सरदार अजीत सिंह भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्र भगत और क्रांतिकारी थे। भगत सिंह के चाचा भी थे। उन्होंने भारत में ब्रिटानी शासन को चुनौती दी और भारत के उपनिवेश एक शासन की आलोचना की और उनका खुलकर विरोध किया। उन्होंने राजनीतिक विद्रोही घोषित कर दिया गयाथा । उनका अधिक्तर जीवन जेल में ही बीता। 1996 में लाला लाजपत राय जी के साथ उन्हें देश से निकालने का दंड भी दिया गया था। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको सरदार अजीत सिंह की जीवनी – Sardar Ajit Singh Biography Hindi के बारे में बताएंगे
सरदार अजीत सिंह की जीवनी – Sardar Ajit Singh Biography Hindi
जन्म
सरदार रणजीत सिंह का जन्म 1821 में जालंधर, पंजाब में हुआ था।लेकिन उनके जन्म दिन की तारीख अभी तक ठीक प्रकार से पता नहीं है। इनकी पत्नी का नाम हरनाम कौर था। सरदार अजीत सिंह की पत्नि 40 साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं।
शिक्षा
सरदार अजीत सिंह ने जालंधर और लाहौर से शिक्षा ग्रहण की थी।
जेल यात्रा
सरदार अजीत सिंह को राजनीतिक विद्रोही घोषित कर दिया गया था। उनका अधिक्तर जीवन जेल में ही बीता। 1996 लाला लाजपत राय जी के साथ ही उन्हें देश से निकालने का दंड भी दिया गया था। सरदार अजीत सिंह ने 1907 के भू -संबंधी आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें गिरफ्तार कर कर बर्मा की माण्डले जेल में भेज दिया गया
लेखन कार्य
सरदार अजीत सिंह ने कुछ पत्रिकाएँ निकाली और भारतीय स्वाधीनता के अग्रिम कारणों पर कई पुस्तके लिखी। सरदार सिंह को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया। मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे। उन दिनों सरदार अजीत सिंह ने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था।
क्रांतिकारी हलचल
अजय सिंह के बारे में श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि वे स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बनने के योग्य है। जब तिलक ने यह कहा था तब अजीत सिंह की उम्र केवल 25 वर्ष ही थी। 1909 में सरदार अजीत सिंह अपना घर बार छोड़कर देश की सेवा के लिए विदेश यात्रा के लिए निकल चुके थे। उस समय उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विटजरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिंद फौज की स्थापना की। सरदार अजीत अजीत सिंह परसिया, रोम और दक्षिण अफ्रीका में रहे और 1947 में भारत वापिस लौटे। भारत लौटने पर उनकी पत्नी ने पहचान के कई सवाल पूछे जिन का सही जवाब मिलने के बाद उनके पत्नी को विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि अजीत सिंह इतनी भाषाओं को बोलना सीख चुके थे कि उन्हें पहचानना भी मुश्किल हो चुका था।
मृत्यु
15 अगस्त 1947 को सरदार अजीत सिंह जय हिंद कहकर दुनिया से अलविदा कह गए।