आज इस आर्टिकल में हम आपको राजाराम की जीवनी – Rajaram Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
राजाराम की जीवनी – Rajaram Biography Hindi
Rajaram एक साहसी सैनिक और विलक्षण राजनीतिज्ञ था।
राजाराम के पिता का नाम भज्जासिंह था।
राजाराम को सिनसिनवार जाटों का सरदार बनाया गया।
वे बहुमुखी प्रतिभा का धनी थे, उसने आगरा के निकट सिकन्दरा में अकबर के मक़बरे को लूटा था।
उन्होने जाटों के दो प्रमुख क़बीलों-सिनसिनवारों और सोघरवालों को आपस में मिलाया था।
सोघर गाँव सिनसिनी के दक्षिण-पश्चिम में था। रामचहर सोघरिया क़बीले का मुखिया था।
राजाराम और रामचहर सोघरिया जल्दी ही अपनी उपस्थिति कराने लगे।
योगदान – राजाराम की जीवनी
सिनसिनी से उत्तर की तरफ आऊ नामक एक खुशहाल गाँव था। इस गाँव में एक सैन्य दल नियुक्त था, जो लगभग 2,00,000 रुपये सालाना मालगुज़ारी वाले इस क्षेत्र में व्यवस्था बनाने के लिए नियुक्त किया गया था।
इसके चौकी अधिकारी का नाम लालबेग था जो अत्यधिक कुत्सित(तुच्छ) प्रवृत्ति का था। एक दिन एक अहीर अपनी पत्नी के साथ गाँव के कुएँ पर विश्राम के लिए रुका। लालबेग का एक कर्मचारी उधर से निकला और उसने अहीर युवती की अद्वितीय सुन्दरता को देखा और उसी समय लालबेग को इस बात ख़बर की। लालबेग ने कुछ सिपाही भेजकर अहीर दंपति को बुला भेजा।
पति को छोड़ दिया गया, और पत्नी को लालबेग के निवास में भेज दिया गया। यह ख़बर तेजी से फैली और राजाराम ने योजना बनाई। कुछ ही दूरी पर गोवर्धन में वार्षिक मेला होने वाला था। बहुत ज्यादा संख्या में लोग इस मेले में आते थे। ज़्यादातर लोग बैलगाड़ियों पर, ऊँटों पर और घोड़ों पर आते थे और तो उन पशुओं को चारे की जरुरत होती थी। लालबेग को घास ले जाने वाली गाड़ियों को मेले के मैदान में जाने की अनुमति देनी पड़ी। उन घास से भरी गाड़ियों के बीच राजाराम और उनके वीर सैनिक छिपे हुए थे।
चौकी को पार करते ही उन्होंने गाड़ियों में आग लगा दी और उसके बाद भीषण युद्ध हुआ और तो उसमें लालबेग मारा गया और इस तरह राजाराम ने अपनी वीरता का परिचय दिया। इस युद्ध के बाद राजाराम ने अपने क़बीले को सुव्यवस्थित सेना बनाना शुरू कर दिया, जो रेजिमेंट के रूप में संगठित थी, अस्त्र-शस्त्रों से युक्त यह सेना अपने नायकों की आज्ञा मानने को प्रशिक्षित थी।
मुग़ल शासन से विद्रोह
सुरक्षित जाट-प्रदेश के जंगलों में छोटी-छोटी क़िले नुमा गढ़ियाँ बनवायीं गईं। उन पर मिट्टी की परतें चढ़ाकर मज़बूत बनाया गया। उन गढ़ियाँ पर तोप-गोलों का असर भी ना के बराबर ही होता था।राजाराम ने मुग़ल शासन से विद्रोह कर युद्ध के लिए ललकारा। जाट-क़बीलों ने भी राजाराम का ही साथ दिया। उनका मुख्य लक्ष्य आगरा था।
राजाराम जो गोकुल सिंह के वध का प्रतिशोध ले रहा था, धौलपुर से आगरा तक की यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति 200 रुपये लिये जाते थे। उन्होने अपना कर लगाया था। इस एकत्रित राशि को राजाराम ने आगरा की इमारतों को नष्ट करने के लिए उपयोग किया। राजाराम के डर से आगरा के सूबेदार सफ़ी ख़ाँ ने बाहर निकलना ही बन्द कर दिया था।
