आज इस आर्टिकल में हम आपको सखाराम गणेश देउस्कर की जीवनी – Sakharam Ganesh Deuskar Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
सखाराम गणेश देउस्कर की जीवनी – Sakharam Ganesh Deuskar Biography Hindi
सखाराम गणेश देउस्कर क्रांतिकारी लेखक, इतिहासकार और एक पत्रकार थे।
वे भारतीय जन जागरण के एक ऐसे विचारक थे जिनके मन और लेखन में स्थानीयता और अखिल भारतीयता का अद्भुत मेल था।
देश की स्वतंत्रता को अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले देउस्कर ने क्रांतिकारी आंदोलन में भी अपनी अहम भूमिका निभाई।
पत्रकार के तौर पर अपने जीवन की शुरुआत करने वाले सखाराम की इतिहास साहित्य और राजनीति में भी विशेष रूचि थी।
जन्म
सखाराम गणेश देउस्कर का जन्म 17 दिसंबर 1869 को देवघर के समीप ‘करौ’ नाम के एक गांव में हुआ था।
इनके माता-पिता का नाम उल्लेखनीय नहीं है।
मराठी मूल के देउस्कर के पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में शिवाजी के आलबान नाम के एक किले के निकट रहते थे।
सखाराम के माँ के निधन के बाद उनकी बुआ विद्यानुरागिनी ने इंका पालन-पोषण किया।
इनकी बुआ मराठी साहित्य से भलीभांति परिचित थी।
देवगढ़ जिले के केरु ग्राम में जन्मे इस साहित्यकार ने क्रांति साहित्य साधना करके क्रांति इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।
शिक्षा – सखाराम गणेश देउस्कर की जीवनी
1891 में देवघर के आर मित्र हाई स्कूल में मैट्रिक की परीक्षा पास की।
सखाराम बचपन से ही वेदों के अध्ययन के साथ ही बंगाली भाषा भी सीखी।
इतिहास का विषय उन्हें बहुत प्रिय था।
सखाराम बाल गंगाधर तिलक को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
योगदान
सखाराम ने कलकाता में जाकर सार्वजनिक सेवा की, और उन्होंने कोलकाता में शिवाजी महोत्सव आरंभ करके युवको के अंदर राष्ट्रीयता की भावना भरी।वे बंग भंग आंदोलन से पहले स्वदेशी के प्रवर्तक थे, और देश की स्वतंत्रता को अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले सखाराम ने क्रांतिकारी आंदोलन से भी संपर्क रखा।
उन्होंने बांग्ला और हिंदी में साहित्य की रचना करके जनजागृति फैलाई, और इसमें अपना बहुत बड़ा योगदान दिया।
सखाराम गणेश देउस्कर की अध्यक्षता में कोलकाता में ‘बुद्धिवर्धिनी सभा’ का गठन किया गया।
इस सभा के माध्यम से नवयुवको में ज्ञान की वृद्धि तो होती ही साथ ही साथ उन्हें राजनीति ज्ञान भी प्राप्त होता था,और लोगों ने विदेशी को छोड़कर स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग करने का निर्णय लिया।
1905 में बंग भंग के विरोध में जो आंदोलन चला उसमें देउस्कर ने बहुत बड़ा योगदान दिया।
कार्य क्षेत्र
1893 में देउस्कर के आर. मित्र हाई स्कूल में शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए।
इस स्कूल मिल राजनारायण बसु से मिले और अध्यापन के साथ-साथ एक और अपने सामाजिक राजनीतिक दृष्टि का विकास करते रहे।इसके साथ-साथ दूसरी ओर दो उसकी अभिव्यक्ति के लिए बंगला के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर लेख भी लिखते रहे।
1894 में वे देउस्कर में एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट था, जिसका नाम हार्ड था।
उसके अन्याय और अत्याचारों से लोग बहुत परेशान थे।
सखाराम ने उसके विरुद्ध कोलकाता में प्रकाशित होने वाले हितवादी नाम के पत्र में कई लेख लिखें, जिसके फलस्वरूप हार्ड ने देउस्कर को स्कूल की नौकरी से निकाल दे देने की धमकी दी. उसके बाद देउस्कर ने शिक्षक पद से की नौकरी छोड़ दी और वे कलकाता जाकर हितवादी अखबार में प्रूफ संशोधक के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया।
