कैलाश सत्यार्थी की जीवनी – Kailash Satyarthi Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको कैलाश सत्यार्थी की जीवनी – Kailash Satyarthi Biography Hindi के बारे में बताएगे।

कैलाश सत्यार्थी की जीवनी – Kailash Satyarthi Biography Hindi

कैलाश सत्यार्थी की जीवनी - Kailash Satyarthi Biography Hindi

कैलाश सत्यार्थी बाल अधिकार कार्यकर्ता, प्रारंभिक बाल शिक्षा कार्यकर्ता है।

उन्होने 1980 में अपना इलेक्ट्रिक इंजीनियर के करियर को छोड़कर 1983 में बालश्रम के ख़िलाफ़ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की।

यह संगठन बच्चों को बालश्रम से मुक्ति दिलाकर उनका पुनर्वास करता है।

बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग पर 1998 में वैश्विक मार्च निकाला।

जिसमें 103 देशों की यात्रा कर 80 हजार किमी की दूरी तय की।

2014 में उन्हे नोबल पुरस्कार से नवाजा गया।

वे अब तक 88 हजार श्रमिकों को मुक्त करा चुके है।

जन्म

कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को मध्यप्रदेश के विदिशा में हुआ था।

उनका वास्तविक नाम कैलास शर्मा है। उनकी पत्नी का नाम सुमेधा है।

उनके परिवार में उनकी पत्नी सुमेधा, पुत्र, पुत्रवधू तथा पुत्री हैं।

सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त वे एक अच्छे पाकशास्त्री (कुक) भी हैं।

शिक्षा

कैलाश सत्यार्थी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकण्ड्री स्कूल से प्राप्त इसके बाद उन्होने सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट, विदिशा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की और फिर हाई-वोल्टेज इंजीनियरिंग में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की।

करियर – कैलाश सत्यार्थी की जीवनी

कैलाश सत्यार्थी पेशे से वैद्युत इंजीनियर हैं लेकिन उन्होने 26 वर्ष की उम्र में ही 1980 में अपना इलेक्ट्रिक इंजीनियर के करियर को छोड़कर 1983 में बालश्रम के ख़िलाफ़ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की।

इस समय वे ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।

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बचपन बचाओ आंदोलन

कैलाश सत्यार्थी ने 1983 में बालश्रम के ख़िलाफ़ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की। उनका यह संगठन अब तक 88 हजार से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मज़दूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है। गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। कैलाश सत्यार्थी ने ‘रगमार्क’ (Rugmark) की शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है।

इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफ़ी सफलता मिली। कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए। इन सभी का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के ख़िलाफ़ काम करना था। उनके दृढ़ निश्चय एवं उत्साह के कारण ही गैर-सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन का गठन हुआ।

वह देश में बाल अधिकारों का सबसे प्रमुख समूह बना और 60 वर्षीय सत्यार्थी बच्चों के हितों को लेकर वैश्विक आवाज़ बनकर उभरे। वह लगातार कहते रहे कि बच्चों की तस्करी एवं श्रम ग़रीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और जनसंख्या वृद्धि का कारण है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मज़दूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया।

उन्होंने बाल तस्करी एवं मज़दूरी के ख़िलाफ़ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है। सत्यार्थी कहते रहे कि वह बाल मज़दूरी को लेकर चिंतित रहे और इससे उन्हें संगठित आंदोलन खड़ा करने में मदद मिली।

पुरस्कार – कैलाश सत्यार्थी की जीवनी

  • 1984 में द आचेनेर इंटरनेशनल पीस अवार्ड (जर्मनी)
  • 1985 में द ट्रमपेटेर अवार्ड (अमेरिका)
  • 1995 में रॉबर्ट एफ. कैनेडी ह्यूमन राइट अवार्ड (अमेरिका)
  • 1999 में फ्राइड्रीच इबर्ट स्‍टीफटंग अवार्ड (जर्मनी)
  • 2002 में वैलेनबर्ग मेडल, युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन
  • 2006 में फ्रीडम अवार्ड (अमेरिका)
  • 2007 में मेडल ऑफ द इटालियन सेनाटे (Medal of the Italian Senate)
  • 2008 में अलफांसो कोमिन इंटरनेशनल अवार्ड (स्‍पेन)
  • 2009 में डेफेंडर ऑफ़ डेमोक्रेसी अवार्ड (अमेरिका)
  • 2014 में नोबेल शांति पुरस्‍कार (पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्‍त रूप से)
  • 2015 में अमित यूनिवर्सिटी, गुरगाव द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा गया।
  • 2015 में उन्हे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित पुरस्कार “ह्युमेनीटेरियन पुरस्कार ” से सम्मानित किया गया । यह पुरस्कार सबसे पहले भारत में सत्यार्थी को प्राप्त हुआ है।

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