आज इस आर्टिकल में हम आपको मोतीलाल की जीवनी – Motilal Biography Hindi के बारे में बताएगे।
मोतीलाल की जीवनी – Motilal Biography Hindi
मोतीलाल हिंदी सिनेमा के अभिनेता थे।
उन्होंने हिंदी फ़िल्मों को मेलोड्रामाई संवाद अदायगी और अदाकारी की तंग गलियों
से निकालकर खुले मैदान की ताजी हवा में खड़ा किया।
उन्होने परख, वक्त, लीडर, देवदास (1955), जागते रहो जैसी कई फिल्मों में
काम किया।
1950 के बाद मोतीलाल ने चरित्र नायक का चोला धारणकर अपने अद्भुत अभिनय की मिसाल पेश की। विमल राय की फ़िल्म ‘देवदास’ (1955) में देवदास के शराबी दोस्त चुन्नीबाबू के रोल को उन्होंने लार्जर देन लाइफ का दर्जा दिलाया।
उनको फ़िल्म देवदास और परख के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला।
जन्म
मोतीलाल का जन्म 4 दिसंबर 1910 को शिमला में हुआ था।
उनके पिता एक प्रख्यात शिक्षाविद थे।
बचपन में उनके पिता का देहांत हो गया जिसके बाद उनके चाचा ने उनका पालन पोषण किया।
शिक्षा
मोतीलाल ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शिमला के अंग्रेज़ी स्कूल प्राप्त की इसके बाद उन्होने उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की।
करियर – मोतीलाल की जीवनी
कॉलेज छोड़ने के बाद वे बंबई में नौसेना में शामिल होने के लिए आए लेकिन बीमार होने के कारण परीक्षा नहीं दे पाए। 1934 में 24 साल की आयु में उन्होने सागर फ़िल्म कंपनी में शहर का जादू फ़िल्म के लिए नायक की भूमिका की पेशकश की गई। बाद में उन्होंने सबिता देवी के साथ-साथ कई सफल सामाजिक नाटक में विशेष रूप से डा मधुरिका (1935) और कुलवधु (1937) में काम किया।
1937 में मोतीलाल ने सागर मूवीटोन छोडकर रणजीत स्टूडियो में शामिल हुए। इस बैनर की फ़िल्मों में उन्होंने ‘दीवाली’ से ‘होली’ के रंगों तक, ब्राह्मण से अछूत तक, देहाती से शहरी छैला बाबू तक के बहुरंगी रोल से अपने प्रशंसकों का भरपूर मनोरंजन किया।
उस दौर की लोकप्रिय गायिका-नायिका खुर्शीद के साथ उनकी फ़िल्म ‘शादी’ सुपर हिट रही थी।
रणजीत स्टूडियो में काम करते हुए मोतीलाल की कई जगमगाती फ़िल्में आई- ‘परदेसी’, ‘अरमान’, ‘ससुराल’ और ‘मूर्ति’।
बॉम्बे टॉकीज ने गांधीजी से प्रेरित होकर फ़िल्म ‘अछूत कन्या’ बनाई थी।
रणजीत ने मोतीलाल- गौहर मामाजीवाला की जोडी को लेकर ‘अछूत’ फ़िल्म बनाई।
फ़िल्म का नायक बचपन की सखी का हाथ थामता है, जो अछूत है।
नायक ही मंदिर के द्वार सबके लिए खुलवाता है।
इस फ़िल्म को गांधीजी और सरदार पटेल का आशीर्वाद मिला था।
1939 में इन इंडियन फ़िल्म्स नाम से ऑल इंडिया रेडियो ने फ़िल्म कलाकारों से साक्षातकार की एक शृंखला प्रसारित की थी। इसमें ‘अछूत’ का विशेष उल्लेख इसलिए किया गया था कि फ़िल्म में गांधीजी के अछूत उद्घार के संदेश को सही तरीके से उठाया गया था। नायकों में सर्वाधिक वेतन पाने वाले थे उस जमाने के लोकप्रिय अभिनेता मोतीलाल, उन्हें ढाई हजार रुपये मासिक वेतन के रूप में मिलते थे।
फ़िल्मी कलाकारों से मिलने के लियए उस जमाने में भी लोग लालायित रहते थे।
अद्भुत अभिनय प्रतिभा
मोतीलाल की अदाकारी के अनेक पहलू हैं। कॉमेडी रोल से वे दर्शकों को गुदगुदाते थे, तो ‘दोस्त’ और ‘गजरे’ जैसी फ़िल्मों में अपनी संजीदा अदाकारी से लोगों की आंखों में आंसू भी भर देते थे। वर्ष 1950 के बाद मोतीलाल ने चरित्र नायक का चोला धारणकर अपने अद्भुत अभिनय की मिसाल पेश की।
विमल राय की फ़िल्म ‘देवदास’ (1955) में देवदास के शराबी दोस्त चुन्नीबाबू के रोल को उन्होंने लार्जर देन लाइफ का दर्जा दिलाया। दर्शकों के दिमाग में वह सीन याद होगा, जब नशे में चूर चुन्नीबाबू घर लौटते हैं, तो दीवार पर पड़ रही खूंटी की छाया में अपनी छड़ी को बार-बार लटकाने की नाकाम कोशिश करते हैं। ‘देवदास’ का यह क्लासिक सीन है।
राज कपूर निर्मित और शंभू मित्रा-अमित मोइत्रा निर्देशित फ़िल्म ‘जागते रहो’ (1956) के उस शराबी को याद कीजिए, जो रात को सुनसान सडक पर नशे में झूमता-लडखडाता गाता है- ‘ज़िंदगी ख्वाब है’।
फिल्में
1966 – ये ज़िन्दगी कितनी हसीन है | 1965 – वक्त | 1964 – लीडर | 1963 – ये रास्ते हैं प्यार के |
1960 – परख हरधन | 1959 – अनाड़ी | 1959 – पैग़ाम | 1956 – जागते रहो |
1955 – देवदास | 1953 – धुन | 1950 – हँसते आँसू | 1946 – फुलवारी |
पुरस्कार – मोतीलाल की जीवनी
- 1961 में फिल्म पारख के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार से नवाजा गया।
- 1957 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार फिल्म देवदास के लिए।
मृत्यु
मोतीलाल की मृत्यु 1965 में हुई।
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