आज इस आर्टिकल में हम आपको छत्रपति साहू महाराज की जीवनी – Chhatrapati Shahu Maharaj Biography Hindi के बारे में बताएगे।
छत्रपति साहू महाराज की जीवनी – Chhatrapati Shahu Maharaj Biography Hindi
(English – Chhatrapati Shahu Maharaj) छत्रपति साहू महाराज महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारक और दलितों के हितेषी थे।
उन्होने दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी।
उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की।
संक्षिप्त विवरण
नाम | छत्रपति साहू महाराज |
अन्य नाम | यशवंतराव |
जन्म | 26 जुलाई 1874 |
जन्म स्थान | – |
पिता का नाम | श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे |
माता का नाम | राधाबाई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाति | – |
जन्म
Chhatrapati Shahu Maharaj का जन्म 26 जुलाई 1874 को हुआ था।
उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई था।
छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम ‘यशवंतराव’ था।
छत्रपति साहू छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र और सम्भाजी महाराज के बेटे थे।छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे।
ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा।
यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात् 2 अप्रैल 1894 में आया था।
छत्रपति साहू महाराज की शादी बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।
शिक्षा – छत्रपति साहू महाराज की जीवनी
उनकी शिक्षा राजकोट के ‘राजकुमार महाविद्यालय’ और धारवाड़ में हुई थी।
वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है।
अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया।
छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए।
इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति साहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे।
उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि- “आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।
शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे साहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु साहूजी ने इंकार कर दिया।
योगदान
समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख साहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए।
लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् साहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है।
उनकी ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए 1902 में उन्होने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोल्हापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई।
यद्यपि साहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला।
मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। साहूजी महाराज ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनके अध्ययन व सामाजिक कार्यो के लिए कई बार आर्थिक मदद की। साहूजी महाराज के क्रांतिकारी कार्यो के प्रशंसा करते हुए डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा था की वह सामाजिक लोकतंत्र के जनक हैं।
मृत्यु – छत्रपति साहू महाराज की जीवनी
छत्रपति साहूजी महाराज की मृत्यु 10 मई 1922 को मुम्बई में हुई ।
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