आज इस आर्टिकल में हम आपको राजनारायण बोस की जीवनी – Rajnarayan Basu Biography Hindi के बारे में बताएगे।
राजनारायण बोस की जीवनी – Rajnarayan Basu Biography Hindi
(English – Rajnarayan Basu)राजनारायण बोस बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक और बंगाली पुनर्जागरण के चिंतकों में से एक थे।
उन्होंने भारत देश और हिन्दू धर्म को सार्थक दिशा दी।
संक्षिप्त विवरण
नाम | राजनारायण बोस |
पूरा नाम | राजनारायण बसु |
जन्म | 7 सितंबर 1826 |
जन्म स्थान | बोड़ाल, चौबीस परगना, बंगाल |
पिता का नाम | नंद किशोर बसु |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु |
18 सितंबर, 1899 |
मृत्यु स्थान |
– |
जन्म – राजनारायण बोस की जीवनी
राजनारायण बोस का जन्म 7 सितंबर 1826 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना के बोरहाल नामक गाँव में हुआ था।
उनके पिता का नाम नंद किशोर बसु था, जो कि राजा राममोहन राय के शिष्य थे और फिर बाद में उनके सचिव बन गये।
शिक्षा और करियर
बचपन से ही राजनारायण जी प्रबल बुद्धि और प्रतिभा वाले छात्र रहे। उनके शिक्षक भी उनकी तीव्र बुद्धि की प्रशंसा करते थे। शिक्षा पूरी करने के बाद 1851 में उन्होंने अध्यापन कार्य को अपनाया।
राजकीय विद्यालय में वे पहले भारतीय प्राचार्य बने। उन्होंने 1857 के स्वाधीनता संग्राम के उत्साह और उसकी विफलता को निकट से देखा। मेदिनीपुर में नियुक्ति के समय उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाने का अवसर मिला; पर इन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
उस समय बंगाल के बुद्धिजीवियों में ब्राह्म समाज तेजी से फैल रहा था। यह हिन्दू धर्म का ही एक सुधारवादी रूप था; पर कुछ लोग इसे अलग मानते थे। हिन्दुओं को बांटने के इच्छुक अंग्रेज भी इन अलगाववादियों के पीछे थेे; पर श्री बसु ने अपने तर्कपूर्ण भाषण और लेखन द्वारा इस षड्यन्त्र को विफल कर दिया। उन्होंने अपनी बड़ी पुत्री स्वर्णलता का विवाह डा. कृष्णधन घोष से ब्राह्म पद्धति से ही किया। श्री अरविन्द इसी दम्पति के पुत्र थे।
देश, धर्म और राष्ट्रभाषा के उन्नायक श्री बसु ने अनेक संस्थाएं स्थापित कीं। 1857 के स्वाधीनता संग्राम की विफलता के बाद उन्होंने ‘महचूणोमुहाफ’ नामक गुप्त क्रांतिकारी संगठन बनाया। नवयुवकों में चरित्र निर्माण के लिए उन्होंने ‘राष्ट्रीय गौरवेच्छा सम्पादिनी सभा’ की स्थापना की। इनकी प्रेरणा से ही ‘हिन्दू मेला’ प्रारम्भ हुआ। बंगाल में देवनागरी लिपि, हिन्दी और संस्कृत शिक्षण तथा गोरक्षा के लिए भी इन्होंने अनेक प्रयास किये। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वन्दे मातरम् गीत 1875 में लिखा था। श्री बसु ने जब उसका अंग्रेजी अनुवाद किया, तो उसकी गूंज ब्रिटिश संसद तक हुई।
महाहिन्दू समिति
श्री बसु ने मुसलमान तथा ईसाइयों को हिन्दू धर्म में वापस लाने के लिए ‘महाहिन्दू समिति’ बनाई। इसके कार्यक्रम ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ तथा ‘वन्दे मातरम्’ के गान से प्रारम्भ होते थे। यद्यपि शासन के कोप से बचने के लिए ‘गॉड सेव दि क्वीन’ भी बोला जाता था।
इसके सदस्य एक जनवरी के स्थान पर प्रथम बैसाख को नववर्ष मनाते थे। वे ‘गुड नाइट’ के बदले ‘सु रजनी’ कहते थे तथा विदेशी शब्दों को मिलाये बिना शुद्ध भाषा बोलते थे। एक विदेशी शब्द के व्यवहार पर एक पैसे का अर्थदण्ड देना होता था। युवकों में शराब की बढ़ती लत को देखकर उन्होंने ‘सुरापान निवारिणी सभा’ भी बनाई।
‘हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता’ नामक तर्कपूर्ण भाषण में उन्होंने इसे वैज्ञानिक और युगानुकूल सिद्ध किया। मैक्समूलर तथा जेम्स रटलेज जैसे विदेशी विद्वानों ने इसे कई बार उद्धृत किया है।
इस विद्वत्ता के कारण उन्हें ‘हिन्दू कुल चूड़ामणि’ तथा ‘राष्ट्र पितामह’ जैसे विशेषणों से विभूषित किया गया। तत्कालीन सभी प्रमुख विचारकों से इनका सम्पर्क था। ऋषि दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी अखण्डानन्द, मदन मोहन मालवीय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, माइकल मधुसूदन दत्त तथा कांग्रेस के संस्थापक ए.ओ. ह्यूम से भी इनकी भेंट होती रहती थी।
रचनाएँ – राजनारायण बोस की जीवनी
राजनारायण बोस ने कठोपनिषद, केनोपनिषद, मुण्डकोपनिषद तथा श्वेताश्वेतर उपनिषद आदि उपनिषदों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उनके कुछ उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं-
- ब्राह्मधर्मेर उच्च आदर्श ओ आमादिगेर आध्यात्मिक अभाव (1875)
- हिन्दु अथबा प्रेसिडेन्सि कलेजेर इतिबृत्त (1876)
- आत्मीय सभार सदस्यदेर बृत्तान्त (1867)
- हिन्दु धर्मेर श्रेष्ठता (1873)
- सेकाल आर एकाल (1874)
- सारधर्म (1886)
- बांग्ला भाषा ओ साहित्य बिषयक बक्तृता (1878)
- बिबिध प्रबन्ध (प्रथम खन्ड-1882)
- ताम्बुलोप हार (1886)
- राजनारायण बसुर बक्तृता (प्रथम भाग-1855, द्वितीय भाग-1870)
- ब्राह्म साधन (1865)
- धर्मतत्त्बदीपिका (प्रथम भाग-1866, द्वितीय भाग-1867)
- बृद्ध हिन्दुर आशा (1887)
- राजनारायण बसुर आत्मचरित (1909)