राजाराम की पहली कोशिश नाकाम रही और सिकन्दरा के फ़ौजदार मीर अबुलफ़ज़ल ने बड़ी मुश्किल से मक़बरे को बचाया। सिनसिनी की ओर लौटते हुए राजाराम ने कई मुग़ल गाँवो को लूटा। क्योंकि उसे पैसे की ज़रूरत थी, वह स्वच्छन्द उपायों से धन प्राप्त करता था। धीरे-धीरे राजाराम दबंग होता गया।
1686 में सेनाध्यक्ष आग़ा ख़ाँ क़ाबुल से बीजापुर सम्राट के पास जा रहा था। तो उस समय वह धौलपुर पहुँचा, राजाराम के छापामार दल ने आग़ा ख़ाँ के असावधान सैनिकों पर हमला किया। शाही काफ़िलों पर कोई भी हमला करने की हिम्मत नहीं करता था। आग़ा ख़ाँ काफ़ी लंबे समय से क़ाबुल में ही था, उसने आक्रमणकारियों का पीछा किया। तो वह उनके पास पहुँचा तो राजाराम ने उसे और उसके अस्सी सैनिकों को मार ड़ाला।
जाट- विद्रोह
दक्षिण में औरंगज़ेब ने जब यह सुना तो उसने तुरन्त कार्रवाई की।
उसने जाट- विद्रोह से निपटने के लिए अपने चाचा, ज़फ़रजंग को भेजा।
तो वे नाकाम रहा। इसके बाद औरंगजेब ने युद्ध के लिए अपने बेटे शाहज़ादा आज़म को भेजा।
शहज़ादा बुरहानपुर तक ही आया था कि औरंगजेब ने उसे गोलकुण्डा जाने के लिए कहा।
औरंगजेब ने राजाराम के ख़िलाफ़ मुग़ल सेनाओं के नेतृत्व के लिए आज़म के बेटे बीदरबख़्त को भेजा। बीदरबख़्त 17 साल के थे।
वह उम्र में कम पर काफी साहसी था।
ज़फ़रजंग को प्रधान सलाहकार बनाया गया। बार-बार के बदलावों से शाही फ़ौज में षड्यन्त्र होने लगे।
तो राजाराम ने इस मौके का फ़ायदा उठाया। मुग़लों की सेना में उसके गुप्तचर थे।
जिससे उसे मुग़ल सेना की गतिविधियों का पता रहता था।
सत्रहवीं शताब्दी में मुग़ल सैनिक पूरे लश्कर के साथ यात्रा करते थे।
बीदरबख़्त के आगरा आने से पहले ही राजाराम मुग़लों पर एक और बार हमला कर चुका था।
पहले उसने आगरा में मीर इब्राहीम हैदराबादी पर हमला किया।
उस समय मीर हैदराबादी पंजाब की सूबेदारी सँभालने जा रहा था।
1688 में आक्रमण
मार्च,1688 में राजाराम ने आक्रमण किया। राजाराम ने अकबर के मक़बरे को लगभग तोड़ ही दिया था।
यह निश्चय मुग़लों की प्रभुता का प्रतीक था।
मनूची का कथन है कि जाटों ने लूटपाट “काँसे के उन विशाल फाटकों को तोड़कर शुरू की, जो इसमें लगे थे; उन्होंने बहुमूल्य रत्नों और सोने-चाँदी के पत्थरों को उखाड़ लिया और जो कुछ वे ले जा नहीं सकते थे, उसे उन्होंने नष्ट कर दिया।” इस प्रकार राजाराम ने गोकुल सिंह के वध का बदला लिया।
राजाराम जीत तो गया, पर बहुत समय तक जाटों पर लुटेरा और वहशी होने का कलंक लगा रहा।
राजाराम का काम माफी के योग्य नहीं पर उस युद्ध के बीज औरंगज़ेब के अत्याचारों ने बोए थे।
हिन्दू मन्दिरों के विनाश और मन्दिरों की जगह पर मस्जिदों का निर्माण करने से बदले की भावना पूरी तरह से पनप चुकी थी । सिकन्दरा युद्ध के बाद चौहान और शेख़ावत राजपूतों ने राजाराम से सहायता माँगी तो वह तुरन्त तैयार हो गया।
मृत्यु – राजाराम की जीवनी
राजा राम 4 जुलाई, 1688 को बैजल नाम के छोटे-से गाँव में एक मुग़ल की गोली से मारा गया था।
उसी दिन यही दशा सोघरिया सरदार की भी हुई थी।
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