इसके कुछ समय बाद वे अपनी असाधारण प्रतिभा और मेहनत के बल के आधार पर हितवादी के संपादक बन गए।
1960 में सूरत में जब कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस का गरम दल और नरम दल का विभाजन हुआ तो हितवादी के मालिक ने देउस्कर को गरम दल और तिलक के विरुद्ध हितवादी में संपदा एक लेख लिखने के लिए कहा।
सखाराम तिलक के राजनीतिक विचारों से एकता का अनुभव करते थे।
जिसके कारण उन्होंने तिलक के विरुद्ध संपादकीय लेख लिखने से मना कर दिया।
फलत: इसके बाद में उन्हे हितवादी के संपादक पद से अपना त्यागपत्र देना पड़ा।
इसके बाद में वे कलकत्ता के राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के विद्यालय में बांग्ला भाषा और भारतीय इतिहास के शिक्षक के पदके लिए नियुक्त हुए।
1910 में जब राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के व्यवस्थापक गण उन्हें एक शर्मनाक दृष्टि से देखने लगे।
ऐसी स्थिति में शिक्षक पद से उन्होने त्यागपत्र दे दिया।
1910 के बाद
इसके बाद में हितवादी के प्रबंधकों ने उन्हें दोबारा संपादक बनने का के लिए अनुरोध किया तो देउस्कर ने उसे स्वीकार लिया।
सखाराम गणेश संस्कृत, मराठी और हिंदी भाषा के एक अच्छे ज्ञाता थे।
बंगला भाषा के प्रसिद्ध पत्र हितवादी के यह संपादन करते थे।
इनके प्रेरणा से इस पत्र का हितवार्ता के नाम से हिंदी संस्करण निकला।
‘हिंदीवार्ता’ का संपादन पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर ने किया था।
हिंदी में भी बांग्ला, मराठी आदि विभक्ति शब्द से मिलकर लिखी जाए।
इसके लिए देउस्कर ने एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था।
‘देशेर कथा’ नामक ग्रंथ की रचना इन का सबसे बड़ा योगदान था।
इनका पहला संस्करण का पंडित बाबूराव विष्णु पराड़कर ने देश की बात नाम से हिंदी में अनुवाद किया था।
इस पुस्तक में प्रथम देश की दशा पर प्रकाश डाला गया था विदेशी सरकार ने इसे प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर लिया था, लेकिन गुप्त रूप से देश भर में इसका बहुत प्रचार हुआ।
उनकी पुस्तक है देसर कथा को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित किया। फिर भी वह 5 बार प्रकाशित हुई। यही कीर्तिमान उनकी एक अन्य पुस्तक है तिल के मुकदमा ने भी स्थापित किया।
उन्होंने लगभग 25 पुस्तकें 1000 से अधिक निबंध लेखन के साथ ही देनीक हितबाद का भी संपादन किया।
सखाराम का घर अरविंद घोष और बारीन्द्र घोष जैसे क्रांतिकारियों के मिलने का स्थान था।
ये दिन में पत्रकारिता करते थे, और रात में अपने दल के कार्यों में लगे रहते थे।
यह लोकमान्य के पक्के अनुयाई थे, और बंगाल में जन क्रांति लाने के कारण यह बंगाल के तिलक कहलाते थे।
हिंदी के प्रचार के लिए भी ये निरंतर प्रयत्न करते रहे।
रचनाएं – सखाराम गणेश देउस्कर की जीवनी
सखाराम गणेश ने कई ग्रंथ और निबंधों की रचनाएं की है। इनके ग्रंथ इस प्रकार है-
- 1901 में महामति रानाडे
- 1901 में झासीर राजकुमार
- 1902 में बाजीराव
- 1903 में आनन्दी बाई
- 1903 में शिवाजीर महत्व
- 1904 में शिवाजीर शिक्षा
- 1906 में शिवाजी
- 1904 में देशेर कथा
- 1907 में देशेर कथा (परिशिष्ट)
- 1904 में कृषकेर सर्वनाश
- 1908 में तिलकेर मोकद्दमा ओ संक्षिप्त जीवन चरित इन पुस्तकों के साथ साथ हैं उन्होंने इतिहास धर्म संस्कृति और मराठी साहित्य से संबंधित लेख कईल एक महत्वपूर्ण है
मृत्यु
सखाराम गणेश देउस्कर का निधन 23 नवंबर 1912 को अल्प आयु में ही हो गया था।
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