिता का नाम | बैरम खान |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | मुस्लिम |
जन्म
Khan Abdul Ghaffar Khan का जन्म 6 फरवरी 1890 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था।
उनके पिता का नाम बैरम खान था।
शिक्षा – खान अब्दुल गफ्फार खां की जीवनी
उन्होंने अपने लड़के को शिक्षित बनाने के लिए ‘मिशनरी स्कूल’ में भेजा, पठानों ने उनका बड़ा विरोध किया।
मिशनरी स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान अलीगढ़ आ गए।
गर्मी की छुट्टियों में समाजसेवा करना उनका मुख्य काम था।
शिक्षा समाप्त कर वह देशसेवा में लग गए।
करियर
पेशावर में जब 1919 में फौजी कानून (मार्शल ला) लागू किया गया उस समय उन्होंने शांति का प्रस्ताव उपस्थित किया, फिर भी वे गिरफ्तार किए गए।अंग्रेज सरकार उनपर विद्रोह का आरोप लगाकर जेल में बंद रखना चाहती थी अत: उसकी ओर से इस प्रकार के गवाह तैयार करने के प्रयत्न किए गए जो यह कहें कि बादशाह खान के भड़काने पर जनता ने तार तोड़े।
लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति तैयार नहीं हुआ जो सरकार की तरफ ये झूठी गवाही दे।
फिर भी इस झूठे आरोप में उन्हें छह मास की सजा दी गई।
खुदाई खिदमतगार का जो सामाजिक संगठन उन्होंने बनाया था, उसका कार्य शीघ्र ही राजनीतिक कार्य में परिवर्तित हो गया। खान साहब का कहना है : प्रत्येक खुदाई खिदमतगार की यही प्रतिज्ञा होती है कि हम खुदा के बंदे हैं, दौलत या मौत की हमें कदर नहीं है।
और हमारे नेता सदा आगे बढ़ते चलते है। मौत को गले लगाने के लिये हम तैयार है।
1930 में सत्याग्रह करने पर वे दोबारा जेल भेजे गए और उनका तबादला गुजरात के जेल में कर दिया गया।
वहाँ आने के पश्चात् उनका पंजाब के अन्य राजबंदियों से परिचय हुआ।
जेल में उन्होंने सिख गुरूओं के ग्रंथ पढ़े और गीता का अध्ययन किया।
हिंदु और मुसलमानों के आपसी मेल-मिलाप को जरूरी समझकर उन्होंने गुजरात के जेलखाने में गीता तथा कुरान के दर्जे लगाए, जहाँ योग्य संस्कृतज्ञ और मौलवी संबंधित दर्जे को चलाते थे। उनकी संगति से अन्य कैदी भी प्रभावित हुए और गीता, कुरान तथा ग्रंथ साहब आदि सभी ग्रंथों का अध्ययन सबने किया।
1931से 1970 तक
29 मार्च 1931 को लंदन द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के पूर्व महात्मा गांधी और तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौता (Gandhi–Irwin Pact) कहते हैं।
गांधी इरविन समझौते के बाद खान साहब छोड़े गए और वे सामाजिक कार्यो में लग गए।
गांधीजी इंग्लैंड से लौटे ही थे कि सरकार ने कांग्रेस पर फिर पाबंदी लगा दी अत: बाध्य होकर व्यक्तिगत अवज्ञा का आंदोलन प्रारंभ हुआ। सीमाप्रांत में भी सरकार की ज्यादतियों के विरूद्ध मालगुजारी आंदोलन शुरू कर दिया गया और सरकार ने उन्हें और उनके भाई डॉ॰ खान को आंदोलन का सूत्रधार मानकर सारे घर को कैद कर लिया।
1934 ई. में जेल से छूटने पर दोनों भाई वर्धा में रहने लगे। और इस बीच उन्होंने सारे देश का दौरा किया। कांग्रेस के निश्चय के अनुसार 1939 ई. में प्रांतीय कौंसिलों पर अधिकार प्राप्त हुआ तो सीमाप्रांत में भी कांग्रेस मंत्रिमडल उनके भाई डॉ॰ खान के नेतृत्व में बना लेकिन स्वयं वे उससे अलग रहकर जनता की सेवा करते रहे।
1942 ई. के अगस्त आंदोलन के सिलसिले में वे गिरफ्तार किए गए और 1947 ई. में छूटे।
देश का बटवारा होने पर उनका संबंध भारत से टूट सा गया लेकिन वे देश के विभाजन से किसी प्रकार सहमत न हो सके। इसलिए पाकिस्तान से उनकी विचारधारा सर्वथा भिन्न थी। पाकिस्तान के विरूद्ध उन्होने स्वतंत्र पख्तूनिस्तान आंदोलन आजीवन जारी रखा।1970 में वे भारत और देश भर में घूमे। उस समय उन्होंने शिकायत की भारत ने उन्हें भेड़ियों के समाने डाल दिया है तथा भारत से जो आकांक्षा थी, एक भी पूरी न हुई। भारत को इस बात पर बार-बार विचार करना चाहिए।
गाँधीजी से मुलाकात
राजनीतिक असंतुष्टों को बिना मुक़दमा चलाए नज़रबंद करने की इजाज़त देने वाले रॉलेट एक्ट के ख़िलाफ़ 1919 में हुए आंदोलन के दौरान ग़फ़्फ़ार ख़ां की गांधी जी से मुलाक़ात हुई और उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। अगले वर्ष वह ख़िलाफ़त आंदोलन में शामिल हो गए, जो तुर्की के सुल्तान के साथ भारतीय मुसलमानों के आध्यात्मिक संबंधों के लिए प्रयासरत था और 1921 में वह अपने गृह प्रदेश पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में ख़िलाफ़त कमेटी के ज़िला अध्यक्ष चुने गए।
खुदाई ख़िदमतगार की स्थापना
1929 में कांग्रेस पार्टी की एक सभा में शामिल होने के बाद ग़फ़्फ़ार ख़ां ने ख़ुदाई ख़िदमतगार (ईश्वर के सेवक) की स्थापना की और पख़्तूनों के बीच लाल कुर्ती आंदोलन का आह्वान किया। विद्रोह के आरोप में उनकी पहली गिरफ़्तारी 3 वर्ष के लिए हुई थी। उसके बाद उन्हें यातनाओं की झेलने की आदत सी पड़ गई। जेल से बाहर आकर उन्होंने पठानों को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने के लिए ‘ख़ुदाई ख़िदमतग़ार’ नामक संस्था की स्थापना की और अपने आन्दोलनों को और भी तेज़ कर दिया।
पुरस्कार – खान अब्दुल गफ्फार खां की जीवनी
1987 में भारत सरकार की ओर से भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया।
20 जनवरी 1988 को Khan Abdul Ghaffar Khan की मृत्यु हो गयी
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