लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी – Laxmibai Kelkar Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी – Laxmibai Kelkar Biography Hindi के बारे में बताएगे।

लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी – Laxmibai Kelkar Biography Hindi

लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी
लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी

Laxmibai Kelkar भारत की जानी – मानी समाज सुधारक थी।

वे ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की संस्थाप्क थी।

जन्म

लक्ष्मीबाई केलकर का जन्म 6 जुलाई 1905 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था।

उनका वास्स्त्विक नाम कमल था, लेकिन लोग उन्हें सम्मान से ‘मौसी जी’ कहा करते थे।

जब वे चौदह साल की उम्र में ही उनका विवाह वर्धा के एक विधुर अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव केलकर से करा दिया गया था।

योगदान – लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी

लक्ष्मीबाई केलकर ने रूढ़िग्रस्त समाज से जमकर टक्कर ली।

उन्होंने अपने घर में हरिजन नौकर रखे। महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मँगाया।

एक बार जब महात्मा गाँधी ने एक सभा में दान करने की अपील की, तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सोने की जंजीर ही दान कर दी।

राष्ट्र सेविका समिति’ की स्थापना

1932 में लक्ष्मीबाई केलकर के पति का देहान्त हो गया।

अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननद का दायित्व भी उन पर आ गया था।

लक्ष्मीबाई ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिये। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई।

इन्हीं दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आये परिवर्तन से लक्ष्मीबाई केलकर के मन में संघ के प्रति आकर्षण जागा और उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से भेंट की। उन्होंने 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।

डा. हेडगेवार ने उन्हें बताया कि संघ में स्त्रियाँ नहीं आतीं, लेकिन उन्हें प्रथक संगठन बनाने हेतु प्रेरित किया|  तब उन्होंने 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया, जो बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रथम अनुसंग घोषित हुआ । जहां अन्य महिला संगठन अपने अधिकार के बारे में, अपनी प्रतिष्ठा के बारे में महिलाओं को जागृत करते हैं, वहीं राष्ट्र सेविका समिति बताती है कि राष्ट्र का एक घटक होने के नाते एक मां का क्या कर्तव्य है? समिति उन्हें जागृत कर उनके भीतर छिपी राष्ट्र निर्माण की बेजोड़ प्रतिभा का दर्शन कराती है।

राष्ट्रोन्नति

साथ ही अपनी परम्परा के अनुसार परिवार-व्यवस्था का ध्यान रखते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण की भूमिका के प्रति जागृत करती है। समिति का ध्येय है कि महिला का सर्वोपरि विकास हो किन्तु उसे इस बात का भी भान होना चाहिए कि मेरा यह विकास, मेरी यह गुणवत्ता, मेरी क्षमता राष्ट्रोन्नति में कैसे काम आ सकती है।

वन्दनीया मौसी जी ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पद्धति पर राष्ट्र सेविका समिति का कार्य प्रारम्भ किया। समिति के कार्यविस्तार के साथ ही लक्ष्मीबाई ने नारियों के हृदय में श्रद्धा का स्थान बना लिया। सब उन्हें ‘वन्दनीया मौसीजी’ कहने लगे। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।

1945 में समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।

देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वे कराची, सिन्ध में थीं। उन्होंने सेविकाओं से हर परिस्थिति का मुकाबला करने और अपनी पवित्रता बनाये रखने को कहा। उन्होंने हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुँचने के प्रबन्ध भी किये।

मृत्यु – लक्ष्मीबाई केलकर की जीवनी

लक्ष्मीबाई केलकर की मृत्यु 27 नवंबर 1978 को हुई।

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