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गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी – Gopinath Bordoloi Biography Hindi

गोपीनाथ बोरदोलोई असम के एक जाने माने व्यक्ति थे। वे असम के प्रथम मुख्यमंत्री थे। उन्होंने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में बहुत ही सराहनीय कार्य किए। और वह अपने असम की जनता के बहुत ही लोकप्रिय हुए। गोपीनाथ जी बोरदोलोई एक राजनीति के साथ साथ एक बहुत अच्छे स्वतंत्रता सेनानी भी थे। गोपीनाथ बोरदोलोई ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया था  गोपीनाथ बोरदोलोई जी ने संविधानता का आंदोलन में में भी सक्रिय रूप से बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था और उन्हें ‘असम का निर्माता’ भी कहा जाता है। उन्होंने कई महान व्यक्तियों के साथ भी मिलकर क्रांतिकारी कार्य किये है। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी – Gopinath Bordoloi Biography Hindi के बारे में बताएगे।

गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी – Gopinath Bordoloi Biography Hindi

जन्म

गोपीनाथ बोरदोलोई का जन्म 6 जून 1890 ई में रहा नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम बुद्धेश्वर बोरदोलोई था और माता का नाम रामेश्वरी बोरदोलोई था। जब गोपीनाथ 12 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था।

शिक्षा

गोपीनाथ बोरदोलोई ने अपनी माता के देहांत के बाद उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से 1907 में मैट्रिक की परीक्षा और  1909 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी। इंटरमीडिएट के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए जहां से उन्होंने पहले बी. ए. और उसके बाद 1914 में एम. ए. की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 3 साल तक कानून की पढ़ाई की और फिर गुवाहाटी वापस लौट आए थे। गुवाहाटी जाने के बाद शुरुआत में उन्होंने फिर तरुण राम फुकन के कहने पर सोनाराम हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक के पद पर स्थाई नौकरी की थी और फिर सन 1917 में वकालत शुरु की थी। और इस के दौरान ही इन्होंने क़ानून की परीक्षा दी। गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी – Gopinath Bordoloi Biography Hindi

करियर और योगदान

गुवाहाटी आने पर उन्होंने काफी समय तक सोनाराम हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य किया और इसके साथ ही उन्होंने गुवाहाटी में ही वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। यह ऐसा समय था जब संविधान का आंदोलन में गांधीजी का प्रवेश हो चुका था। उन्होंने देश की आजादी के लिए अंहिसा और असहयोग जैसे हथियारों के प्रयोग पर बल दिया। गांधीजी के आह्वान पर कई नेता सरकारी नौकरियां और अपनी जमीन कमाई वकालत छोड़ कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे।1922 में असम कांग्रेस की स्थापना हुई थी। इसी साल गोपीनाथ एक स्वयं सेवक के रूप में कांग्रेस में शामिल हुए जो राजनीतिक में उनका पहला कदम साबित हुआ।

गोपीनाथ बोरदोलोई की वकालत भी उस समय मे जम गई थी और वह बिना किसी हिचक के के अपनी चलती हुई वकालत को छोड़ कर राष्ट्र सेवा केंद्र में कूद पड़े थे । उनके साथ है असम के कई अन्य नेताओं ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। इनके प्रमुख नेता थे- नवीन चंद्र बोरदोलोई , चंद्र नाथ शर्मा, मूलाधार चलीहा, तरुण राम फूंकन आदि । अपनी वकालत छोड़ने के बाद गोपीनाथ ने लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से दक्षिण काम रूप और गोआलपाड़ा जिले का पैदल दौरा किया। उन्होंने लोगों से विदेशी माल का बहिष्कार अंग्रेजों के साथ से हो और विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी से बने वस्तुओं को पहनने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि विदेशी वस्त्रों के त्याग के इसके साथ ही उन्हें सूत कातने पर भी ध्यान देना चाहिए। ब्रिटिश सरकार ने गोपीनाथ बोरदोलोई  के कार्यों को विद्रोह के रूप में देखने लगी। जिसके परिणामस्वरुप उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर 1 वर्ष कैद की सजा दी गई और सजा समाप्त होने के बाद उन्होंने अपने आप को संविधानता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया और वे संविधान का आंदोलन में हमेशा के लिए कार्य करने के लिए जुट गए।

