आज इस आर्टिकल में हम आपको छोटूराम की जीवनी – Chhotu Ram Biography Hindi के बारे में बताएगे।
छोटूराम की जीवनी – Chhotu Ram Biography Hindi
Chhotu Ram प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार थे।
ब्रिटिशों के शासनकाल में उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
सर छोटूराम को नैतिक साहस की मिसाल माना जाता है।
छोटूराम की स्मृति में भारत के डाक विभाग द्वारा 1995 में जारी एक
डाक टिकट जारी किया।
जन्म
छोटूराम का जन्म 24 नवंबर 1881 में हरियाणा में झज्जर जिले के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में (झज्जर उस समय रोहतक ज़िला, पंजाब में आता था) में हुआ था।
छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था। उनके पिता का नाम सुखी राम था।
वे अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें ‘छोटू’ कहकर पुकारते थे।
स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए।
उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी।
छोटूराम जी के पिता कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।
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शिक्षा – छोटूराम की जीवनी
छोटूराम ने अपनी प्राइमरी की शिक्षा मिडिल स्कूल, झज्जर में ग्रहण की।
उसके बाद उन्होने झज्जर छोड़कर क्रिश्चियन मिशन स्कूल, दिल्ली में प्रवेश लिया।
लेकिन फीस और शिक्षा का खर्चा वहन करना बहुत बड़ी चुनौती थी।
छोटूराम के अपने ही शब्दों में- “सांपला के साहूकार से जब पिता-पुत्र कर्जा लेने गए तो अपमान की चोट जो साहूकार ने मारी
वह छोटूराम को एक महामानव बनाने की दिशा में एक शंखनाद था।
जिसके बाद छोटूराम के अंदर का क्रान्तिकारी युवा जाग चुका था।
अब तो छोटूराम हर अन्याय के विरोध में खड़े होने का नाम हो गया था।
क्रिश्चियन मिशन स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के विरुद्ध छोटूराम के जीवन की पहली विरोधात्मक हड़ताल थी।
इस हड़ताल के संचालन को देखकर छोटूराम जी को स्कूल में ‘जनरल रॉबर्ट’ के नाम से पुकारा जाने लगा।
1903 में इंटरमीडियेट परीक्षा पास करने के बाद उन्होने दिल्ली के अत्यन्त प्रतिष्ठिेत सैंट स्टीफन कॉलेज से 1905 में ग्रेजुएशन
की डिग्री प्राप्त की।
छोटूराम ने अपने जीवन के शुरुआती समय में ही सर्वोत्तम आदर्शों और युवा चरित्रवान छात्र के रूप में वैदिक धर्म और आर्य समाज
में अपनी आस्था बना ली थी।
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करियर
उन्होने वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया। 1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने। अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी थी, क्योंकि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे।
उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा।
उनका मत था कि आज़ादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाये। लेकिन बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर इससे अलग हो गए। उनका कहना था कि इसमें किसानों का फायदा नहीं था।उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया और 1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली थी और वो विकास व राजस्व मंत्री बने।
छोटूराम को साल 1930 में दो महत्वपूर्ण कानून पास कराने का श्रेय दिया जाता है।
इन कानूनों के चलते किसानों को साहूकारों के शोषण से मुक्ति मिली।
ये कानून थे पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस, 1934 और द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1936।
इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे।
योगदान – छोटूराम की जीवनी
- साहूकार पंजीकरण एक्ट (1934) – यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।
- कर्जा माफी अधिनियम(1934) – यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी।
- गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट (1938) – यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था।इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।
- कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम(1938) – यह अधिनियम 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं।
1940 के बाद
- व्यवसाय श्रमिक अधिनियम (1940) – यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी।
- इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।
- मोर के शिकार पर पाबंदी – चौ। छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के खिलाफ अनेक लेख लिखे। कोर्ट मे उनके विरुद्ध मुकदमें लड़े व जीते | मोर बचाओ ‘ठग्गी के बाजार की सैर’,
‘बेचार जमींदार, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना, स्वाभिमानी भावना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया। - भाखड़ा बांध – सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
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मृत्यु – छोटूराम की जीवनी
छोटू राम की मृत्यु 9 जनवरी 1945 को हुई।
सम्मान
पीएम नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2018 में हरियाणा के रोहतक में जिले में किसान नेता सर छोटूराम की
64 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था।
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