आज इस आर्टिकल में हम आपको टीपू सुलतान की जीवनी – Tipu Sultan Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
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टीपू सुलतान की जीवनी – Tipu Sultan Biography Hindi
Tipu Sultan भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध योद्धा थे।
अपने पिता की मृत्यु के बाद मैसूर सेना की कमान संभाली।
अपने पिता की ही भांति योग्य एवं पराक्रमी थे।
टीपू को उनकी वीरता के कारण शेर-ए-मैसूर भी कहा जाता थ।
टीपू द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद मराठों एवं निजाम ने अंग्रेजो से संधी कर ली थी।
ऐसी स्थिति में टीपू सुल्तान ने भी अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव किया।
जन्म
सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1750 ने देवनहल्ली, कोलार जिला कर्नाटक में हुआ था।
उनका पूरा नाम फ़तेह अली टीपू था.
उनके पिता का नाम सुल्तान हैदर अली और माता का नाम फातिमा फ़ख-उन-निशा था।
यह इस्लामिक धर्म से संबंध रखते थे।
टीपू सुल्तान बचपन से ही बड़े वीर, विद्याव्यसनी, संगीत और स्थापत्य के प्रेमी थे।
Tipu Sultan के पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सेनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने।
टीपू सुल्तान को मैसूर-के-शेर के नाम से भी जाना जाता है।
टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजो के विरुद्ध अपना पहला युद्ध लड़ा था जिसमें उन्होंने जीत हासिल की।
उनकी पत्नी का नाम सिंधु सुल्तान था।
प्रशिक्षण – टीपू सुलतान की जीवनी
टीपू सुल्तान मैसूर के सुल्तान हैदर अली के सबसे बड़े बेटे थे।
1782 में अपने पिता की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान सिहासन पर बैठे थे।
टीपू ने एक शासक के रूप में अपने प्रशासन में कई नव विचारों को लागू किया और लोहा आधारित मसूरियन रॉकेट का भी विस्तार किया। इस रॉकेट को बाद में ब्रिटिश बलों की प्रगति के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था।
इनके पिता फ्रांसीसी के साथ राजनीतिक संबंध रखते थे और इसी प्रकार टीपू सुल्तान को एक युवा व्यक्ति के रूप
में अधिकारियों से सैन्य प्रशिक्षण भी मिला था।
टीपू सुल्तान शासक बनने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने फ्रांसीसी के साथ मिलकर अपने संघर्ष में अपने पिता की नीति को जारी रखा। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़े और अपने राज्य की पूरी तरह से रक्षा की।
Tipu Sultan की बेहतर रणनीति
टीपू सुल्तान अपने दिमाग की सूझबूझ से रणनीति बनाने में काफी माहिर थे और साथ ही वे एक बहादुर शासक भी थे।
अपने शासनकाल के समय में उन्होंने भारत में बढ़ते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य के सामने कभी नहीं झुके और उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया।
टीपू ने अपनी बहादुरी से जहां कई अंग्रेजों को पटकनी दी।
वहीं निजाम को भी कई मौकों पर धूल चटाई।
मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों को खदेड़ने में टीपू सुल्तान अपने पिता हैदर अली की मदद की।
अपने हार से बौखलाए हैदराबाद के निजाम ने टीपू सुल्तान के साथ गद्दारी की और अंग्रेजों से मिल गया।
मैसूर की तीसरी लड़ाई में जब अंग्रेज टीपू सुल्तान को नहीं हरा पाए तो अंग्रेजों ने मैसूर से ‘मंगलोर संधि’ कर ली।
इस समझौते की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के द्वारा जीते हुए प्रदेशों को वापस कर दिया।
उन्होंने अंग्रेज बंदियों को भी रिहा कर दिया। उनके लिए यह संधि सबसे अच्छी कूटनीतिक सफलता थी।
टीपू सुल्तान अंग्रेजों से अलग से एक संधि कर मराठों के सर्वोच्चता का अविष्कार कर दिया।
संधि से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स सहमत नहीं हुए। और उसने इस संधि के बाद कहा कि-
“यह लॉर्ड मैकार्टनी कैसा आदमी है। मैं अभी भी विश्वास करता हूं कि वह संधि के बावजूद कर्नाटक को को डालेगा।”
पालक्काड़ किला, टिपू का किला के नाम से भी प्रसिद्ध है।
यह किला पालक्काड टाउन के बीच के भाग में स्थित है।
1766 में इसका निर्माण किया गया था। इस किले में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित स्मारक है।
मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने इस किले को ‘लाइट राइट’ यानी ‘मखराला’ से बनवाया था।
जब हैदर अली ने मालाबार और कोच्चि को अपनी अधीन कर लिया था तब इस किले का निर्माण करवाया गया था। टीपू सुल्तान ने भी यहां पर अधिकार जमाया था ।
- पालक्काड़ किला टीपू सुल्तान केरल में शक्ति -दुर्ग था। जहां पर ब्रिटिश के खिलाफ युद्ध लड़ते थे
- 1784 में युद्ध में कर्नल फुल्लेर्ट के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने 11 दिन तक इस शक्ति दुर्ग को घेरे रखा था और अपने कब्जे में कर लिया था। इसके बाद में कोषिक्कोड के सामूतीरी ने क़िले को जीत लिया।
- 1790 में ब्रिटिश सैनिकों ने किले पर दोबारा अधिकार कर लिया। बंगाल में बक्सर का युद्ध को तथा दक्षिण में मैसूर का चौथा युद्ध को जीतकर भारतीय राजनीति पर अंग्रेजों ने अपनी पकड़ को और भी मजबूत कर लिया।
योगदान (विकास कार्य)
- कई बार अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले टीपू सुल्तान को भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने विश्व का सबसे पहला रॉकेट अविष्कार बताया था।
- टीपू सुल्तान ने 1782 में अपने पिता के निधन के बाद मैसूर की कमान संभाली और अपने अल्प शासनकाल में ही विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी। उन्होंने ‘जल भंडारण’ के लिए ‘कावेरी नदी’ के स्थान पर एक बांध की नींव रखी जहां आज ‘कृष्णराज सागर बांध’ मौजूद है।
- Tipu ने अपने पिता के द्वारा शुरू की गई ‘लाल बाघ परियोजना’ को सफलतापूर्वक पूरा किया
- टीपू सुल्तान निसंदेह एक कुशल प्रशासक और योग्य सेनापति भी थे। उन्होंने ‘आधुनिक क्लेंडर’ की शुरुआत की
और सिक्का ढुलाई तथा नापतोल की नई प्रणाली का प्रयोग किया। - Tipu Sultan ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में ‘स्वतंत्रता का वृक्ष’ लगवाया और साथ ही ‘जैकोबिन क्लब’ का सदस्य भी बना। उसने अपने आप को नागरिक टीपू पुकारा
टीपू सुल्तान की असफलता के कारण
- फ्रांसीसी मित्रता और देशी राज्यों को मिलाकर संयुक्त मोर्चा बनाने में असफल रहा।
- सुल्तान अपने पिता की तरह कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शिता का पक्का नहीं था ।
मृत्यु – टीपू सुलतान की जीवनी
अंग्रेजों द्वारा ‘फूट डालो राज करो’ की नीति चलाने भले अंग्रेजों ने संधि के बाद टीपू सुल्तान से गद्दारी कर की।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के साथ मिलकर चौथी बार टीपू सुल्तान पर जबरदस्त हमला किया और 4 मई 1799 को मैसूर का शेर, श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
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