आज इस आर्टिकल में हम आपको सुचित्रा सेन की जीवनी – Suchitra Sen Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
सुचित्रा सेन की जीवनी – Suchitra Sen Biography Hindi
सुचित्रा सेन विदेश में अवार्ड पर पाने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री थी उनका असली नाम रोमा दासगुप्ता था।
1952 में आई बांग्ला फिल्म ‘सारे चतुर’ उनकी पहली फिल्म थी।
1963 में सुपरहिट फिल्म ‘सात पाके बांधा’ के लिए उन्हें मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्म एक्टर्स के पुरस्कार से सम्मानित किया गया यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली भारतीय अभिनेत्री थी। इसके बाद इसी कहानी पर 1974 में हिंदी में ‘कोरा कागज’ बनी। 1955 में आई देवदास से उन्होंने हिंदी सिनेमा में प्रवेश किया और उन्हें 1972 में पदम श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
जन्म
सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल,1931 को बंगाल के पबना जिले में हुआ था।
सुचित्रा सेन के पिता का नाम करुणामॉय दासगुप्ता था ।
वे एक स्थानीय स्कूल में हेडमास्टर थे।
सुचित्रा सेन तीन भाई और पाँच बहनों में पाँचवें नंबर पर थी। उनकी माँ का नाम इन्दिरा था।
शिक्षा और विवाह – सुचित्रा सेन की जीवनी
उनका बचपन में घर का नाम कृष्णा था।
लेकिन जब उनके पिता हाई स्कूल में भर्ती करने गए तो नाम लिखवाया रोमा दासगुप्ता।
सुचित्रा सेन ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पबना से ही की थी ।
इसके बाद में इंग्लैंड चली गई और समरविले कॉलेज ऑफ ऑक्सफोर्ड से अपना ग्रेजुएशन किया
और इसके बाद जब उनका पहली बार स्क्रीन टेस्ट हुआ तो नितीश राय नामक सहायक निर्देशक ने नया नाम दिया- सुचित्रा। 1947 में कलकत्ता के बार-एट-लॉ आदिनाथ सेन के बेटे दिबानाथ सेन के साथ सुचित्रा की शादी कर दी गई। शादी में दहेज नहीं माँगा गया था, यह उस समय की एक अनहोनी घटना थी।
पति दिबानाथ से अच्छे संबंध न हो पाने के कारण वह अमेरिका चले गए और 1969 में एक दुर्घटना में उनकी असामयिक मौत हो गई। इसके बाद सुचित्रा ने कभी शादी का नहीं सोचा।
बेटी मुनमुन की परवरिश कर उसे अभिनेत्री बनाया। आज उनकी दो ग्रेंड डाटर रिया और राइमा सेन फिल्म अभिनेत्री हैं।
करियर
पति दिबानाथ ने ही सुचित्रा को फिल्मों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। सुचित्रा ने पहली फिल्म ‘शेष कोथाई’ (1952) में काम किया था, मगर आज तक यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई।
उनकी दूसरी फिल्म ‘सात नम्बर कैदी’ में वे समर राय के साथ दिखाई दी। तीसरी फिल्म ‘साढ़े चौहत्तर’ से उत्तम कुमार का साथ मिला, जो बीस साल तक चला।
सुचित्रा सेन ने 1955 में बिमल राय की हिन्दी फ़िल्म ‘देवदास’ में उन्होंने ‘पारो’ की भूमिका निभाई थी। इसमें उनके साथ दिलीप कुमार थे। दिग्गज अभिनेता उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी को कोई नहीं भुला सकता।
दोनों ने 1953 से लेकर 1975 तक 30 फ़िल्मों में साथ काम किया। 1959 की बंगाली फ़िल्म ‘दीप जवेले जाई’ को सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में गिना जाता है। दस साल बाद यह फ़िल्म हिंदी में बनी थी, जिसमें सुचित्रा वाला रोल वहीदा रहमान ने किया था।
