इस आर्टिकल में हम आपको रामेश्वर नाथ काव की जीवनी – Rameshwar Nath Kaw Biography Hindi के जीवन के बारे में बताएंगे।
रामेश्वर नाथ काव की जीवनी – Rameshwar Nath Kaw Biography Hindi
रामेश्वर नाथ काव भारत की गुप्तचर संस्था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग ( रॉ) के संस्थापक थे।
आर। एन। काव 1940 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए।
1948 में इंटेलिजेंस ब्यूरो बना तो वे उससे जुड़ गए।
1962 में हुए भारत -चीन युद्ध के बाद ऐसी जांच एजेंसी की जरूरत महसूस हुई जो देश को विदेशी दुश्मनों से सचेत रख सके।
इसी के बाद काव ने 1968 में रॉ की स्थापना की।
1971 में रॉ ने भारत-पाक युद्ध में उपयोगिता साबित कर दी।
पाकिस्तान तो हारा ही साथ में बांग्लादेश का भी जन्म हो गया।
सिक्किम के भारत में विलय में भी काव की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।
उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड (एनएसजी) का भी गठन किया था।
जन्म
रामेश्वर नाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को वाराणसी में हुआ था।
वे एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थे।
रामेश्वर नाथ काव को आर. एन. काव के नाम से भी जाना जाता है।
इसके अलावा आर.एन.काव रामजी के नाम से जाने जाते थे।
शिक्षा – रामेश्वर नाथ काव की जीवनी
आर. एन. काव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम। ए। की शिक्षा प्राप्त की थी।
करियर और योगदान
आर. एन. काव1940 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गए।
1947 में भारत की आजादी के उपचार की घोषणा से कुछ समय बाद ही डायरेक्ट्रेट ऑफ इंटेलिजेंस ब्यूरो नामक सहकारी संस्था से जुड़ गए जिसके स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सिविल अधिकारी कर्नल सुमन ने 1920 में की थी।इंटेलिजेंस ब्यूरो का कार्यभार सँभालने के साथ ही उन्हें सबसे पहले आज़ाद भारत के प्रमुख लोगों की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया। इसी दौरान वह भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के व्यक्तिगत सुरक्षा प्रमुख बने।
भारत के आज़ाद होने के बाद 1950 में जब ब्रिटेन की महारानी पहली बार भारत आयीं तो उनकी सुरक्षा का कार्यभार आर. एन. काव को सौंपा गया।एक समारोह के दौरान रानी की ओर फूलों का गुलदस्ता फेंका गया, काव सुरक्षा को लेकर इतने सतर्क थे कि उन्होंने बड़ी फुर्ती से उस गुलदस्ते को रानी तक पहुँचने से पहले ही लपक लिया। असल में उन्हें संदेह था कि शायद इसमें बम हो सकता है।
इंदिरा गाँधी ने दिखाया ‘काव’ पर भरोसा
ये दोनों घटनाएँ भविष्य के मद्देनज़र भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनी –
1962 चीन द्वारा भारत पर हमला करना हो या फिर कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान द्वारा जिब्राल्टर अभियान चलाना।
लेकिन 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद जब भारत ने कश्मीर को लगभग खो ही दिया था, तब काव जी युवा आईपीएस आफिसर के रूप में सामने आये और एक ऐसी ख़ुफ़िया एजेंसी की सोच भारत सरकार के सामने रखी। यह ख़ुफ़िया एजेंसी कोई और नहीं बल्कि, ‘रॉ’ ही थी।हालांकि, पं० नेहरु के कार्यकाल में काव अपनी योग्यता साबित कर चुके थे, इसलिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ‘रॉ’ को गठित करने के विचार को मंजूरी दे दी। इस तरह ‘रॉ’ की स्थापना हुई और काव को ‘रॉ’ का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
‘काव’ का नेटवर्क
‘काव’ का नेटवर्क सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों तक फैला था।
रामेश्वर नाथ के नेतृत्व में ‘रॉ’ ने बांग्लादेश को मुक्त करने के लिए मुक्ति वाहिनी दल के क्रांतिकारियों की सहायता
कर के 1971 में पाकिस्तान को पराजित किया।
इस जीत ने काव जी को दिल्ली के सत्ता गलियारों में एक हीरो बना दिया।
आगे आने वाले दिनों में सिक्किम का भारत में विलय कराकर काव जी ने एक सारे देश को यह कहने पर मजबूर
कर दिया कि भाई यह है देश का असली नायक!
