आज इस आर्टिकल में हम आपको यतीन्द्रनाथ मुखर्जी की जीवनी – Yatindranath mukherjee Biography Hindi के बारे में बताएगे।
यतीन्द्रनाथ मुखर्जी की जीवनी – Yatindranath mukherjee Biography Hindi
Yatindranath mukherjee भारतीय क्रांतिकारी थे।
वे क्रांतिकारियों का प्रमुख संगठन युगांतर पार्टी के मुख्य नेता थे।
अंग्रेजों की बंग – भंग योजना का जमकर विरोध किया।
आंदोलन को धार देने के लिए उन्होने अपने चार साथियों के साथ मिलकर 26
अगस्त 1915 को कोलकाता रोड एंड कंपनी के बंदूक बिक्री केंद्र से पिस्टल लूट ली।
27 साल की आयु में उन्होने अपनी बहादुरी से एक बाघ को मार दिया
जिस के कारण उन्हे बाघा यतीन्द्र के नाम से भी जाना जाता था।
जन्म
यतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म 7 दिसंबर 1879 में नदिया-कुष्टिया, बंगाल, ब्रिटिश भारत में हुआ था।
जब वे पाँच साल के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया जिसके बाद उनकी माता ने उनका पालन पोषण किया।
शिक्षा
यतीन्द्रनाथ ने 18 साल की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन के लिए स्टेनोग्राफ़ी सीखकर ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ से जुड़ गए। वह बचपन से ही बड़े बलिष्ठ थे। 27 साल की आयु में उन्होने अपनी बहादुरी से एक बाघ को मार दिया जिस के कारण उन्हे बाघा यतीन्द्र के नाम से भी जाना जाता था।
योगदान – यतीन्द्रनाथ मुखर्जी की जीवनी
यतीन्द्रनाथ मुखर्जी क्रांतिकारियों का प्रमुख संगठन युगांतर पार्टी के मुख्य नेता थे।
अंग्रेजों की बंग – भंग योजना का जमकर विरोध किया।
आंदोलन को धार देने के लिए उन्होने अपने चार साथियों के साथ मिलकर 26 अगस्त 1915 को कोलकाता रोड एंड कंपनी
के बंदूक बिक्री केंद्र से पिस्टल लूट ली।
डकैती
क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था।
दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए। विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें! अमृत सरकार ने यतीन्द्रनाथ से कहा कि धन लेकर भाग जाओ, तुम मेरी चिंता मत करो, लेकिन इस कार्य के लिए यतीन्द्रनाथ तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- “मेरा सिर काटकर ले जाओ, जिससे कि अंग्रेज़ पहचान न सकें।” इन डकैतियों में ‘गार्डन रीच’ की डकैती बड़ी मशहूर मानी जाती है।
इसके नेता यतीन्द्रनाथ मुखर्जी ही थे। इसी समय में विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका था।
कलकत्ता में उन दिनों ‘राडा कम्पनी’ बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी।
इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी, जिसमें क्रांतिकारियों को 52 मौजर पिस्तौलें और 50 हज़ार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि ‘बलिया घाट’ तथा ‘गार्डन रीच’ की डकैतियों में यतीन्द्रनाथ का ही हाथ है।
पुलिस से मुठभेड़
1 सितम्बर 1915 को पुलिस ने यतीन्द्रनाथ का गुप्त अड्डा ‘काली पोक्ष’ ढूंढ़ निकाला।
यतीन्द्रनाथ अपने साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफ़सर ने गाँव के लोगों की मदद से
उन्हें पकड़ने की कोशश की।
बढ़ती भीड़ को तितर-बितर करने के लिए यतीन्द्रनाथ ने गोली चला दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया।
यह समाचार बालासोर के ज़िला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुँचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुँचा।
यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था। यतीन्द्रनाथ उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे।
चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था।
दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया।
वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे।
वीरगति (मृत्यु) – यतीन्द्रनाथ मुखर्जी की जीवनी
9 सितंबर 1915 को अंग्रेजों के साथ हुई मूठभेड़ में वे बुरी तरह घायल हो गए और 10 सितंबर को अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।
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