जब चोरा-चोरी कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था तब गोपीनाथ बोरदोलोई गुवाहाटी में फिर से अपनी वकालत शुरू कर दी थी और उनको 1932 में गुवाहाटी के नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष के रूप मे नियुक्त किया। 1930 से 1933 के बीच उन्होंने अपने आप को राजनीतिक गतिविधियों से दूर करके कई सामाजिक कार्यों की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया था। इसके साथ-साथ उन्होंने असम के लिए एक पृथक हाईकोर्ट और विश्वविद्यालय की भी मांग की थी। गोपीनाथ बोरदोलोई की जीवनी – Gopinath Bordoloi Biography Hindi

अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद सरकार ने कांग्रेस को अवैध घोषित कर गोपीनाथ समेत लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था।

इस बीच मौकापरस्त मोहम्मद सादुल्लाह ने अंग्रेजों के सहयोग से एक बार फिर सरकार बना ली और संप्रदाय गतिविधियों को तेज कर दिया था।  1944 में रिहा होने के बाद गोपीनाथ बरदोलोई ने और नेताओं के साथ मिलकर सरकार की गतिविधियों का विरोध करना शुरू कर दिया जिसके फलस्वरूप सादुला ने उनकी बातों  पर अमल करने के लिए समझौता कर लिया था। 1946 में चुनाव में कांग्रेस ने जीत के साथ अपनी सरकार बनाई और गोपीनाथ को असम के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त कर दिया।

भारतीय स्वतंत्रता की मांगों पर चर्चा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1946 में 1 कैबिनेट आयोग का गठन किया था और उन्होंने इस गठन में शिमला और दिल्ली में मुस्लिम लिंग के साथ बैठक की थी। उनकी योजना में तीन श्रेणियों में राज्यों का समूह में शामिल था जिसमें तीसरे समूह में असम और बंगाल के साथ संवैधानिक निकाय बनाने के लिए उम्मीदवारों का चयन किया गया गोपीनाथ बोरदोलोई में असम के लिए अशुभ संकेत को योजना में देखा था क्योंकि इसमें शामिल होने का मतलब होगा कि स्थानीय प्रतिनिधि बंगाल की तुलना में अल्पसंख्यक होंगे। यह असम के लोगों के अधिकार के लिए विनाशक हो सकता है।

असम प्रदेश कांग्रेस समिति ने ग्रुपिंग प्लान के खिलाफ जाने का फैसला किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यसमिति कैबिनेट समिति और वायसराय को बताया कि असम के प्रतिनिधियों ने असम के संविधान का गठन किया है और यह तय करेगा कि वे समूह में शामिल होंगे या नहीं और उनके बीच इसके बाद कैबिनेट आयोग ने घोषणा की कि इस समूह में प्रत्येक राज्य के लिए अनिवार्य होगा और बाद में यदि वे चाहते हैं तो वे समूह से वापस भी ले सकते हैं। इससे स्थिति और भी जटिल हो गई। बारडोली ने चर्चा करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की। फिर असम कांग्रेस कमेटी के साथ असम में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने का फैसला किया।

गोपीनाथ बोरदोलोई  ने भारत के संविधान का आंदोलन में योगदान के अलावा असम की प्रगति और विकास के लिए बहुत से कार्य किए। विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान से आए लाखों निर्वासित के पुनर्वासन के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने आज तक के उस माहौल में भी राज्य में धार्मिक सौहार्द कायम रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने कई महान बड़ी बड़ी संस्थाओं का भी निर्माण करवाया था जैसे- गुवाहाटी विश्वविद्यालय, असम उच्च न्यायालय, असम मेडिकल कॉलेज और असम वेटरनरी कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना  उनके कठिन प्रयासों के कारण ही हो पाई है।

पुस्तक

एक राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ गोपीनाथ बोरदोलोई एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की है जैसे-  अत्रासक्तियोग, श्री रामचंद्र, हजरत मोहम्मद और बुध देव जैसी पुस्तकों की रचना जेल में बंद रहने के दौरान की थी।

मृत्यु

  • 5 अगस्त, 1950 ई.को गुवाहाटी में उनकी मृत्यु हो गई ।

सम्मान

  • 1999 में उन्हे मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

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