सिर्फ भारत में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय खुफिया समुदाय में भी काव की अच्छी छवि थी।
अपने कौशल और बेहतरीन काम के कारण सहकर्मियों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था।
फ़्रांस की पूर्व खुफिया एजेंसी एस. डी. ई. सी. ई. के पूर्व अध्यक्ष काउंट एलेक्सेंड्रे दे मारेंचेस ने 1970 में उनको विश्व
के पांच महान एजेटों में से एक बताया था। उन्होंने कहा था कि
“काव जी शारीरिक और मानसिक शिष्टता के एक अद्भुत मिश्रण हैं। लाजवाब उपलब्धियां! बेहतरीन मित्रता ! और फिर भी अपने, अपनी उपलब्धियों और अपने दोस्तों के बारे में बात करने से कतराते हैं!”
इसी कड़ी में ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमिटी के चेयरमैन के.एन.दारूवाला ने काव के बारे में कहा था कि “उनके संपर्क दुनिया भर में थे! खास तौर पर चीन, अफगानिस्तान, और ईरान में थे।
1975 के मध्य में आर. एन. जी काव एक पान सुपारी व्यापारी के वेश में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति शैख़ मुजीबुर रहमान को उनके देश में होने वाले तख्तापलट की सूचना देने ढाका पहुंच गये थे।काफ़ी देर तक चली उस बैठक में काव ने विद्रोहियों के नाम बताते हुए रहमान को समझाने की बहुत कोशिश की मगर, उन्हें काव जी काव की बातों पर विश्वास नहीं किया।
इसका परिणाम यह हुआ कि इस बैठक के कुछ हफ़्तों बाद ही रहमान को उनके परिवार के साथ मौत के घाट उतार दिया गया।इस तख्तापलट के बाद जनरल ज़िया उर रहमान सत्ता में आ गए, हालाँकि 1980 में उनकी भी हत्या कर दी गयी।
ज़िया उर रहमान सत्ता में आने के बाद जब भारत आये तब श्रीमती इंदिरा गाँधी के साथ एक मीटिंग में जहाँ काव जी काव भी उपस्थित थे,उन्होंने काव जी काव के बारे में श्रीमती गाँधी से कहा “यह इंसान मेरे देश के बारे में मुझसे भी ज़्यादा जानता है। ”
रॉ से इस्तीफा – रामेश्वर नाथ काव की जीवनी
1977 में नयी सरकार के गठन के बाद ‘रॉ’ की शक्तियों और संस्था के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद को कम कर दिया गया।
इस कारण ‘काव’ का मोहभंग हो गया और उन्होंंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
1997 में रिटायर होने के बाद, काव कैबिनेट के सुरक्षा सलाहकार (असल में, पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) नियुक्त हुए और नए प्रधानमंत्री, राजीव गाँधी को सुरक्षा के मामलों और विश्व के खुफिया विभाग के अध्यक्षों से संबंध स्थापित करने में सलाह देने लगे।
उन्होने बहुत अहम किरदार निभाया “पॉलिसी और रिसर्च स्टाफ” को एक आन्तरिक प्रबुद्ध मंडल बनाने में, जो कि आज की राष्ट्रीय सिक्यूरिटी काउन्सिल सेक्रेट्रीएट का अग्रगामी हैं। उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड (एनएसजी) का भी गठन किया था।
शिल्पकार
एक तरफ दुनिया उनके खुफिया संस्था के अध्यक्ष के रूप में उनकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी, तो दूसरी
तरफ उनमें एक ऐसी अनोखी प्रतिभा थी जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते थे।
काव जी काव ‘रॉ’ और ‘एन.एस. जी’ के पहले अध्यक्ष होने के साथ-साथ एक कुशल शिल्पकार भी थे।
वन्यजीवन के प्रति अपने लगाव को उजागर करते हुए, उन्होंने घोड़ों की बहुत सी भव्य मूर्तियों का निर्माण किया था।
वे गांधार चित्रों के अपने बढ़िया संग्रहण के लिए भी जाने जाते थे।
मृत्यु – रामेश्वर नाथ काव की जीवनी
20 जनवरी 2002 को रामेश्वर नाथ काव की नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।
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