आज इस आर्टिकल में हम आपको श्रीधर पाठक की जीवनी – Shridhar Pathak Biography Hindi के बारे में बताएगे।
श्रीधर पाठक की जीवनी – Shridhar Pathak Biography Hindi
(English – Shridhar Pathak)श्रीधर पाठक भारत के प्रसिद्ध कवियों में से एक, स्वदेश प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य तथा समाज सुधार की भावनाओं के कवि थे।
उन्हें ‘कविभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
वे ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए थे।
संक्षिप्त विवरण
नाम | श्रीधर पाठक |
पूरा नाम | श्रीधर पाठक |
जन्म | 11 जनवरी,1860 |
जन्म स्थान | जौंधरी नामक गाँव, आगरा, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | पंडित लीलाधर |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म |
हिन्दू |
जाति |
– |
जन्म – श्रीधर पाठक की जीवनी
Shridhar Pathak का जन्म 11 जनवरी,1860 में जौंधरी नामक गाँव, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
उनके पिता का नाम पंडित लीलाधर था।
शिक्षा
श्रीधर पाठक ने छोटी अवस्था में ही घर पर संस्कृत और फ़ारसी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।
तदुपरांत औपचारिक रूप से विद्यालयी शिक्षा लेते हुए वे हिन्दी प्रवेशिका (1875) और ‘अंग्रेज़ी मिडिल’ (1879) परीक्षाओं में सर्वप्रथम रहे।
फिर ‘ऐंट्रेंस परीक्षा’ (1880-81) में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।
उन दिनों भारत में ऐंट्रेंस तक की शिक्षा पर्याप्त उच्च मानी जाती थी।
करियर
शिक्षा पूरी करने के बाद श्रीधर पाठक की नियुक्ति राजकीय सेवा में हो गई।
सर्वप्रथम उन्होंने जनगणना आयुक्त के रूप में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के कार्यालय में कार्य किया।
उन दिनों ब्रिटिश सरकार के अधिकांश केन्द्रीय कार्यालय कलकत्ता में ही थे।
जनगणना के संदर्भ में श्रीधर पाठक को भारत के कई नगरों में जाना पड़ा।
इसी दौरान उन्होंने विभिन्न पर्वतीय प्रदेशों की यात्रा की तथा उन्हें प्रकृति-सौंदर्य का निकट से अवलोकन करने का अवसर मिला। कालान्तर में अन्य अनेक कार्यालयों में भी कार्य किया, जिनमें रेलवे, पब्लिक वर्क्स तथा सिंचाई-विभाग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। धीरे-धीरे वे अधीक्षक के पद पर भी पहुँचे।
काव्य लेखन – श्रीधर पाठक की जीवनी
श्रीधर पाठक ने ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में अच्छी कविता की हैं। उनकी ब्रजभाषा सहज और निराडम्बर है, परंपरागत रूढ़ शब्दावली का प्रयोग उन्होंने प्रायः नहीं किया है। खड़ी बोली में काव्य रचना कर श्रीधर पाठक ने गद्य और पद्य की भाषाओं में एकता स्थापित करने का एतिहासिक कार्य किया। खड़ी बोली के वे प्रथम समर्थ कवि भी कहे जा सकते हैं।
यद्यपि इनकी खड़ी बोली में कहीं-कहीं ब्रजभाषा के क्रियापद भी प्रयुक्त है, किन्तु यह क्रम महत्वपूर्ण नहीं है कि महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा ‘सरस्वती’ का सम्पादन संभालने से पूर्व ही उन्होंने खड़ी बोली में कविता लिखकर अपनी स्वच्छन्द वृत्ति का परिचय दिया। देश-प्रेम, समाज सुधार तथा प्रकृति-चित्रण उनकी कविता के मुख्य विषय थे। उन्होने बड़े मनोयोग से देश का गौरव गान किया है, किन्तु देश भक्ति के साथ उनमें भारतेंदु कालीन कवियों के समान राजभक्ति भी मिलती है।
एक ओर श्रीधर पाठक ने ‘भारतोत्थान’, ‘भारत प्रशंसा’ आदि देशभक्ति पूर्ण कवितायें लिखी हैं तो दूसरी ओर ‘जार्ज वन्दना’ जैसी कविताओं में राजभक्ति का भी प्रदर्शन किया है। समाज सुधार की ओर भी इनकी दृष्टि बराबर रही है। ‘बाल विधवा’ में उन्होंने विधवाओं की व्यथा का कारुणिक वर्णन किया है।
परन्तु उनको सर्वाधिक सफलता प्रकृति-चित्रण में प्राप्त हुई है। तत्कालीन कवियों में श्रीधर पाठक ने सबसे अधिक मात्रा में प्रकृति-चित्रण किया है। परिणाम की दृष्टि से ही नहीं, गुण की दृष्टि से भी वे सर्वश्रेष्ठ हैं। श्रीधर पाठक ने रूढ़ी का परित्याग कर प्रकृति का स्वतंत्र रूप में मनोहारी चित्रण किया है। उन्होंने अंग्रेज़ी तथा संस्कृत की पुस्तकों के पद्यानुवाद भी किये।
रचनाएँ
‘वनाश्टक’ | ‘काश्मीर सुषमा’ (1904) | ‘देहरादून’ (1915) |
‘भारत गीत’ (1928) | ‘गोपिका गीत’ | ‘मनोविनोद’ |
‘जगत सच्चाई-सार’ |
पुरस्कार
उन्हें ‘कविभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
मृत्यु – श्रीधर पाठक की जीवनी
श्रीधर पाठक की मृत्यु 13 सितंबर, 1928 में हुआ।
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