1975 की फ़िल्म ‘आंधी’ में सुचित्रा का रोल इंदिरा गांधी से प्रेरित बताया गया था। सुचित्रा ने इतना जबरदस्त अभिनय किया था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामित किया गया था।
हालांकि सुचित्रा तो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नहीं चुनी गई, लेकिन फ़िल्म के उनके साथी कलाकार संजीव कुमार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता ज़रूर बन गए। उनकी बेटी मुनमुन सेन भी माँ के नक्शे कदम पर चलते हुए बंगाली फ़िल्मों के साथ हिंदी फ़िल्मों में भी आई।
लगभग 25 साल के अभियन करियर के बाद उन्होंने 1978 में बड़े पर्दे से ऐसी दूरी बनाई कि उन्होंने लाइमलाइट से खुद को बिल्कुल अलग कर लिया।
महान हस्ती
सुचित्रा सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और ‘अग्निपरीक्षा’, ‘देवदास’ तथा ‘सात पाके बंधा’ जैसी यादगार फ़िल्में कीं।
हिरणी जैसी आंखों वाली सुचित्रा 1970 के दशक के अंत में फ़िल्म जगत को छोड़कर एकांत जीवन जीने लगीं। उनकी तुलना अक्सर हॉलीवुड की ग्रेटा गाबरे से की जाती थी, जिन्होंने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया था।
कानन देवी के बाद बंगाली सिनेमा की कोई अन्य नायिका सुचित्रा की तरह प्रसिद्धि हासिल नहीं कर पाई। श्वेत-श्याम फ़िल्मों के युग में सुचित्रा के जबर्दस्त अभिनय ने उन्हें दर्शकों के दिलों की रानी बना दिया था।
उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि दुर्गा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाओं के चेहरे सुचित्रा के चेहरे की तरह बनाए जाते थे।
प्रसिद्ध फिल्म
शाप मोचन -1955 | अन्नपूर्णा मंदिर -1954 | Kamallata |
अलो अमर अलो | दत्ता -1976 | शिल्पी -1956 |
सदानंदर मेला | देबी चौधुरानी | Trijama -1956 |
Suryatoran | Aashirwad -1968 | भगबान श्रीकृष्ण चैतन्य |
देवदास -1955 पहली हिन्दी फ़िल्म | सप्तपदी -1961 | हरणो सूर -1957 |
बम्बई का बाबू -1960 दूसरी हिन्दी फ़िल्म | अग्नि परीक्षा -1954 | ममता -1966 तीसरी हिन्दी फ़िल्म |
दीप जवले जय -1959 | इंद्राणी-1958 | सामायिक चउत्तार-1953 |
सबर उपारे -1955 | चाओया-पाओया-1959 | मुसाफिर-1957 |
बिपाशा-1962 | जीबन तृष्णा-1957 | हस्पिटल |
- Aandhi -1975 चौथी एवं अन्तिम हिन्दी फ़िल्म
- साट पाके बांधा -1963 (इसके लिए मास्को अन्तरराष्ट्रीय चलचित्र उत्सव में उनको सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्रदान किया गया था
- उत्तर फाल्गुनी -1963 () (हिन्दी में दोबारा ममता नाम से निर्मित)
पुरस्कार – सुचित्रा सेन की जीवनी
- सुचित्रा सेन पहली बंगाली अभिनेत्री थीं, जिन्होंने इंटरनेशल फ़िल्म फेस्टिवल अवॉर्ड जीता। उन्होंने 1963 के मॉस्को फ़िल्म फेस्टिवल में अपनी फ़िल्म ‘सात पाके बांधा’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था।
- 1972 में भारत सरकार द्वारा उन्हे पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।
- 2012 में उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार ‘बंगो बिभूषण’ से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
सुचित्रा सेन मधुमेह नामक रोग से पीड़ित थीं।
जिसके चलते सुचित्रा सेन की 17 जनवरी 2014 को 82 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से कोलकाता के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।