आज इस आर्टिकल में हम आपको राजीव गांधी की जीवनी – Rajiv Gandhi Biography Hindi के बारे में बताएगे।
राजीव गांधी की जीवनी – Rajiv Gandhi Biography Hindi
राजीव गांधी भारत के सातवें प्रधानमंत्री थे और वे देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने।
उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में 1984 से 1989 तक सेवा की।
उन्होंने अपनी माता श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री का कार्यालय संभाला।
भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 29 नवंबर 1989 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया।
उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल और शुरुआत की जिनमें संचार क्रांति और कंप्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल है। 21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में भारत की क्षमता विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया।
जन्म
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 में मुंबई में हुआ था।
उनके पिता का नाम फ़िरोज़ गाँधी तथा उनकी माता का नाम इंदिरा गांधी था।
राजीव गांधी के भाई का नाम संजय गांधी था।
इंदिरा और फिरोज में अलगाव होने के बाद इंदिरा गाँधी अपने पिता जवाहर लाल नेहरु के घर रहने लगी।
राजीव गाँधी यही बड़े हुए, उन्होंने भारत की राजनीती को नेहरु परिवार के होने के नाते करीब से देखा था।
पढ़ाई के दौरान सोनिया गाँधी से उनकी मुलाकात हुई।
1968 में उनकी शादी हुई थी जिसके बाद वे भारत में रहने लगे थे।
राजीव गाँधी के दो बच्चे हुए जिनका नाम राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा है।
शिक्षा – राजीव गांधी की जीवनी
राजीव गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मशहूर दून स्कूल,देहारादून से पूरी की और बाद में लंदन विश्वविद्यालय ट्रिनिटी कॉलेज और कैंब्रिज में पढाई की।
करियर
भारत लौटने पर राजीव गांधी ने व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया और 1968 से इंडियन एयरलाइन्स में काम करने लगे।राजीव गांधी की राजनीतिक में कोई रुचि नहीं थी लेकिन इसके बाद भी उन्होने माँ इंदिरा गाँधी के कहने पर राजनीति जीवन शुरू किया। छोटे भाई संजय के स्थान पर 1981 में अमेठी से पहला चुनाव जीता और लोकसभा में पहुंचे। जब तक उनके भाई जीवित थे, राजीव राजनीति से बाहर ही रहे, लेकिन एक शक्तिशाली राजनीति व्यक्तित्व के धनी संजय की 23 जून, 1980 को एक वायुयान दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राजीव को राजनीतिक जीवन में ले आईं। जून 1981 में वह लोकसभा उपचुनाव में निर्वाचित हुए और इसी महीने युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए।
सन 1984 के बाद
31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश की डांवाडोल होती राजनीतिक परिस्थितियों को संभालने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया। उस समय कई लोगों ने उन्हें नौसिखिया भी कहा लेकिन जिस तरह से उन्होंने यह जिम्मेदारी निभाई उससे सभी अचंभित रह गए। राजीव को सौम्य व्यक्ति माना जाता था। जो पार्टी के अन्य नेताओं से विचार-विमर्श करते थे और जल्दबाज़ी में निर्णय नहीं लेते थे। जब उनकी माँ की हत्या हुई, तो राजीव को उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और उन्हें कुछ दिन बाद कांग्रेस (इं) पार्टी का नेता चुन लिया गया।
उनका शासनकाल कई आरोपों से भी घिरा रहा जिसमें बोफोर्स घोटाला सबसे गंभीर था।
इसके अलावा उन पर कोई ऐसा दाग़ नहीं था जिसकी वजह से उनकी निंदा हो।
पाक दामन होने की वजह से ही लोगों के बीच राजीव गांधी की अच्छी पकड़ थी।
राजनीतिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद राजीव गांधी ने कभी भी राजनीति में रुचि नहीं ली।
भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था में राजीव गांधी का प्रवेश केवल हालातों की ही देन था।
दिसंबर 1984 के चुनावों में कांग्रेस को जबरदस्त बहुमत हासिल हुआ।
इस जीत का नेतृत्व भी राजीव गांधी ने ही किया था।
अपने शासनकाल में उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं और नौकरशाही में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए। कश्मीर और पंजाब में चल रहे अलगाववादी आंदोलनकारियों को हतोत्साहित करने के लिए राजीव गांधी ने कड़े प्रयत्न किए। भारत में ग़रीबी के स्तर में कमी लाने और ग़रीबों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए 1 अप्रैल 1989 को राजीव गांधी ने जवाहर रोजगार गारंटी योजना को लागू किया जिसके अंतर्गत इंदिरा आवास योजना और दस लाख कुआं योजना जैसे कई कार्यक्रमों की शुरुआत की।
योगदान – राजीव गांधी की जीवनी
राजीव गांधी अपनी इच्छा के विपरीत राजनीति में आए थे।
वह खुद राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे लेकिन यह विडंबना ही है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज्यादा आलोचना झेलनी पड़ी। उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल और शुरुआत की जिनमें संचार क्रांति और कंप्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल है। 21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में भारत की क्षमता विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया। राजीव ने कई साहसिक कदम उठाए जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिजोरम समझौता आदि शामिल है।
अलगाववादी आन्दोलन
दिसम्बर 1984 के आम चुनाव में उन्होंने पार्टी की ज़बरदस्त जीत का नेतृत्व किया और उनके प्रशासन ने सरकारी नौकरशाही में सुधार लाने तथा देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए ज़ोरदार क़दम उठाए। लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आन्दोलन को हतोत्साहित करने की राजीव की कोशिश का उल्टा असर हुआ तथा कई वित्तीय साज़िशों में उनकी सरकार के उलझने के बाद उनका नेतृत्व लगातार अप्रभावी होता गया।
1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन वह कांग्रेस (इं) पार्टी के नेता पद पर बने रहे।
आगामी संसदीय चुनाव के लिए तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान एक आत्मघाती महिला के बम विस्फोट में उनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि यह महिला तमिल अलगाववादियों से संबद्ध थी। अपने राजनीतिक फैसलों से कट्टरपंथियों को नाराज कर चुके राजीव पर श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक्त हमला किया गया, लेकिन वह बाल-बाल बच गए थे, पर 1991 में ऐसा नहीं हो सका।
मृत्यु – राजीव गांधी की जीवनी
राजीव गांधी 21 मई 1991को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर को सुबह 10 बजे के क़रीब एक महिला उनसे मिलने के लिए स्टेज तक
गई और उनके पांव छूने के लिए जैसे ही झुकी उसके शरीर में लगा आरडीएक्स फट गया।
इस हमले में राजीव गांधी की मृत्यु हो गई।
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