मेजर शैतान सिंह की जीवनी – Major Shaitan Singh Biography Hindi

आज इस आर्तिका में हम आपको मेजर शैतान सिंह की जीवनी – Major Shaitan Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।

मेजर शैतान सिंह की जीवनी – Major Shaitan Singh Biography Hindi

मेजर शैतान सिंह की जीवनी - Major Shaitan Singh Biography Hindi

मेजर शैतान सिंह 18 नवंबर 1962 भारत-चीन युद्ध में 13वीं कुमाऊनी बटालियन की सी कंपनी ने रेजंग ला दर्रे में सैनिको का सामना किया, जिसका नेतृत्व उन्होने किया था।

गोलियों से घायल होने के बावजूद वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाते देश पर न्यौछावर हो गए ।

उनके साहसिक नेतृत्व की वजह से इस मोर्चे पर भारतीय सेना ने 1000 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया।

उनके मरणोपरांत 1962 में उन्हे परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

जन्म

मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था।

उनका पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था।

उनके पिता का नाम श्री हेमसिंह जी भाटी था जोकि सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे थे।

शिक्षा

मेजर शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई पूरी की।

स्कूल में वे एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने कौशल के लिए जाने जाते थे।

1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सिंह जसवंत कॉलेज गए और उन्होंने 1947 में स्नातक किया।

1 अगस्त 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए।

करियर

जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया।

उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था।

उन्हें 11 जून 1962 को उन्हें मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था।

भारत-चीन युद्ध – मेजर शैतान सिंह की जीवनी

हिमालय क्षेत्र में विवादित सीमाओं पर लंबे समय से भारत और चीन के बीच असहमति थी।

विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी घुसपैठ का सामना करने के लिए, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनसे निपटने के लिए रणनीतियों के बारे में पूछा। हालांकि, भारतीय सेना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था। इसके बजाय उन्होंने “फॉरवर्ड पॉलिसी” नामक एक नौकरशाह द्वारा प्रस्तावित एक योजना को मंजूरी दी जिसमे चीनी सीमा के क्षेत्र में कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना के लिए कहा गया था। चीनी घुसपैठ के खिलाफ सार्वजनिक आलोचना में गंभीर वृद्धि के कारण नेहरू ने सेना की सलाह के खिलाफ “फॉरवर्ड पॉलिसी” को लागू कर दिया।

चीन को भौगोलिक लाभ प्राप्त था और यह सेना के लिए चिंता का विषय था।

अतिरिक्त चीनी हमले के समय कई छोटी-छोटी पोस्टों को बनाए रखना असंगत था।

इस पर नेहरू ने यह मान लिया था कि चीनी हमला नहीं करेंगे। लेकिन चीन ने चीन-भारत युद्ध की शुरुआत कर दी।

रेज़ांग ला का युद्ध

युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को चूसुल सेक्टर में तैनात किया गया था।

समुद्र तल से 5,000 मीटर (16,000 फीट) की ऊंचाई पर, सिंह की कमान में सी कंपनी रेज़ांग ला में एक स्थान पर थी, और इस क्षेत्र को पांच प्लाटून पोस्टों द्वारा बचाव किया जा रहा था। 18 नवंबर 1962 की सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया पर भारतीयों ने आक्रामक तरीके से तैयारी की थी क्योंकि उन्होंने चीनी सेना को सुबह 5 बजे के मंद प्रकाश में आगे बढ़ते हुए देखा था।

5:40 बजे चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीनी सेना द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। भारतीयों ने 3 इंच (76 मिमी) मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया। जैसे ही आखिरी 20 जीवित लोग बचे, भारतीयों ने अपनी खाइयों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ से लड़ने लड़ने लग गए।

युद्ध के दौरान मेजर सिंह भाटी लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य तथा पुनर्गठन बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीर गति को प्राप्त हो गए।

इस युद्ध में भारत के 123 में से 109 सैनिक शहीद हुए थे।

वीरगति (मृत्यु )

मेजर शैतान सिंह 18 नवंबर 1962 को 37 साल की उम्र में रेज़ांग ला, जम्मू और कश्मीर, भारत वीरगति को प्राप्त होने के बाद उनके पार्थिव शरीर को जोधपुर लाया गया था और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

सम्मान – मेजर शैतान सिंह की जीवनी

मेजर शैतान सिंह भाटी को भारत-चीन युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए 1963 में उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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